चालुक्य राजवंश के राजाओं कराया था मंदिर का निर्माण

छत्तीसगढ़ के बस्तर में देवी का एक आनोखा मंदिर है जिसे दंतेश्वरी माता मंदिर कहा जाता है। मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजवंश के राजाओं ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से करवाया था। यहां पर देवी सती के दांत गिरे थे। देवी का शक्तीपीठ होने के साथ ये मंदिर एक करामाती खंभे के लिये भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर परिसर में एक खंभा है जिसे लेकर कहा जाता है कि जिस किसी भक्त के हाथों में वो खंभा समा जाता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

इस मंदिर का खंभा एक बार में पकड़ लिया तो मिलेगी चांद सी खूबसूरत दुल्‍हन

52 शक्तिपीठों में से एक है दंतेवाड़ा देवी दंतेश्वरी शक्ति पीठ

मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरूड़ स्तंभ है। जिसे श्रद्धालु पीठ की ओर से बांहों में भरने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि जिसकी बांहों में स्तंभ समा जाता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। दंतेवाड़ा देवी दंतेश्वरी को समर्पित है। देश के 52 शक्तिपीठों में से एक यह भी है। यह स्थानीय लोगों की आराध्य देवी है।  देवी सती के दांत यहां गिरने से इसका नाम दंतेश्वरी शक्तिपीठ पड़ा। पौराणिक कथाओं के अनुसार काकतीय वंश के राजा अन्न्म देव और बस्तर राज परिवार की यह कुल देवी है।

दंतेवाड़ा में प्रचलित है ये पौराणिक कथा

जब अन्न्म देव नाम के राजा देवी के दर्शन करने यहां आए तब देवी दंतेश्वरी ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया। कि जहां तक वह जायेंगे वहां तक देवी उसके साथ चलेगी और वही उसका राज्य होगा। राजा कई दिनों तक बस्तर क्षेत्र में चलता रहा। देवी उसके पीछे जाती रही। जब राजा शंकनी-डंकनी नदी के पास पहुंचे तो नदी पार करते समय राजा को देवी के पायल की आवाज सुनाई नहीं दी। तब राजा पीछे मुड़कर देखा और देवी वहीं ठहर गई। इसके बाद राजा ने वहां मंदिर निर्माण कर नियमित पूजा-आराधना शुरु कर दी। यहां देवी की षष्टभुजी कालें रंग की मूर्ति स्थापित है। छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बांए हाथ में घटी, पद्घ, राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं।

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