- भारत रत्न से सम्मानित किए जाने पर पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़ी यादों को शेयर कर रहे उनके करीबी

- खाने के शौकीन अटल जी ने अपने लखनऊ के दोस्तों को कभी नहीं किया मायूस

- राजधानी से पांच साल तक सांसद रहने के बाद भी उनके नाम पर यहां नहीं कोई प्रॉपर्टी

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LUCKNOW: राजधानी से पांच बार सांसद रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के दिल में नवाबों का शहर बसता था। राजधानी के चप्पे-चप्पे से वाकिफ अटल जी के जानने वाले आज भी उनसे जुड़े हर पल को अपनी यादों में करीने से सजाए हुए हैं। भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के बाद बरबस ही उनकी जिंदगी से जुड़े लोगों को बीते दिन याद आ गए। खाने के शौकीन फॉर्मर प्राइम मिनिस्टर से जुड़ी ऐसी ही कुछ यादों को उनके करीबियों ने आई नेक्स्ट से किया शेयर

अब कुछ न कहना श्रीनिवास

लखनऊ कैंट से विधायक रहे सुरेश तिवारी कहते हैं कि वर्ष क्99म् में वह पहली बार विधायक का टिकट लेने के लिए अपने पिता श्रीनिवास तिवारी के साथ वीवीआईपी गेस्ट हाउस में रह रहे अटल बिहारी के पास गये थे। अटल जी ने सुरेश तिवारी और उनके पिता श्रीनिवास तिवारी को देखते ही पूछा कि 'काहो श्रीनिवास लड़का की सिफारिश करे आये हो?' इस पर उनके पिता ने कहा, 'मैंने जीवन में कभी कुछ कहा ही नहीं.' वह आगे कुछ बोलते इससे पहले ही अटलजी बोल पड़े, 'बस, अब कुछ कहना भी नहीं। जाओ विचार करेंगे.' तीन दिन बाद विधानसभा चुनावों की कैंडीडेट लिस्ट फाइनल हुई जिसमें सुरेश तिवारी का नाम मौजूद था।

पूरी की अपने बचपन के मित्र की इच्छा

लखनऊ के आनंद नगर रेलवे कॉलोनी में उनके बचपन के दोस्त स्वर्गीय कैलाश चंद्र चतुर्वेदी रहते थे। अटल जी और चतुर्वेदी बचपन में ग्वालियर से एक-दूसरे के साथी थे। जब अंतिम समय आया तो उनकी जुबान पर एक ही शब्द थे कि जब तक अटल जी से मुलाकात नहीं हो जाएगी तब तक उनके प्राण नहीं निकलेंगे। यह बात चतुर्वेदी जी के बेटे ने विधायक सुरेश तिवारी को बताई। कुछ ही दिन में प्रधानमंत्री रहते हुए अटल जी का लखनऊ दौरा लगा। वह लखनऊ आये और सुरेश तिवारी ने अटल जी को चतुर्वेदी जी की आखिरी इच्छा के बारे में बताया। अटल जी के मुंह से निकला, 'नहीं-नहीं, मैं बिल्कुल नहीं जाऊंगा। उनके बच्चे अनाथ हो जाएंगे.' मगर कुछ ही पलों में उन्होंने अपने निजी सेक्रेटरी से चतुर्वेदी जी के घर जाने की व्यवस्था करने को कहा। आनन-फानन में प्रोग्राम बना और एक घंटे बाद अटल जी अपने दोस्त से मिलने पहुंच गए।

कानपुर रोड कालोनी बसाने में था अहम रोल

एलडीए ने कानपुर रोड पर योजना शुरू की तो वहां न लाइट की व्यवस्था थी और न ही सड़क थी। यहां बिजली पानी और सड़क तीनों चीजों की प्रॉब्लम थी। ये बात अटल जी को पता चली। इसके बाद पीएमओ के कवरिंग लेटर के साथ कॉलोनी की मौजूदा स्थिति की जानकारीउन्होंने तत्कालीन वीसी एलडीए दिवाकर त्रिपाठी से मंगाई। कुछ ही दिन में उस कॉलोनी के दिन पलट गये। सड़कें चमचमाने लगीं। ख्ब् घंटे बिजली मिलने लगी और पानी का भी इंतजाम कर दिया गया।

देखने लगते थे बच्चों की तरह

लालजी टंडन कहते हैं कि अटल जी जैसा व्यक्तित्व शायद ही कभी मिले। पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहते हैं कि क्9म्0 में चौक चौराहे पर लोग तख्त रखकर चाट बेचा करते थे। हम दोनों जब उधर से गुजरते थे और जैसे ही अटल जी की निगाहें दीक्षित जी की चाट की तख्त पर जाती थी तो वह हमारी तरफ देखने लगते थे। उस वक्त उनकी आंखों से एक बालक का आग्रह झलकने लगता था। राजधानी की सड़कों पर वह कभी पैदल, कभी साइकिल से और कभी रिक्शे का इस्तेमाल करते थे। अटल जी का चौक एरिया से लगाव भी खासा था। वहां के न सिर्फ चाट बल्कि ठंडाई और राम आसरे की मिठाई की दुकान के मलाई पान उनके फेवरिट चीजों में से थे।

जब शुरू हो जाती थी अटल जी की कविता

इसके आगे टंडन जी बताते हैं कि दीक्षित के चाट और गोलगप्पे खाने के बाद अगला पड़ाव हम दोनों का शिव आधार की ठंडाई की दुकान पर होता था। ठंडाई का पूरा लुत्फ लेने के बाद पहुंचते थे राम आसरे की मिठाई की दुकान पर। वाजपेयी जी को देखते ही राम आसरे पीतल की प्लेट या ढाक के पात पर मलाई पान अटल जी को परोस देते थे। मलाई पान मुंह में जाते ही घुल जाता था और शुरू हो जाती थी अटल जी की कविता, जो दुकान के बाहर तक चलती रहती थी।

न कोई झोपड़ी न एक इंच जमीन

पूर्व प्रधानमंत्री और लखनऊ का साथ लगभग 70 साल का रहा। लेकिन, इन सत्तर सालों में अटल जी के नाम यहां न तो एक इंच जमीन है और न ही एक अदद झोपड़ी। यही वजह थी कि जब वह लखनऊ आते थे तो लगता था कि शहर का कोई अपना आ गया है। मीराबाई मार्ग का गेस्ट हाउस ठहरने के लिए उनकी पसंदीदा जगह हुआ करती थी। बतौर सांसद वह यहीं रहना पसंद करते थे क्योंकि लोगों से यहां मिल पाना आसान होता था और भोजन का बंदोबस्त भी बेहद आसानी से हो जाया करता था। लालजी टंडन कहते हैं कि उन्हें कभी किसी से भय नहीं रहा। जहां मन किया रुके। लोगों से मुलाकात की। शायद इन्हीं सबका नतीजा है कि अटल जी को भारत रत्‍‌न मिलने पर लखनवाइट्स सबसे ज्यादा खुश हैं।