जिस इत्मीनान और सुकून से ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हराया है, उससे उबरने के लिए भारत के पास घंटों का ही समय शेष है। अगला मुकाबला रविवार को होना है और वो भी चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ।

लेकिन उस मैच के पहले सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या अब तक भारत के सबसे सफल कप्तानों में गिने जाने वाले महेंद्र सिंह धोनी उन गलतियों से सबक लेंगे जो भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ की है?

सहवाग का मामला

कप्तान धोनी की सबसे पहली आलोचना टीम में वीरेंदर सहवाग को जगह न दिए जाने के कारण हो रही है। हालांकि ऑस्ट्रेलिया से मिली करारी हार के बाद कप्तान धोनी ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि, "हर मैच के लिए किसी एक खिलाड़ी के चयन पर विस्तृत चर्चा करने का कोई मतलब भी नहीं है और ये काम मुश्किल भी है."

धोनी ने इस अहम मुक़ाबले के लिए पांच गेंदबाजों के साथ मैदान में उतरने का फैसला लिया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के सलामी बल्लेबाजों शेन वाटसन और वार्नर ने भारतीय गेंदबाज़ी को धो कर रख डाला।

वैसे इन्ही गेंदबाजों ने भारत को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ हुए मैच में जीत भी दिलवाई थी, लेकिन शुक्रवार को इनकी एक न चली। अब सवाल ये हैं कि सहवाग के होने या न होने से क्या कोई फर्क पड़ा?

बल्लेबाज़ों से निराशा

मैच के बाद खुद धोनी ने माना कि टीम के खाते में 20 रन कम थे। साथ ही दो ऐसे बल्लेबाजों से शुक्रवार को निराशा भी हाथ लगी, जिनसे बड़ी पारी की उम्मीद थी।

विराट कोहली और रोहित शर्मा दोनों हाल में बेहतरीन फॉर्म में दिखे हैं, लेकिन इस मैच में दोनों फ्लॉप हो गए। युवराज सिंह भी अभी पूरी तरह फिट नहीं हैं और उनसे एक लंबी निर्णायक पारी की उम्मीद करना जल्दबाजी कहा जा सकता है।

धोनी और रैना भी तेज़ रन बनाने में नाकाम रहे और गंभीर की बदक़िस्मती का शिकार हो गए, वो रन आउट हुए। ऐसे में सहवाग अगर टीम का हिस्सा रहे होते और 25 -30 रन भी जुड़ जाते तो ऑस्ट्रेलिया पर दूसरे किस्म का मनोवैज्ञानिक दबाव तो बना ही रहता। शायद पाकिस्तान के खिलाफ सहवाग के रिकॉर्ड को देखते हुए सहवाग अगला मैच खेलें।

गेंदबाज़ी और फील्डिंग

वैसे तो कप्तान धोनी ने मैच के बाद हार का ठीकरा मौसम और बारिश के सिर फोड़ा लेकिन टीम इंडिया ने शुक्रवार को जिस तरह की फील्डिंग की, वो शायद प्रतियोगिता में सबसे फिसड्डी टीमों से भी बदतर थी।

अगर मान भी लिया जाए की बारिश की वजह से मैदान पर थोड़ी फिसलन थी, तब भी टीम इंडिया के पास ऐसे कई फील्डर हैं जिन्हें धोनी को ऐसी जगहों पर खड़ा करना पड़ता है जहां गेंद उन्हें अधिक तंग न करे।

ज़हीर, हरभजन, पियूष चावला और युवराज सिंह की फील्डिंग पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है और इससे विपक्षी बल्लेबाजों को गेंदबाजी पर दबाव बनाने में आसानी रहती है।

चिंता

बहराल, एक- दो दिन के अंतराल पर फ़ील्डिंग में बहुत सुधार आने की गुंजाईश भी नहीं है और बीबीसी हिंदी के सवाल के जवाब में धोनी साहब ने कह भी दिया कि उन्हें इसकी ज़्यादा चिंता भी नहीं है!

लेकिन अगर भारत को सुपर आठ में जगह बनानी है तो उसे अपने दोनों बचे हुए मैच विशालकाय तरीके से जीतने होंगे क्योंकि भारत अपने ग्रुप में सबसे नीचे खिसक चुका है, खराब नेट रन रेट के चलते।

इसके लिए ज़रूरी है गेंदबाजी विभाग का पूरा समर्थन और पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका की बल्लेबाज़ी को देखते हुए सही गेंदबाजों का चयन।

भज्जी और ज़हीर के लिए अपने-अपने करियर के शायद दो सबसे अहम मैच होने वाले हैं और पठान को धोनी के विशवास पर खरा उतरने की भी ज़रुरत है।

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