-फूड एंड मेडिसिन सिक्योरिटी डिपार्टमेंट की जांच रिपोर्ट से खुली पोल

-होली पर मिलावटखोरी रोकने के लिए प्रशासन ने कसी कमर, निकली टीमें

GORAKHPUR: होली करीब आते ही एक बार फिर मिलावटखोर अपना खेल खेलने की तैयारी में लगे हैं। मार्केट में मिल रही खाने की लगभग सभी चीजों पर यह यकीन करना मुश्किल है कि उनकी क्वालिटी खाने लायक है या नहीं। इसका खुलासा खुद खाद्य औषधि सुरक्षा विभाग की मिलावट रोकने वाली टीम द्वारा लिए गए सिर्फ छह महीनों की जांच सैंपल्स की रिपोर्ट बता रही है। होली जैसे पर्व पर मिलवाटखोर और भी अधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में इसे लेकर अभी से ही प्रशासन ने कमर कस ली है। नकली खोवा से लेकर मिलावटी दूध का कारोबार करने वालों के मंसूबों पर इस बार पानी फिर जाएगा। क्योंकि इसके लिए सिटी मजिस्ट्रेट विवेक श्रीवास्तव के नेतृत्व में टीम ने अभी से ही काम करना शुरू कर दिया है।

आधे से अधिक रिपोर्ट निगेटिव

खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से बीते छह महीनों के दौरान जिले की खाद्य पदार्थो की दुकानों से भेजे सैंपल्स जांच में 450 रिपोर्ट में से 281 निगेटिव आए हैं। इन सैंपल्स की रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। इनमें कुछ सैंपल्स में क्वालिटी की कमी और कुछ मे हेल्थ के लिए ज्यादा हानीकारक पदार्थो की मिलावट पाई गई है।

हर चीज में मिलावट

इसे लेकर फूड एंड मेडिसिन सिक्योरिटी डिपार्टमेंट पूरी तरह से अलर्ट हो गया है। लगातार टीमें खाद्य पदार्थो की दुकानों पर छापेमारी कर सैंपलिंग करने में जुटी हैं। अधिकारियों के मुताबिक चूंकि त्योहारों के सीजन में मिलावटखोरी की संभावनाएं अधिक बढ़ जाती हैं। इसे लेकर विशेष सावधानी बरती जा रही है। होटल, रेस्टोरेंट्स से लेकर दुकानों से मिठाई, दूध, दही, किराना और हरी सब्जियों आदि के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। हैरानी वाली बात तो यह है कि इनमें से अधिकांश सैंपल्स की जांच रिपोर्ट निगेटीव ही पाई जा रही है। ऐसे में मार्केट में बिक रहे खाद्य पदार्थो की क्वालिटी पर यकीन करना सेहत से खिलवाड़ करने से कम नहीं साबित होगा।

क्या कहती है जांच रिपोर्ट

रेड - 104

सैंपलिंग - 254

रिपोर्ट - 450

निगेटिव रिपोर्ट - 281

फाइन - 7.13 लाख

कार्रवाई - 90 पर मुकदमा

फैसला - 88

नोट: यह आंकड़ा 1 जून 2017 से 31 जनवरी 2018 तक की सैंपलिंग का है।

बॉक्स

दूध में मिलाते हैं रिफाइंड

होली में सबसे अधिक डिमांड दूध की रहती है। इसे लेकर मिलवाटखोरों की चांदी का सीजन आ रहा है। दूध सप्लाई के धंधे से जुडे़ लोग बताते हैं कि मिलावटखोर क्रीम निकाले गए दूध में रिफाइंड मिला देते हैं। इससे दूध में चिकनाई बन जाती है। यदि कोई अउंगली पर दूध डालकर जांच करना चाहे, तो उसे पता ही नहीं चल सकता कि क्रीम निकाली जा चुकी है। इतना ही नहीं दूध में सिंघाड़े का आटा और लिक्विड ग्लूकोज भी मिला दिया जाता है। इससे दूध का स्वाद भी ठीक रहता है। जानकार बताते हैं कि कई दूधिए दूध को गाढ़ा करने के लिए मिल्क पाउडर और अन्य रासायनिक पदार्थ भी मिला देते हैं। इससे लोगों की सेहत पर भी काफी असर पड़ता है।

सिंथेटिक दूध से पूरी करते कमी

वहीं अगर दूध के उत्पादन की बात करें तो शहर में पैकेट का दूध सप्लाई करने वाली करीब आधा दर्जन डेयरी है। जानकारों के मुताबिक प्रति डेयरी की रोजाना खपत करीब एक टन से काफी कम है। यानी कि दस हजार लीटर से कम। जबकि खुले दूध बेचने वाली डेयरी का रोजाना अनुमानित उत्पादन करीब 200 लीटर है। यानी की रोजना करीब 70 हजार लीटर। इसके अलावा घरेलू दूधियों का भी रोजाना दूध का अनुमानित उत्पादन जोड़ लिया जाए तो करीब डेढ़ लाख लीटर होगा जो कि खपत की तुलना में काफी कम है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार रोजाना दूध की करीब डेढ़ लाख लीटर भी उत्पादन नहीं है। जबकि इसकी तुलना में खपत दो लाख लीटर से अधिक है। जाहिर है कि इस खपत को पूरी करने के लिए मिलावटखोर सिंथेटिक दूध का इस्तेमाल कर इसे पूरा कर रहे हैं।

