- कल्याणपुर में 11 नंबर क्रासिंग के पास रेलवे ट्रैक का ऐसा हिस्सा जहां एक साल में 10 से ज्यादा लोगों की जान चली गई

- हेडफोन लगा कर ट्रैक पार करने से हुई ज्यादातर मौतें, ज्यादातर स्टूडेंट्स ही मरे

KANPUR: अरे रुको देखो ट्रेन आ रही है, कोई उसे हटाओ नहीं तो जान चली जाएगी लेकिन हेडफोन लगा कर रेलवे ट्रैक पार करने वाले स्टूडेंट्स ने यह आवाज नहीं सुनी। अगर यह आवाज सुन लेते तो आज उनके घरों में मातम न होता। हम बात कर रहे हैं कल्याणपुर में क्क् नंबर क्रासिंग के पास से दलहन अनुसंधान संस्थान की बाउंड्री शुरू होने तक के करीब क्00 मीटर का एक ऐसा एरिये की जो डेथ जोन में तब्दील हो गया है। यहां बीते एक साल के अंदर क्0 से ज्यादा मौतें ट्रैक पार करते समय हो चुकी हैं। फ्राई डे को भी इसी हेडफोन के चक्कर में एक हादसा और हो गया। जब एक बीटेक स्टूडेंट ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठा। लेकिन उसकी मौत की वजह सिर्फ यह डेथ जोन नहीं था बल्कि हेडफोन था। वह स्टूडेंट हेडफोन लगा के ट्रैक पार कर रहा था। क्रासिंग के पास जब लोगों ने उसे ट्रेन के बेहद नजदीक ट्रैक पार करते देखा तो चिल्ला कर उसे सचेत करना चाहा लेकिन गाने सुनते जा रहे उस बीटेक स्टूडेंट को कुछ सुनाई नहीं दिया और अपनी जान गंवा बैठा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सिर्फ इसी एरिया में सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएं क्यों हुई। इन मौतों की वजह रेलवे का यह डेथ जोन था या हेडफोन। जिसके कारण वह अपनी ओर आ रही मौत को नहीं देख सका।

चोटी खींच के बचाई छा˜ा की जान

क्क् नंबर क्रासिंग के गैंगमैन रामचंद्र ने बताया कि उनके क्रासिंग से दलहन अनुसंधान संस्थान की बाउड्री तक बीते एक साल में कई मौतें हो चुकी है। ज्यादातर मौतें स्टूडेंट्स की हुई जोकि हेडफोन लगा कर ट्रैक पार कर रहे थे। सर्टडे दोपहर एक बजे के करीब वह क्रांसिंग बंद करते हुए बताया कि कुछ देर पहले ही एक छात्रा हेडफोन लगा कर ट्रैक पार कर रही थी। उसी दौरान वहां ट्रेन आ गई। वह चिल्लाया लेकिन हेडफोन लगाए होने की वजह से उसे कुछ सुनाई नहीं दिया। ट्रेन बेहद नजदीक आई तो वह दौड़ कर छात्रा के पास पहुंचा किसी तरह उसकी चोटी खींच कर पीछे किया जिससे उसकी जान बच गई। रामचंद्र बेहद गुस्से में बताते हैं कि यहां पर ये उनका रोज का काम है। लड़के लड़कियां कानों में हेडफोन ठूसे चले जाते हैं चिल्लाओ तो बेवकूफ समझते हैं, लेकिन अपनी जान की कीमत नहीं समझते।

ऐसे ही तो जाती है जान

रामचंद्र गुरुवार को बीटेक स्टूडेंट आदित्य मिश्रा की मौत के बारे में बताया कि शुक्रवार शाम को ट्रेन आने से पहले उन्होंने क्रासिंग बंद किया था। ट्रेन बेहद नजदीक थी। उसी दौरान जीटीरोड पार करते हुए एक स्टूडेंट क्रासिंग के पास पहुंचता है। उसके कान में हेडफोन लगा था। वह चिल्लाया कि ट्रेन आ रही है, लेकिन वह अपनी धुन में मगन था। उसने नहीं सुना बिना ट्रैक के दोनों ओर देखे बिना ही वह ट्रैक पार करने लगा। उसने ट्रैक पार कर ही लिया था, लेकिन उसकी पीठ पर टंगे बैग की वजह से वह ट्रेन की चपेट में आ गया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

डेथजोन पर क्यों जाती है जान?

