- 65 साल की उम्र में भी रोज चलाते हैं 35 किलोमीटर साइकिल

- युवाओं को साइकिलिंग के लिए कर रहे हैं प्रेरित

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KANPUR। वह तो ब्0 साल से साइकिल चला रहे हैं। इस साइकिल ने न सिर्फ सेहत फिट रखी, बल्कि समाज सेवा की प्रेरणा भी दी है। साइकिलिंग इनके लिए सिर्फ सड़क पर चलने का साधन ही नहीं, बल्कि एक जुनून है। इसके पीछे पर्यावरण बचाने से लेकर हेल्थ वाइस फिट रहने का संदेश छिपा है। ये संदेश पूरी दुनिया को देना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग को तो जरूर क्योंकि युवाओं से ही कल है। हम बात कर रहे हैं गोविन्द नगर लेबर कॉलोनी निवासी केहर सिंह की।

जब साइकिल बनी एम्बुलेंस

केहर सिंह बताते हैं कि एक बार ऐसा समय भी आया। जब साइकिल से ही एंबुलेंस का काम लेना पड़ा। एक साल गर्मियों की रात में कल्याणपुर से लौट रहे थे। तभी रास्ते में एक भीषण एक्सीडेंट हुआ दिखा। एक खड़खड़ा व कुछ वाहन गिरे हुए थे। दरअसल रोड पर काला तेल फैला हुआ था। तेल कैसे फैला। इसकी कोई जानकारी नहीं थी। एंबुलेंस तो दूर-दूर तक नहीं थी। ऐसे में फिर अपने कुछ साथियों के साथ घायलों को साइकिल से ही हैलट अस्पताल ले जाने का काम किया। थोड़ी देर में ही सभी घायल अस्पताल पहुंच गए। इस तरह उनकी जान बच गई।

साइकिल से मार गिराया तेंदुआ

केहर सिंह ने बताया कि बात क्9भ्भ् की है। तब वे अपने पिता गुरुदास सिंह के साथ गोविन्द नगर में आकर बसे थे। तब यहां सिर्फ क्ख् परिवार रहते थे। पूरा इलाका जंगल की तरह था। एक दिन कॉलोनी में एक बच्चे को तेंदुआ उठा ले गया। जिससे पूरी कालोनी में दहशत फैल गई। लोग डर के मारे घरों से निकलना बंद हो गए। तब उन्होंने अपने पिता व कुछ साथियों के साथ साइकिल से ही इलाके की निगरानी शुरू कर दी। आखिर एक दिन उस आदमखोर तेंदुए को मार ही गिराया। आज जहां दादानगर चौराहा है। उसी जगह पर वो तेंदुआ हाथ लगा था।

देते हैं साइकिल चलाने की प्रेरणा

केहर सिंह आज भी साइकिल चलाने में किसी प्रकार की झिझक नहीं करते हैं। अब वो यंग लोगों को साइकिल चलाने की प्रेरणा देते हैं। आज की युवा पीढ़ी साइकिल चलाने में स्टेट्स डाउन होना समझती है। केहर कहते हैं कि साइकिल चलाने से स्टेट्स डाउन नहीं होता। आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में एक्सरसाइज का समय किसी के पास नहीं है। ऐसे में साइकिल सबसे बेस्ट साधन है। कम से कम साइकिल से सब्जी लेने के लिए तो जा ही सकते हैं। इससे साइकिलिंग भी हो जाती है और काम भी हो जाता है। पिछले साल से उन्होंने संडे को मोहल्ले के युवकों को बैठाकर साइकिलिंग के फायदे बताने के लिए सुबह क्लास शुरू की थी। स्कूल के बच्चों को अक्सर पार्क में साइकिलिंग के बारे में बताते हैं।

रूट बदला लेकिन आदत नहीं

केहर सिंह का कहना हैं कि पिछले ब्0 सालों में साइकिल चलाने का रूट तो बदला, लेकिन साइकिलिंग की आदत नहीं बदली। आज भी रोज फ्0-फ्भ् किलोमीटर साइकिल रोज चलाते हैं। नौकरी करते वक्त रूट बंधा हुआ होता था। ओईएफ फैक्ट्री में काम करते वक्त रोज फ्0-फ्भ् किलोमीटर साइकिल से फैक्ट्री आना-जाना होता था। क्977 से फैक्ट्री ज्वाइन करने के बाद फ्ख् साल की नौकरी में यही रुटीन रहा। क्97ब् से 77 तक एलिम्को कंपनी में काम करते वक्त भी यही रुटीन रहा। रावतपुर में सभी साथी एक साथ मिलते थे और साइकिल से ही फैक्ट्री जाते थे।

परिवार को नहीं है परहेज

केहर के परिवार वालों को भी साइकिलिंग के उनके इस प्रेम से परहेज नहीं है। वो आज भी अपनी पत्नी को साइकिल पर बैठा कर गुरुद्वारे दर्शन के लिए जाते हैं। उनके बच्चे उनसे कहते हैं कि पापा साइकिल छोड़ो। अब कार से चला करो, लेकिन केहर उनसे कहते हैं कि ये मेरी शान की सवारी है।