-जिले में लगभग दो लाख हेक्टेयर गेहूं की फसल हुई बर्बाद

- करीब एक दर्जन किसान मौत को लगा चुके हैं गले

- हर तरफ हाहाकार, अब भी नहीं थम रहा मौत का सिलसिला

ALLAHABAD: मौसम की मार से हाहाकार मचा हुआ है। विधाता के कहर से अन्नदाता खून के आंसू रो रहा है। बेमौसम की बारिश ने जिले में 70 फीसदी फसल बर्बाद कर दी है। सदमा न सह पाने वाले लगभग एक दर्जन मौत को गले लगा चुके हैं। मौत का यह सिलसिला फिर भी नहीं थम रहा है। जख्मों पर मरहम के तौर पर केंद्र और प्रदेश सरकार ने मुआवजा देने का ऐलान भी कर दिया है, लेकिन फसलों की बर्बादी से हुए नुकसान की भरपाई महज मुआवजे से हो सकेगी, यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है।

सर्वे के बाद सौ करोड़ से अधिक मुआवजे की रिपोर्ट

जिले में ओलावृष्टि और बारिश से बर्बाद हुई फसलों को लेकर सर्वे का काम पूरा हो चुका है। गाटावार सर्वे के बाद आई रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक किसान को मुआवजा मिलना तय हो चुका है। जिला प्रशासन ने सर्वे रिपोर्ट भेजकर एक सौ एक करोड़, म्ख् लाख भ्म् हजार क्77 रुपये क्षतिपूर्ति राशि मांगी है। हालांकि, तीन करोड़ भ्7 लाख 88 हजार रुपये जिले को पहले ही मिल चुके हैं।

सियासी गणित में उलझे हैं किसान

बारिश की भेंट चढ़ी फसलों के मुआवजे को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार के बीच लगातार सियासी गणित चल रही है। जिसमें बेचारा किसान उलझकर रह गया है। शुरुआत में प्रदेश सरकार ने किसानों की भ्0 फीसदी फसल की बर्बादी को पैमाना माना था। बाद में केंद्र सरकार ने इस पैमाने को घटाकर फ्फ् फीसदी कर दिया। फिलहाल यूपी की अखिलेश सरकार ने इसे फिर से घटाकर ख्भ् फीसदी कर दिया है। शासन के आदेश पर दोबारा शुरू हुए गाटावार सर्वे के बाद सच्चाई सामने आई है। जिससे जिले का प्रत्येक किसान क्षतिपूर्ति का हकदार बन गया है। इसलिए अब 98 करोड़ चार लाख म्8 हजार क्77 रुपए की और दरकार है।

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बॉक्स

सबसे खराब स्थिति में है कोरांव

मौसम के चलते हुई फसलों की बर्बादी में सबसे आगे कोरांव का नाम है। यहां के क्फ् गांव ऐसे हैं जहां 80 फीसदी से अधिक फसलें आपदा की भेंट चढ़ गई। बता दें कि जिले में मार्च की शुरुआत से मौसम खराब हुआ था जिसका सिलसिला अभी तक चला आ रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान लहलहाती गेहूं की फसलों को हुआ है। जिले के पांच लाख ब्ख् हजार किसानों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी फसल बर्बाद नहीं हुई है।

मौतों की असलियत को झुठलाने में लगा प्रशासन

जानकारी के मुताबिक जिले में फसलों की बर्बादी की सदमें से अब तक लगभग एक दर्जन किसानों की मौत हो चुकी है। हालांकि, जिला प्रशासन इस असलियत को झुठलाने की कोशिश कर रहा है। अधिकारियों का कहना है किसानों की मौत बीमारी के चलते हुई है। करछना के शिवशंकर, डांडो के महाबली और नीवी के महेंद्र नाथ पांडेय की मौत की वजह भी प्रशासन ने बीमारी बता दिया। फूलपुर तहसील के किसान पन्नालाल को हार्ट अटैक से अपनी जान गंवानी पड़ी। परिजनों ने इसके पीछे फसल क्षति को कारण बताया तो प्रशासन ने इसे झुठला दिया। पन्नालाल के शव को कब्र से खुदवाकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मऊआइमा के कटभर परवेजपुर निवासी किसान श्यामसुंदर सिंह की मौत भी सदमें के चलते हुई। कई किसानों की मौत के बाद भी प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हो रहे हैं।