दरअसल क्क् नंबर क्रासिंग से दलहन अनुसंधान की बाउंड्री तक दो शार्टकट भी है। ट्रैक के दूसरे तरफ ज्यादातर ब्वायज और ग‌र्ल्स हॉस्टल ही बने हैं। जिसमें अंबेडकर इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी, यूनिवर्सिटी, पॉलीटेक्निक और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स ही रहते हैं। रोज ही यहां रहने वाले सैकड़ों स्टूडेंट्स कॉलेज आने जाने के दौरान क्क् नंबर क्रासिंग और इन दो शार्टकट्स का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इस डेथजोन में ज्यादातर मौतें स्टूडेंट्स की ही हुई हैं।

रेलवे एक्ट के हिसाब से तो जेल भी हाे सकती है

रेलवे एक्ट के सेक्शन क्ब्7 के हिसाब से तो ट्रेन आने के समय रेलवे क्रासिंग पार करने पर म् महीने की जेल से लेकर क्000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन अपने शहर में इसकी कोई परवाह नहीं करता। रेलवे सेफ्टी बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देश में रेलवे ट्रैक पार करने से हर साल क्भ्000 मौतें होती हैं। अपने शहर में अनवरगंज कल्याणपुर ट्रैक हो या फिर रामादेवी ब्रिज से पनकी तक ट्रैक हो दर्जनों ऐसे प्वाइंट्स हैं जहां पर हर महीने ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से मौतें होती हैं और कई ऐसे प्वाइंट्स हैं जो सुसाइड प्वाइंट्स के रूप में पहचाने जाने लगे हैं।

रेलवे के डेथजोन जहां सबसे ज्यादा होतें हैं हादसे

क्-गुमटी नंबर-भ् से कोकाकोला क्रॉसिंग

ख्- गोलचौराहे के नीचे

फ्- गुटैया व गीतानगर क्रासिंग

ब्- क्क् नंबर क्रासिंग से दलहन अनुसंधान बाउंड्री तक

भ्- पनकी में इंडियन आयॅल के पास

म्- दादानगर के पास झांसी लाइन दबौली के पास

7- रामादेवी चौराहे पर ओवरब्रिज के नीचे

8- मरे कंपनी पुल के नीचे

9- श्याम नगर में पीएसी के पास

क्0- भीमसेन स्टेशन के पास

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हेडफोन और रेलवे ट्रैक मतलब मौत

ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ। एसके कनौजिया बताते हैं कि ज्यादा देर तक हेडफोन लगा कर गाने से सुनने से उसे हटाने पर काफी देर तक एक तरह का बहरापन रहता है। इसके अलावा हेडफोन कान में लगे होने की वजह से एक तरह का इंसुलेशन हो जाता है जिसकी वजह से और कुछ सुनाई नहीं पड़ता है। ऐसे में जब तक हेडफोन लगाने वाला खुद नहीं देखेगा तब तक कितना भी चिल्लाते रहो उसे सुनाई नहीं देगा। वहीं डीटीएम डॉ। जीतेंद्र कुमार बताते हैं कि रेलवे ट्रैक ठीक से देख कर पार नहीं करने से काफी मौते होती है रेलवे इसके लिए अवेयर भी करता है कि हेडफोन लगा कर ट्रैक पार न करे और ट्रेन में भी सफर के दौरान हेडफोन लगा कर चलने से बचना चाहिए।

पिछली घटनाएं

- फ्राईडे को बीटेक स्टूडेंट आदित्य की ट्रेन की चपेट में आने से मौत

- पिछले हफ्ते गीतानगर क्रासिंग पर ट्रेन की चपेट में आने से स्टूडेंट की टांग कटी

- जनवरी में अवधपुरी के पास कोचिंग पढ़ कर लौट रहे स्टूडेंट की ट्रैक पार करते समय मौत

- जनवरी में ही कानपुर विद्या मंदिर से पढ़ कर लौट रही छात्रा की भी क्क् नंबर क्रासिंग के पास ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई थी

- नवंबर ख्0क्ब् में दलहन अनुसंधान संस्थान की बाउंड्री के पास ट्रैक पार करते समय कोचिंग पढ़ा कर आ रहे युवक की मौत

- मेडिकल कॉलेज पुल के नीचे हेडफोन लगा कर ट्रैक पार कर रही एएनडी कॉलेज की छात्रा की ट्रेन की चपेट में आने से मौत

- सितंबर ख्0क्ब् को दलहन अनुसंधान संस्थान की बाउंड्री के पास होमगार्ड की बेटी की ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से मौत

फॉर योर इंफॉर्मेशन

-पेरेंट्स को ये ध्यान देना होगा कि उनका बच्चा घर से बाहर जाए तो हेडफोन न ले जाए।

-बच्चे के मोबाइल में अगर मेमोरी कार्ड पड़ा है तो उसमें सॉन्ग नहीं होने चाहिए।

-आमतौर पर स्टूडेंट्स लाइफ में गाने के शौकीन स्टूडेंट्स हेड फोन लगाकर ज्यादातर समय गाने सुनने का शौक रखते हैं।

-जो बच्चे दिनभर हेडफोन लगाए रहते हैं उनकी इस एक्टिविटी पर पेरेंट्स को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

-बच्चा अगर कान में हेडफोन लगाकर दिन भर म्यूजिक सुनता है तो तुरंत एक्सपर्ट से सलाह लें।