ऐसे होती है जांच

आमतौर पर दूध में तीन तत्व विशेष तौर पर पाए जाते हैं। फैट (वसा) या सामान्य भाषा में कहें तो घी पाया जाता है। दूसरा दूध में एसएनएफ (सॉलिड नॉट फैट) की मात्रा पाई जाती है और तीसरा दूध में पाया जाने वाला तत्व प्राकृतिक पानी है। इन तत्वों में गड़बड़ के कारण दूध अमानक स्तर का हो जाता है।

यह हैं मानक स्तर

सामान्यत: दूध में फैट की मात्रा मानक के अनुरूप होनी चाहिए। भैंस के दूध में 5.5 से नौ प्रतिशत तक फैट, गाय के दूध में 3.5 से 4.8 तक फैट होना चाहिए। जबकि मिश्रित दूध में 4 प्रतिशत से अधिक फैट होना चाहिए। वहीं एसएनएफ की मात्रा भैंस के दूध में नौ प्रतिशत या इससे ज्यादा, गाय के दूध में 8.3 से 8.7 प्रतिशत तक होनी चाहिए।

कैसे बनाया जाता है सिंथेटिक दूध

- सिंथेटिक दूध बनाने के लिए सबसे पहले उसमें यूरिया डालकर उसे हल्की आंच पर उबाला जाता है।

- इसके बाद इसमें कपड़े धोने वाला डिटर्जेट, सोडा स्टार्च, फॉरेमैलिन और वाशिंग पाउडर मिलाया जाता है।

- इसके अलावा इसमें ग्लूकोज रिफाइंड के साथ ही इसमें थोड़ा असली दूध भी मिला दिया जाता है।

ऐसे करें असली और नकली में पहचान

- असली दूध स्टोर करने पर अपना रंग नहीं बदलता, नकली दूध कुछ वक्त बाद ही पीला पड़ने लगता है।

- अगर असली दूध में यूरिया भी हो तो ये हल्के पीले रंग का ही होता है। वहीं अगर सिंथेटिक दूध में यूरिया मिलाया जाए तो ये गाढ़े पीले रंग का दिखने लगता है।

- असली दूध को हाथों के बीच रगड़ने पर कोई चिकनाहट महसूस नहीं होती। वहीं, नकली दूध को अगर आप अपने हाथों के बीच रगड़ेंगे तो आपको डिटर्जेट जैसी चिकनाहट महसूस होगी।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

- सर्वे में एफएसएसआई के मानक के खरे नहीं उतरे 68 फीसद दूध

- मिलावटी दूध कास्टिक सोडा, यूरिया, रिफाइंड ऑयल मिलाने से बनता है।

- नकली मिलावटी दूध के सेवन से हो सकती लिवर, दिल, पेंक्रियाज की समस्या

- मिलावटी दूध से पेट में ऐंठन और अपच की समस्या हो सकती है।

- नकली दूध के सेवन से छोटे बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा बीमार होते हैं।

- मिलावटी दूध कब्ज और हैजा जैसी बीमारियों का कारण भी बनता है।

- नकली और मिलावटी दूध से सबसे ज्यादा पेट संबंधित बीमारियां होती हैं।

- मिलावटी दूध पीने से डायरिया और पीलिया होने की संभावना बढ़ जाती है।

- नकली दूध से उल्टी और दस्त की शिकायत हो जाती है।

वर्जन

नकली व मिलावटी दूध को लेकर विभाग पूरी तरह सतर्क है। बीते वर्ष करीब 100 से अधिक दूध के सैंपल लिए गए थे। इनमें से जो भी सैंपल मानक के विपरित मिले उनपर कार्रवाई की गई। त्योहार में नकली दूध खपाने के मंसूबों को साकार नहीं होने दिया जाएगा। इसके लिए टीम को लगातार छापामारी करने का निर्देश दिया गया है.

- अनिल राय, मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी

मिलावटी दूध के सेवन से पेट संबंधित गंभीर बीमारियां होने की संभावना रहती है। ऐसे में अगर सही समय पर बीमारी पकड़ में नहीं आई और इलाज नहीं मिला तो इसमें फूड प्वाइजनिंग का भी खतरा होता है। दूध में केमिकल आदि यूज होने से इससे लिवर व दिल पर भी असर पड़ सकता है।

- डॉ। विजाहत करीम, सीनियर सर्जन