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ALLAHABAD: मुश्किलों से लड़कर मंजिल कैसे पाई जाती है इस जज्बे की मिसाल हैं लक्ष्मी पांडेय। सोमवार को शहर में लगे कौशल विकास मेले में जब लक्ष्मी खेलमंत्री चेतन चौहान के हाथों उन्हें अपॉइंटमेंट लेटर मिला। इस दौरान उनका दमकता चेहरा बता रहा था कि इस एक लम्हे के लिए उन्होंने कितनी मेहनत की होगी। बस इसी एक पल ने उनके दिव्यांग होने के दर्द, ससुराल से मिले जख्म और अपनों के तानों का सारा दुख दूर कर दिया।

 

आठ दिन में छोड़ना पड़ा ससुराल

पैर से दिव्यांग 32 वर्षीय लक्ष्मी पांडेय ने बताया फतेहपुर के बहुत पिछड़े गांव बरौहां की रहने वाली हैं। उनका ब्याह रायबरेली के विवेक त्रिवेदी से हुआ था। विवाह के समय उनकी उम्र 25 वर्ष थी। पति विवेक बीए की पढ़ाई करते थे। शादी के बाद महज आठ दिन ही वो अपनी ससुराल में रह पाई। लक्ष्मी बताती हैं कि पैर खराब होने को लेकर कानाफूसी और लड़ाई-झगड़े शुरू हो गए।

 

विवेक के घरवालों को चाहिये था दहेज

लक्ष्मी ने सोचा कि वो अपने कर्तव्य से ससुराल वालों का मन जीत लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ससुराल वालों ने कहा अगर पैर खराब हैं तो दहेज देना पड़ेगा। जीना मुहाल हो गया तो आठ दिन बाद ही वो मायके लौट आई। लेकिन सुकून यहां भी नहीं था। उनके तलाक को लेकर शुदा लड़की को लेकर उनके गांव में भी चर्चाएं होने लगीं। घरवाले भी परेशान होने लगे।

 

और फिर बदल दी सोच

लक्ष्मी ने बताया कि उनके गांव में लड़कियों के लिए खुद कमाई की बात करना भी गुनाह है। लेकिन उनके परिवार ने उनका सपोर्ट किया। 12 जुलाई 2016 को उनका दाखिला कौशल विकास मिशन के अन्तर्गत संचालित गांव से कुछ दूरी पर स्थित बहुआ स्थित साइबर एकेडमी में हुआ। यहां उन्होंने छह माह तक टेक्सटाइल का कोर्स किया। इसके बाद उन्हें कानपुर की नाज कंपनी नाम से फेमस टेक्सटाइल कंपनी से काम मिलना शुरू हो गया।

 

सिलाई से बुन रही दूसरों की जिंदगी

लक्ष्मी ने बताया कि वो सिलाई का काम करती हैं। नाज कंपनी उन्हें सलवार सूट के लिये प्रत्येक माह आठ-दस कपड़ों का बड़ा सेट भेजती है। इससे वे हर माह 10 हजार रुपए तक कमा लेती हैं। उनका सपना गांव में लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना है। इसके लिये उसने घर के ही पास में खुद का सेंटर भी खोल लिया है। लक्ष्मी के पिता शिव सेवक पांडेय फतेहपुर में लेखपाल हैं। वो दो भाई और दो बहन में सबसे बड़ी है। लक्ष्मी बीए और एमए में फ‌र्स्ट डिवीजन पास हुई हैं।