बीबीसी के साथ एक ख़ास बातचीत में शेखर कपूर ने इस महोत्सव की तारीफ करते हुए कहा, ''यहां जो फ़िल्म बाज़ार चल रहा है उसमें दिखाई जाने वाली फ़िल्मे कमाल की हैं। अगर आज से दस साल पहले भारत में ऐसी फ़िल्में बन रही होती तो मैं कभी भी पश्चिम का रुख नहीं करता.''

शेखर कहते हैं फ़िल्म बाज़ार में दिखाई जा रही भारतीय फ़िल्मों को विदेशी फ़िल्मकार भी देख रहे हैं। उन्होने कहा फ़्रांस में होने वाले 'कान फ़िल्म फेस्टिवल' से आए हुए कुछ लोगों को ये फ़िल्में इतनी पसंद आई हैं कि वो इन्हें कान में प्रदर्शित करना चाहते हैं और चाहते हैं कि ये फ़िल्में इस फेस्टिवल में होनी वाली प्रतियोगिता में भी जाएं।

शेखर कपूर मानते हैं कि हिंदी सिनेमा की अपील अंतर्राष्ट्रीय नहीं है। वो कहते हैं कि फ़िल्मकारों को ऐसी फ़िल्में बनानी चाहिए जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दिखाया जा सके।

शेखर कहते हैं, ''सिर्फ दबंग और रा.वन जैसी फ़िल्में ही काफ़ी नहीं हैं। सिनेमा में एक नई लहर आनी चाहिए। ऐसी फ़िल्में बननी चाहिए जिन्हें जब दुनिया देखे तो हमारे सिनेमा की तारीफ करे। विशाल भारद्वाज और अनुराग कश्यप जैसे फ़िल्मकार ऐसी फ़िल्में बना रहे हैं लेकिन हमें और ऐसे निर्देशकों की ज़रूरत है.''

भारतीय फ़िल्मकारों के भ्रम को तोड़ते हुए शेखर कहते, ''ये जो सोच है कि भारतीय फ़िल्मों की दुनिया में एक बहुत बड़ी ऑडिएंस है ये सब एक भ्रम है। ऐसा कुछ नहीं है, हमसे तो अच्छी चीन की फ़िल्मों की ऑडिएंस है। हम अगर एक साल में 600 फ़िल्में बनाते हैं तो उनमें से एक भी फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं चलती। अगर कोई हिंदी फ़िल्म अच्छा करती भी है तो वो 'स्लमडॉग मिलियनेयर' जैसी फ़िल्म होती है जिसे कोई विदेशी निर्देशक आ कर बनाता है और वो फ़िल्म दुनिया भर में सुपरहिट हो जाती है.''

शेखर कहते हैं जहां तक हिंदी फ़िल्मों की कमाई का सवाल है तो फ़िल्मकार 40-50 मिलियन डॉलर कमा कर खुश हो जाते हैं जबकि 'स्लमडॉग मिलियनेयर' जैसी फ़िल्म 400 मिलियन डॉलर तक कमा लेती हैं।

अपनी आने वाली फ़िल्म 'पानी' के बारे में बात करते हुए शेखर कपूर ने बीबीसी को बताया कि पानी की समस्या किसी एक गांव, एक शहर या फिर किसी एक देश की नहीं है। वो कहते हैं, ''पानी तो जीवन है। क्या होगा अगर पानी ही नहीं रहेगा। ये फ़िल्म एक ऐसे ही शहर की कहानी है जहां सारा पानी ख़त्म हो जाता है.''

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