पल-पल बढ़ रही है बेचैनी

मौसम लगातार किसानों को रुलाता चला आ रहा है। मार्च में बारिश ने दो बार किसानों जख्म दिया। अप्रैल में भी सिलसिला लगातार चला आ रहा है। तीन झटकों से बेहाल किसान अभी संभल पाते कि शनिवार से मौसम का मिजाज लगातार बदला हुआ नजर आ रहा है। रह-रहकर आसमान में काले बादल नजर आ जाते हैं। मौसम विभाग भी चेतावनी देने में पीछे नहीं है। ऐसे में जो फसलें बची हैं उन पर भी ग्रहण लगने के चांसेज बढ़ गए हैं।

- जिले में शायद ही ऐसा कोई किसान बचा हो जिसकी कम से कम ख्भ् फीसदी फसल नष्ट नहीं हुई है। सभी को मुआवजा दिया जाएगा। सर्वे कराकर रिपोर्ट को शासन को भेज दी गई है। पैसा आने के बाद प्रभावित किसानों को मुआवजे की राशि वितरित की जाएगी।

अतींद्र सिंह, जिला कृषि अधिकारी

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टूट गया हर सपना

किसानों का हाल किसी से छिपा नहीं है। फसलों की बर्बादी का यह आलम है कि एक बीघे से बमुश्किल बीस से चालीस बोझ गेहूं ही निकल रहा है। हाथों से मसलने पर बालियों से गिनती के दाने ही गिरते हैं। हमारे रिपोर्टर ने सोरांव के गांवों का दौरा किया तो हकीकत सामने आ गई। किसानों की समझ में नहीं आ रहा कि वह खाएं क्या और खिलाएं क्या।

किसानों का वर्जन-

आंखों में आंसू, जुबां पर दर्द

- क्0 बिस्वा खेत में मात्र 7 बोझ गेहूं के मिले हैं। पिछले साल तक यही खेत फसलों से लहलहाते थे और महज एक खेत से साल भर का अनाज मिल जाता था। इस साल तो पेट भरने के लाले भी पड़ जा जाएंगे। खेतों में बोई गई फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है।

सुखराजी, किसान अब्दालपुर, सोरांव

- पूरी फसल बर्बाद हो चुकी है। जो गेहूं हुआ भी है उसका दाना बहुत ज्यादा खराब है। दाने इतने पतले और खराब हैं कि रोटी पीली पड़ जा रही है। इस गेहूं के खरीदार ढूंढना मुश्किल साबित हो रहा है।

रामनरेश, किसान अब्दालपुर

बारिश के बाद जमीन पर गेहूं की फसल खेत में लेट गई है। खेतों में इक्का-दुक्का पौधे ही नजर आ रहे हैं। इन्हें मजदूर काटने को तैयार नहीं हो रहे। खेतों में कुछ नहीं बचा है। एक एक दाने को मोहताज होना होगा।

- कड़ेदीन, किसान

सोरांव में सरकारी क्रय केंद्र खोले जरूर गए हैं कि लेकिन यहां किसान अपना गेहूं चाहकर भी नहीं बेच सकते। मानक की मार के आगे वह खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। सरकारी केंद्रों को किसानों से गेहूं के स्वस्थ्य और मोटे दाने चाहिए। किसान को ऐसे में बैरंग लौटना पड़ता है।

बंशीलाल, किसान

खलिहान में रखा गेहूं भी सलामत नहीं

किसानों ने बातचीत में बताया कि गेहूं की फसलों की कटाई के बाद वह खलिहान में भी सुरक्षित नहीं है। लगातार बारिश होने से उन्हें बचाना मुश्किल साबित हो रहा है। भीगे गेहूं की मड़ाई भी संभव नहीं है। आसमान में मंडराते काले बादलों से उन्हें सुखाना संभव नहीं है। कुल मिलाकर किसानों पर कुदरत की चौतरफा मार पड़ रही है।

