खून से बढ़ कर है इंसानियत का रिश्ता

इस घटना ने समाज को दो चेहरे भी उजागर किया है जिससे साबित हुआ कि खून के रिश्ते से बढ़कर इंसानियत का रिश्ता होता है। इंसानियत के रिश्ते में कोई स्वार्थ नहीं छिपा होता है। 2012 में शहनवाज के दोस्त और पायलट प्रवीण दयाल और उनकी पत्नी की मौत हो गई थी। इससे पहले प्रवीण दयाल ने दोस्त शहनवाज से वादा करवाया था कि वह उनके न रहने पर दोनों बच्चों आयूष और प्रार्थना की परवरशि करेंगे। प्रवीण के परिजन और रिश्तेदारों में उनकी प्रॉपर्टी को लेकर आपस में झगड़ा शुरू कर दिया।

स्वर्गवासी दोस्त का वादा निभाया- शहनवाज

प्रापर्टी विवाद को देखते हुउ आयूष और प्रार्थना मामा और मामी के घर रहने लगे।  वहां पर दोनों बच्चों पर कुछ ही दिन में अत्याचार शुरू हो गया। एक दिन दोनों बच्चों ने रोते हुए शहनवाज को फोन किया और आपबीती सुनाई। बच्चों की रोने की आवज सुन वो सन्न रह गए। उन्होंने तुरंत ही कोर्ट में दोनों बच्चों की देखभाल के लिए याचिका दे डाली। जहीर ने कोर्ट को बताया कि बच्चों की देखभाल के लिए उन्होंने अपने स्वर्गवासी दोस्त से वादा किया था। शहनवाज की ओर से आयूष और प्रार्थना के चाचा ने भी कोर्ट में गवाही दी कि वो शहनवाज के ऊपर पूरी तरह से विश्वास करते हैं।

कोर्ट के फैसले ने किए सब के मुंह बंद

कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा किसी दूसरे के बच्चों को पालना मानवता की सबसे बड़ी सेवा है।  जस्टिस वजीरी ने मामले की सुनवाई करते हुए निदा फाजली और जावेद अख्तर की कविताओं को सुनाते हुए कहा अनाथ बच्चों को पालना बहुत बड़ी बात है। शहनवाज को दोनों बच्चों की देखरेख का जिम्मा दिया जाता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि बीमा के रुपए सहित जिस पैसे पर आयूष और प्रार्थना का अधिकार है उसका एक ट्रस्ट बनाकर रखा जाए। सभी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को निर्देश दिया है कि प्रवीण दयाल और उनकी पत्नी कविता दयाल के सभी वित्तीय लेने-देने अब इसी ट्रस्ट के माध्यम से किए जाएं। जब दोनों बच्चे 25 साल के हो जाएं तो सारा अधिकार दे दिया जाए।

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