केस वन

कुर्माचल नगर के महेंद्र सिंह धामी ने सेंट्रल बैंक के खिलाफ कंज्यूमर फोरम में फरवरी 2014 में कंप्लेन दर्ज कराई थी। इंश्योरेंस कंपनी में सर्वे का काम करने वाले धामी ने बैंक में एक चेक जमा किया था, लेकिन बैंक की लापरवाही से पैसा जमा नहीें हो सका। इस मामले में फोरम ने पिछले महीने महेंद्र सिंह धामी के पक्ष में अपना जजमेंट दिया।

केस टू

शांती बिहार के सुखलाल ने अपना एक लाख रुपए का बिजली बिल चेक और नकद के रूप में नवंबर 2011 में जमा किया था, लेकिन विभाग की ओर से दोबारा बिल भेज दिया। इस बात पर सुखलाल ने मई 2014 में कंज्यूमर फोरम में कंप्लेन दर्ज कराई, लेकिन फैसला एक साल बाद मई 2015 में आया।

BAREILLY:

इन दो केस की तरह कंज्यूमर फोरम में बाकी केस की सुनवाई भी साल दो साल में पूरी हो पाती है, जिसके चलते केस की पेंडेंसी का ग्राफ कंज्यूमर फोरम में बढ़ गया है। जबकि, शहर में चल रहे दोनों फोरम में महीने वार कंप्लेन दर्ज कराने सुविधा शुरू की गयी है। फिर भी कोई खास फायदा नहीं दिख रहा। और फोरम में केस की संख्या बढ़ती जा रही है। केस की सुनवाई में हो रही लेट लतीफी के पीछे फोरम से कही अधिक खुद उपभोक्ता जिम्मेदार साबित हो रहे है।

90 दिन नहीं

कंज्यूमर फोरम में केस की सुनवाई 90 दिन में हो जानी चाहिए। लेकिन, किसी भी केस का जजमेंट 90 दिन में नहीं आ पा रहा है। आलम यह है कि, कई केस में फैसला आने में तीन साल से अधिक का समय लग रहा है। इससे न सिर्फ फोरम में केस की पेंडेंसी बढ़ रही है। फिलहाल फ‌र्स्ट एंड और सेकेंड दोनों ही फोरम में

ब्00 से अधिक मामले लंबित चल रहे है।

क्या है रीजन

केस की सुनवाई में कई ऐसे रीजन है जो कि समय से होने वाले जजमेंट में बाधक बन रहे हैं। पार्टी एडजस्टमेंट, बिल कलेक्ट, एविडेंस पूरा न होना, एडवोकेट तैयार नहीं होना जैसे कई समस्याएं सामने आती रहती है। अधिकारियों ने बताया कि, केस की सुनवाई समय पर हो सके इसके लिए दोनों कंज्यूमर्स फोरम में ही तीन-तीन महीने के अंतराल पर कंप्लेन दर्ज किए जाने की कवायद शुरू की गयी है। ताकि, फोरम को मिलने वाले तीन महीने के समय में केस की सुनवाई आसानी से की जा सके।

केस की सुनवाई के लिए एक निश्चित समय है। लेकिन, कई कारणों से जजमेंट में देरी होती है। जिनकी ओर से लापरवाही बरती जाती है उस पर उचित कास्ट लगाया जाता है।

बालेंदु सिंह, प्रेसीडेंट, कंज्यूमर फोरम