एशियन पेंट का गट्टू : दीवारों पर ब्रश्ा और रंगों का जादू  

एशियन पेंट्स का पेंटर ब्वॉय गट्टू तो आप सबको याद होगा ही. अगर ये कहा जाये कि आर के लक्ष्मण ने 1954 में एशियन पेंट्स के गस्टी गट्टू को जन्म दिया था, तो ये गलत नहीं होगा. आर के लक्ष्मण की ये क्रियेशन गट्टू इसी सन में प्रकाश में आई थी, जब एशियन ऑयल और पेंट कंपनी बड़े पैमाने पर 3.5 लाख रुपये के टर्नओवर पर कारोबार कर रही थी. हाथों में पेंट ब्रश पकड़े ये शरारती स्ट्रीट ब्वॉय की तस्वीर एशियन पेंट्स की कॉरपोरेट भूमिका की याद दिलाती है.  गट्टू के स्केच को देखकर ऐसा लगा जैसे इस शरारती लड़के ने पूरे भारत के लिये रंगों की पूरी दुनिया को ही खोलकर रख दिया हो. आरके लक्ष्मण की बनाई उसकी तस्वीर पेंट ब्रश के उस जादू को बयां कर रही थी जो भारत के अनगिनत घरों और संरचनाओं के दीवारों पर छाने वाला था.1954 से 2006 तक इस गट्टू का जादू जमकर चला और उसके बाद 2006 में वो खुद ब खुद गायब हो गया.

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कॉमन मैन : करप्शन और महंगाई से परेशान

आरके लक्ष्मण का क्रियेशन 'द कॉमन मैन' भारत की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थितियों का सर्वव्यापी गवाह बना. भारत की इन स्थितियों को लक्ष्मण्ा अपने कार्टून के जरिये प्रकाश में लाये. उनका ये कार्टून राष्ट्रीय दैनिक, द टाइम्स ऑफ इंडिया के फ्रंट पेज पर नियमित तौर पर छपता था. लक्ष्मण का ये कॉमन मैन कई सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों और इवेंट्स पर पचास सालों तक उनके दृष्टिकोण को बयां करने वाला एक तरह का स्थायी दूत बना रहा. कॉमन मैन का ये स्केच काली स्याही की बोल्ड स्ट्रोक्स के साथ लोगों की आशा, साहस और धैर्य से खुद को जोड़ता है.

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मालगुड़ी डेज : स्वामी और उसके दोस्तों की दुनिया

मालगुडी डेज आरके नारायण के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है. आरके लक्ष्मण ने अपने भाई के इस उपन्यास को पूरी तरह से कार्टून की जुबानी बयां किया. मालगुडी डेज की कहानी की बात करें तो ये कहानी है कुछ मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय दोस्तों की. ये दोस्त मालगुडी गांव के इकलौते स्कूल में एक साथ पढ़ते हैं और एकदूसरे के सुख-दुख में बराबरी से शामिल होते हैं. इनके बीच की पूरी कहानी को आरके लक्ष्मण ने अपने स्केचेस के माध्यम से बयां किया है. इसके बाद इनकी कहानी में एक समय वो भी आता है जब ये दोस्त एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं. अब बात करें मालगुडी डेज के लेखक की तो आरके नारायण का जन्म मद्रास में 1906 में हुआ था. उन्होंने अपना स्नातक महाराजा कॉलेज माईसोर से पूरा किया. उन्होंने 1935 में 29 साल की उम्र में अपना पहला नॉवेल 'स्वामी एंड फ्रेंड्स' लिखा. यहां से शुरू हुआ मालगुडी का सफर, जब एक शहर का जन्म हुआ. उन्होंने कई बेहतरीन उपन्यास, पांच लघु कथायें, दो ट्रैवेल बुक्स, चार निबंध संग्रह, एक संस्मरण और कुछ भारतीय महाकाव्यों और मिथकों के अनुवाद भी लिखे. अब अगर कोई ये कहे कि नारायण इंग्लिश के महान भारतीय लेखक थे, तो ये कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. अपने काटूर्निस्ट भाई आरके लक्ष्मण की ही तरह उन्होंने भी खूब प्रसिद्धी बटोरी.मिलिये आरके लक्ष्‍मण की दुनिया के और किरदारों से

हिंदी फिल्म : मिस्टर और मिसेज 55

हिंदी फिल्म 'मिस्टर और मिसेज 55' में मुख्य भूमिका निभाई है एक्टर गुरु दत्त और एक्ट्रेस मधुबाला ने. कहानी कुछ ऐसी है कि गुरु दत्त फिल्म में संघर्ष के दौर से गुजरते हुये कार्टूनिस्ट की भूमिका में हैं और मधुबाला पाश्चात्य रंग में रंगीं अमीर घर की बेटी हैं. दोनों एक टेनिस मैच के दौरान मिलते हैं, जहां मधुबाला मैच देखने आई हुईं हैं. मधुबाला की आंटी के किरदार में हैं एक्ट्रेस ललिता पवार. फिल्म की कहानी आधारित है संघर्ष करते गुरु दत्त और अमीर मधुबाला पर. किन परिस्थितियों में दोनों की शादी होती है और कैसे अमीर घर की, पाश्चात्य रंग में रंगी  लड़की भारतीय नारी के रूप में खुद को ढाल लेती है. आखिर में आते-आते वो गुरु दत्त के प्रति अपने प्यार को पहचान लेती हैं और दोनों एक हो जाते हैं. फिल्म के लिये आरके लक्ष्मण के बनाये कार्टून्स को जमकर प्रसिद्धी मिली. फिल्म से लोगों ने इन्हें बेहतरीन कार्टूनिस्ट के रूप में जाना.मिलिये आरके लक्ष्‍मण की दुनिया के और किरदारों से

तमिल फिल्म : कामराज   

2004 में आई तमिल फिल्म कामराज एक बायोग्राफिकल फिल्म है. 2004 में आई तमिल फिल्म कामराज एक बायोग्राफिकल फिल्म है. निर्देशक बालाकृष्णन की बनाई फिल्म तमिलनाडु के राजनेता के. कामराज की जिंदगी पर आधारित है. इन्हें व्यापक रूप से 1960 की भारतीय राजनीति का 'किंग मेकर' स्वीकार किया गया. कामराज 1954 से 1963 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और 1952 से 1954  तक व 1969 से 1975 तक सांसद बनकर रहे.

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टेलीविजन सीरियल : आरके लक्ष्मण की दुनिया

ये टीवी सीरीज पूरी तरह से आरके लक्ष्मण के काम और उनकी किताबों पर आधारित थी. इसके एपिसोड आरके लक्ष्मण के 'कॉमन मैन' की जिंदगी के उतारों और चढ़ावों को बयां करते थे. इसके शो उस कॉमन मैन के चरित्र को फोकस करते थे जो चलते हुये समय का एक मूक दर्शक था. नम्र स्वभाव के साथ चुप होकर भी वो समाज के हर उतार-चढ़ाव का गवाह बनता है. आरके लक्ष्मण के इस करेक्टर ने सफलता की असीम ऊचाइयों को छुआ, क्योंकि ये भारतीयों को रिप्रेजेंट करता है. एक लंबे सफर के बाद ये सीरीज 2013 में आकर समाप्त हो गई.मिलिये आरके लक्ष्‍मण की दुनिया के और किरदारों से

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