- पुलिसकर्मियों को साल में एक बार कराई जाती है फायरिंग की प्रैक्टिस,

- असलहों के रखरखाव का नहीं दिया जाता प्रशिक्षण

VARANASI

अत्याधुनिक असलहों से लैस बदमाशों से मुकाबले का दंभ भरने वाले पुलिस के जवान भला उनके सामने क्या टिकेंगे। उन्हें तो उनके पास मौजूद असलहों के बारे में भी ठीक से नहीं पता। जब भी कभी इनके परीक्षा का मौका आया फेल हो गये। ऐसा ही वाकया चेतगंज थाने में देखने को मिला था। कप्तान के सामने थाने के दरोगा अपनी पिस्टलें पूरी खोल कर री-असेम्बल नहीं कर पाए। अधिकारी ने उनकी खूब लानत-मलानत की। लेकिन वो भी बेचारे क्या करें? जब असलहे के बाबत उन्हें ठीक से ट्रेनिंग ही नहीं मिलती तो कैसे जान पाएंगे उसकी बारीकियां।

साल में एक बार फायरिंग

पुलिस ऑफिस की फाइलों में दर्ज दस्तावेज की मानें तो हर साल 31 मार्च से पहले साल में एक बार पुलिसकर्मियों को फायरिंग की प्रैक्टिस कराई जाती है। बनारस में छोटे असलहों के लिए राइफल क्लब स्थित फायरिंग रेंज और बड़े असलहों के लिए भुल्लनपुर पीएसी और पीटीसी चुनार के फायरिंग रेंज में व्यवस्था है। छोटे असलहों पिस्टल और रिवाल्वर से दरोगा को कम से कम 20 राउंड फायर करने होते हैं जबकि राइफल जैसे असलहों से सिपाहियों को 80 राउंड तक फायर करने होते हैं।

यहां जानने वाली बात यह भी है कि असलहों की सफाई, इनके रखरखाव और डिस्मेंटल-रीअसेम्बल करने के लिए पुलिसकर्मियों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। इनके लिए रिजर्व पुलिस लाइन में आरमोरर तैनात होते हैं और थानों पर यह काम हेड मोहर्रिर का होता है।

कैसे पहुंचे रेंज?

सालाना फायरिंग के लिए फायरिंग रेंजों में दो से तीन दिन का स्लॉट बनाया जाता है। नियम है कि रोस्टर के आधार पर शत-प्रतिशत पुलिसकर्मियों को फायरिंग करनी होती है मगर हकीकत कुछ और है। बनारस शहर की बात करें तो वीआईपी, रोजाना ड्यूटी, गार्द जैसे काम तो हैं ही, अस्वस्थता और छुट्टियों जैसी दिक्कतें भी सौ फीसदी उपस्थिति में बाधा बनती है। कुछ दरोगा-इंस्पेक्टर फायरिंग रेंज तक पहुंचते हैं, बाकी कागजों में हाजिरी दर्ज करा लेते हैं। जाहिर है कि सरकारी असलहे से इनकी दोस्ती नहीं हो पाती तो इसकी देखभाल का ख्याल भी कम ही आता है।

क्यों नहीं खुलीं पिस्टलें

एसएसपी आरके भारद्वाज भी मानते हैं कि पिस्टलें नहीं खुलने के पीछे दरोगाओं की जानकारी का अभाव है। साथ ही अन्य कारण भी है। सरकारी पिस्टलों की सफाई समय से नहीं होना इसका बड़ा कारण है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि साथ रखने वाली पिस्टल की सफाई नहीं करना-कराना पुलिसकर्मियों की लापरवाही है।

बयान

वैसे थानों पर असलहों की देखरेख हेड मोहर्रिर का काम है। मगर नए दरोगाओं को यह जानना जरूरी है कि उनकी पिस्टल काम कैसे करती है। इसके लिए जल्द ही ट्रेनिंग कराई जाएगी।

आरके भारद्वाज, एसएसपी

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ठंडे बस्ते में फायरिंग सिमुलेटर

वाराणसी पुलिस लाइन में वर्ष-2014 में फायरिंग सिमुलेटर बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। पांच लाख रुपये खर्च कर इसके लिए हॉल और अन्य चीजें भी तैयार कर ली गई थी। मगर इसके बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। सिमुलेटर बन जाता तो जवानों को रिवाल्वर-पिस्टल से लेकर एके-47 जैसे असलहों की ट्रेनिंग देना आसान हो जाता। साथ ही फायरिंग प्रैक्टिस की फ्रीक्वेंसी भी बढ़ जाती।