क्रिमिनल्स का आतंक हर दिन लोगों पर कहर बनकर टूट रहा है। पुलिस है कि हाथ पर हाथ धरे बैठी है। पिछले दो महीने के अंदर सिटी में 12 लोगों का मर्डर हो चुका है। पुलिस खामोश है। बॉलीवुड फिल्म की तरह क्रिमिनल्स बेखौफ मार-काट कर रहे हैं और पुलिस को कुछ 'सुनाई' ही नहीं दे रहा। पटना की मूल आत्मा खौफ के साये में है।

सड़क पर दनदनाती स्पीड में दो बाइक जा रही है। तभी, अचानक से दोनों के बीच टक्कर हो जाती है। बैलेंस गड़बड़ होने पर एक बाइकर बगल से जा रहे एक ठेले वाले से टकरा जाता है। ठेला वाला कुछ कहता, इसके पहले ही बाइकर उस पर भड़क उठता है। पहले तो उस बूढ़े ठेले वाले के साथ गाली-गलौज की जाती है, फिर मारपीट। साथ में चल रहे ठेले वाला के बेटा अपने बाप को पिटता देख हस्तक्षेप करता है।

बौखलाया बाइकर अपने मोबाइल से किसी को उस जगह आने को कहता है। कुछ देर बाद ही वहां दो बाइकर्स और आ जाते हैं। वे अपनी कमर से पिस्तौल निकालते हैं और ठांय-ठांय। ठेला वाला वहीं ढेर हो जाता है और बाइकर्स हर फिक्र को धुएं में उड़ाते भाग जाते हैं। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं, हकीकत है अपने शहर की। पटना सिटी के त्रिपोलिया में पिछले दिनों गुंडों का नंगा नाच दिखा।

बात एक की नहीं है

मालसलामी थाना के जमुनापुर का रहने वाले राजेन्द्र गुप्ता को जिस दिन गुंडों ने मौत की नींद सुलाई, वह बेटे वीरेन्द्र कुमार के साथ मारूफगंज से सामान लाद कर मुसल्लहपुर जा रहे थे। अपना काम कर रहे राजेन्द्र गुप्ता को मामूली-सी बात पर अपराधियों की गोली का शिकार होना पड़ा। अफसोस, इस मामले में अब तक किसी की अरेस्टिंग नहीं हो पाई है। हालांकि पुलिस दावा कर रही है कि बाइकर्स की पहचान हो चुकी है।

पुलिस की लापरवाही हो या सुस्त रवैया, पटना सिटी में अपराधियों की तूती बोल रही है। अगर यह बात सच नहीं होती, तो 28 जून को सोनू, 27 जून को ठेला चालक और 22 जून को मित्तन घाट के पास प्रभात कुमार की हत्या नहीं होती।