असल में आज रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने तीन महीने के लिए 2015-2016 की मॉनिटरी पॉलिसी की घोषणा की है. इस पॉलिसी में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और 7.5 पर्सेंट ही नियचित किया गया है. साथ ही कैश रिजर्व रेश्यो यानि CRR को भी नहीं बदला गया है ये भी चार पर्सेंट ही रहेगा. इस पर बेंको की ओर से ऐसी खबरें आयीं कि उन्हें कोई राहत नहीं दी गयी है. इसी बात पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गर्वनर रघुराम राजन ने नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने पिछली बार घटाई गई ब्याज दरों का फायदा ग्राहकों तक न पहुंचाने को लेकर बैकों को फटकारते हुए कहा है कि बैंकों के फंड्स रखरखाव की लागत में कमी नहीं हुई है, यह बात पूरी तरह से बकवास है.

राजन ने कहा है कि जब बैंकों को ब्याज दर बढ़ाना होता है तो वे नीतिगत बातों और रेपो रेट की आड़ लेते हुए उनको बढ़ा लेते हैं लेकिन जब ब्याज दरों में कमी होती है तब ब्याज दरें घटाते क्यों नहीं हैं. पिछली बार आरबीआई ने रेपो रेट में दो बार कटौती की थी लेकिन इसके बाद भी सरकारी क्षेत्र में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और प्राइवेट सेक्टर के बैंक आईसीआईसीआई सहित किसी भी बैंक ने अपनी ब्याज दरों में कमी नहीं की थी. इसी बात का हवाला आरबीआई के गर्वनर ने दिया है.  

 

आरबीआई ने इस साल जनवरी से मार्च के बीच रेपो रेट को 8 पर्सेंट से घटाकर 7.5 कर दिया था लेकिन बैंकों ने इसका फायदा ग्राहकों को नहीं दिया. राजन ने बैंकों से कहा है कि जितनी जल्दी ब्याज दरों में बदलाव होगा हमारी इकॉनामी को फायदा होगा. बैकों के ब्याज दरें ना घटाने पर आरबीआई के स्ट्रांग रिएक्शन से पता चलता है कि उसके बाकी बैंकों के साथ रिश्ते ठीक नहीं हैं और उनके काम करने तरीकों से वे खुश नहीं हैं.  

रेपो रेट के बेस पर ही रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को लोन देता है. और हर बेंक अपने टोटल फिगर में से कुछ परसेंट आरबीआई को देता है जिसे कैश रिजर्व रेशियो यानि CRR कहते हैं. बैंक अपने रिटेल कस्टमर्स को जिस रेट पर लोन देता है उसका बेस रेट डबल फिगर में ही है जबकि एक्सपर्टस का कहना है कि अगर बेस रेट कम कर दिया जाएगा तो केवल कस्टमर्स को ही नहीं बल्की कंट्री की इकॉनामी को भी फायदा होगा.

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