साइरस मिस्त्री का चयन उम्मीद के अनुसार नहीं है क्योंकि अधिकतर लोगों का विचार था कि रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया जा सकता है।

मगर उससे उलट टाटा बोर्ड ने सर्वसम्मति से 43 वर्षीय साइरस मिस्त्री को रतन टाटा का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसका सबसे पहले स्वागत ख़ुद रतन टाटा ने किया।

वैसे तो रतन टाटा अब एक साल तक ख़ुद मिस्त्री को अपने समूह के बिज़नेस के गुर सिखाएँगे मगर अधिकतर विशेषज्ञों का कहना है कि रतन टाटा की जगह भरना बहुत ही कठिन होगा।

ऑटो सेक्टर के एक विशेषज्ञ भगवान दास के अनुसार मिस्त्री 2006 से बोर्ड के सदस्य ज़रूर हैं मगर उनको इतनी बड़ी कंपनी चलाने का बहुत ज़्यादा अनुभव नहीं है।

उस्ताद

एक अन्य कंपनी फ़ीनिक्स के निदेशक मनोज सिंह कहते हैं कि मिस्त्री एक संजीदा इंसान हैं और रतन टाटा की अगुआई में एक साल तक रहेंगे तो ज़ाहिर है कि उन्हें इससे अच्छा उस्ताद नहीं मिलेगा।

साइरस लंदन के इंपीरियल कॉलेज और लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स से पढ़े हैं और अपने पिता की कंपनी शपूरजी पल्लनजी ग्रुप के प्रबंध निदेशक हैं।

साइरस के नज़दीक़ी लोगों का कहना है कि वह कम बोलते हैं मगर ठोस फ़ैसले लेते हैं। वह टाटा समूह के काम के तौर तरीक़ों से ख़ूब वाक़िफ़ हैं।

रतन टाटा ने अपने कार्यकाल में समूह का काफ़ी विस्तार किया और उन्होंने विदेश जाकर भी काफ़ी कंपनियाँ ख़रीदीं जिनमें चाय की कंपनी टेटली, मोटर गाड़ियों में जगुआर, कोरस आदि शामिल हैं।

टाटा समूह ने दक्षिण अफ़्रीका में भी अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है, अपने कार्यकाल में उन्होंने टाटा समूह का धंधा अलग-अलग क्षेत्रों में शुरू कराया और आज इस समूह की संपत्ति 80 अरब डॉलर की हो गई है।

रतन टाटा को लखटकिया गाड़ी नैनो लॉन्च करने का श्रेय भी दिया जाता है। उनकी क़ामयाबियों को देखते हुए विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि उनकी विरासत के मालिक को भी उन्हीं की तरह का होना चाहिए वरना कंपनी का फैलाव रुक सकता है।

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