बॉक्स नंबर छह

आंकलन पर उठ रहे सवाल

केन्द्र से लेकर राज्य सरकार ने किसानों को मुआवजा दिये जाने का निर्देश दिया है। सर्वे की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन को मिली है लेकिन यह केवल खानापूर्ति साबित हो रहा है। किसानों का आरोप है कि लेखपाल मन मुताबिक प्रभावित फसल का डाटा तैयार कर रहे हैं। हालात यह हैं कि सौ फीसदी किसान फसलों की बर्बादी का शिकार हुए हैं। खेत में बची खुची फसल को काट कर हटाने के बाद किसान की फसल का आंकलन कैसे हो सकेगा, यह बहुत बड़ा सवाल बनकर उभरा है।

बॉक्स नंबर सात

बीमा का क्रम सिर्फ दिखावा

बैंक से कर्ज लेकर फसल की बुवाई करने वाले किसानों के लिए बीमा की योजना भी लागू होती है लेकिन यह मात्र दिखावा ही साबित हो रहा है। किसी भी स्तर पर बीमा का लाभ बर्बाद किसानों नहीं मिल पा रहा है। बीमा की राशि कहां जा रही है इसका जवाब भी प्रशासन के पास नहीं है। उल्टे किसान ऑफिसों के चक्कर काट रहे हैं।

बॉक्स नंबर आठ

बच्चों की पढ़ाई पर संकट

इस साल स्कूल जुलाई की जगह अप्रैल में ही खुल गए थे। किसानों ने फसलों से होने वाली आमदनी के चलते बच्चों की पढ़ाई के सपने बुने थे। फीस, ड्रेस, किताब सहित दूसरे खर्चो के लिए पैसे की जरूरत थी लेकिन इसके पहले ही कुदरत का कहर टूट पड़ा। किसानों का कहना है कि इस बार बच्चों को पढ़ा पाना भी मुश्किल साबित होगा।

वर्जन

फसलों की बर्बादी की सर्वे की रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। अब ये देखा जा रहा है कि किसानों ने खेतों कितने हिस्से में क्या बोया था। इसी तरह से मुआवजा राशि की किसानवार सूची तैयार की जाएगी। शासन से पैसा आने के बाद किसानों को राहत राशि दी जाएगी। सोरांव में ब्ख् फीसदी फसल बर्बाद हुई है।

दुर्गा शंकर गुप्ता, उपजिलाधिकारी सोरांव

फैक्ट फाइल

जिले में फसलों की बर्बादी का आंकड़ा

फसल बर्बाद हुई फसलें (हेक्टेयर में)

गेहूं क्8708ख् हेक्टेयर

सरसों ब्क्ब् हेक्टेयर

चना म्म्क्भ् हेक्टेयर

मटर फ्फ्फ् हेक्टेयर

मंसूर भ्क्ब्म् हेक्टेयर

आलू क्क्म् हेक्टेयर

अन्य फसलें ब्ख्फ्क् हेक्टेयर

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जिले में खेती का पैमाना

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फसलें एरिया (हेक्टेयर में)

गेहूं ख्क्भ्7ब्8

जौ ब्800

मटर क्भ्ब्0भ्

मंसूर क्ख्90क्

राई क्ब्0ख्

तोरिया क्770

अल्सी क्08ब्

अरहर क्भ्ख्फ्7

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फसलों से आच्छादित क्षेत्र--ख्भ्7भ्फ्म् हेक्टेयर

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गाटावार सर्वे रिपोर्ट शासन से मांगी गई मुआवजा राशि-एक सौ एक करोड़, म्ख् लाख भ्म् हजार क्77 रुपए

अब तक मिली राशि- तीन करोड़ भ्7 लाख 88 हजार रुपये जिले को पहले ही मिल चुके हैं।

शेष राशि- 98 करोड़ चार लाख म्8 हजार क्77 रुपए की और दरकार है।