- प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजेज को नहीं मिल रहे एडमिशन

- यूटीयू की काउंसिलिंग से भरी जानी थी कॉलेज सीट्स

- 12,000 सीट्स में से अभी तक सिर्फ 3800 पर एडमिशन

- ज्यादातर कॉलेजेज के ब्रांच हो सकती हैं पूरी खत्म

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DEHRADUN : बड़े-बड़े होर्डिग्स और एडमिशन ब्रॉशर्स पर तमाम सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर की नुमाइश इस साल प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजेज के काम नहीं आई। स्टेट के कई कॉलेजेज में सीट्स पर एडमिशन का अकाल पड़ा हुआ है। अकेले देहरादून सिटी और आसपास के कॉलेजेज की कई ब्रांचेज में एडमिशन को लेकर खाता तक नहीं खुला है। आलम यह है कि अब इन तमाम कॉलेजेज को यूटीयू की काउंसिलिंग में असलियत का आइना दिखने के बाद ब्रांच बचानी मुश्किल हो रही है।

गवर्नमेंट कॉलेज की बढ़ी डिमांड

उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कॉलेजेज के इंजीनियंरिंग कोर्सेज की सीट्स मिलाकर स्टेट में लगभग क्ख्,000 सीट हैं। मंडे को बीटेक की सीट्स के लिए कराई जा रही फ‌र्स्ट फेज की काउंसिलिंग खत्म हुई। पहले फेज में सिर्फ फ्भ्म्ब् कैंडिडेट को ही स्टेट के गवर्नमेंट और प्राइवेट कॉलेजेज में सीट्स अलॉट की गई। यह सीट्स ज्यादातर गवर्नमेंट कॉलेज के खाते में गई। दून और रुड़की के कुछ प्राइवेट कॉलेजेज को छोड़कर बाकी कॉलेजेज की डिफरेंट ब्रांचेज के खातों में दो दर्जन भी एडमिशन नहीं मिले। इतना ही नहीं कई कॉलेजेज की कई ब्रांच में तो खाता तक नहीं खुला।

ब्रांच बचानी होगी मुश्किल

यूनिवर्सिटी के नियमों के मुताबिक किसी कॉलेज के कोर्स की स्वीकृत सीट्स पर अगर आधे से कम एडमिशन होते हैं, तो कॉलेज को उस ब्रांच को सरेंडर करना होगा। काउंसिलिंग के पहले राउंड पर गौर करें तो यहां एक दर्जन से ज्यादा ऐसे कॉलेज हैं, जिनकी स्वीकृत सीट्स पर अभी तक आधा दर्जन भी एडमिशन नहीं हुए है। इन कॉलेजेज में कई के पास म्0 तो कई को क्ख्0 सीट की स्वीकृति प्राप्त है। ऐसे में इन कॉलेजेज को ब्रांच कैसे बचाई जाए इसका डर सता रहा है।

आउटसोर्स एजेंसीज कर रहे हायर

आंकड़ों पर गौर करें तो बीते तीन साल में उत्तराखंड के टेक्निकल और प्रोफेशनल कॉलेजेज में स्टूडेंट्स की संख्या म्0-70 परसेंट तक कम हो गई। ऐसे में कॉलेजेज को कोर्स ही नहीं बल्कि मान्यता तक बचाना मुश्किल लगने लगा है। इस स्थिति से उबरने लिए इंस्टिट्यूट अब एडमिशन के लिए स्टेट और स्टेट के बाहर एजेंसी हायर की जा रही है। यह एजेसियां कॉलेजेज के लिए काउंसिलिंग सेंटर के साथ ही एडमिशन काउंटर का काम भी करती हैं। कॉलेजेज के इतने जतन के बाद भी हर साल कॉलेजेज ब्रांच सरेंडर कर रहे हैं। इस साल के आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार कॉलेजेज के हालात ओर भी खराब हैं। अब कॉलेजेज भ् अगस्त से स्टार्ट होने वाली सेकेंड राउंड की काउंसलिंग से उम्मीदें लगाए बैठे हैं। एक्सप‌र्ट्स का मानना है कि पिछले सालों की तुलना में लगतार गिर रहे नंबर ऑफ स्टूडेंट्स कॉलेजेज के लिए चिंता का विषय है।

इन कॉलेजेज का नहीं खुला खाता

सिटी के कॉलेजेज पर गौर करें तो डीबीआईटी और तुलाज इंस्टिट्यूट जैसे कॉलेजेज में सभी ब्रांचेज में खाते खुले। लेकिन सिटी के कई ऐसे नामी कॉलेज भी हैं, जिनके तमाम प्रयासों के बाद भी कई कोर्सेज में खाते ही नहीं खुल पाए। इन कॉलेजेज में जीआरडी जैसे कॉलेज को जहां इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में जहां एक भी एडमिशन नहीं मिला वहीं सेलाकुई एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन की कई ब्रांच सूनी पड़ी है। यहां इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, इलेटिक्ट्रकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में खाता तक नहीं खुला। चकराता रोड स्थित माया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट में ईईई और ईसीई में जीरो एडमिशन मिले हैं। बिहाइव कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी का हाल भी बुरा है। यहां आईटी ब्रांच में खाता नहीं खुला, जबकि सिविल ब्रांच को छोड़कर बाकी ब्रांच में एडमिशन डेढ़ दर्जन का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाया। वहीं द्रोणा कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्निकल एजूकेशन में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग में खाता तक नहीं खुल पाया है।

प्राइवेट कॉलेजेज में ब्रांच और सीट्स का आलम

कॉलेज ब्रांच सीट्स

जीआरडी इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी ईईई 0

सीएसई ख्

ईसीई ख्

मैकेनिकल इंजी। भ्

सिविल इंजीनियरिंग म्

सेलाकुई इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ईसीई 0

सीएसई क्

ईईई 0

ईसीई 0

मेकेनिकल इंजी। 0

बिहाइव कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी आईटी 0

मैकेनिकल इंजी। क्ख्

सीएसई क्म्

सिविल इंजी। फ्फ्

माया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट सिविल इंजीनियरिंग क्

सीएसई क्

ईईई 0

ईसीई 0

मैकेनिकल इंजी। ब्

बीएसएम, रूड़की सिविल इंजी। 7

इलेक्ट्रिकल इंजी। क्

सीएसई 8

मैकेनिकल इंजी। 8