-शहर में काफी कम हैं बेटे-बेटी में फर्क न करने वाले पेरेंट्स

-बेटों का दाखिला प्राइवेट स्कूल में और बेटियों के लिए सरकारी स्कूल

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Meerut : बोर्ड की परीक्षा हो या फिर सिविल परीक्षा, हर क्षेत्र में बेटियां अपनी पॉवर दिखा चुकी हैं। यूपी हो या फिर क्रांति शहर मेरठ लड़कियों ने बार बार यह साबित किया कि वो भी आईएएस, आईपीएस बन सकती हैं। ये हमारे समाज का एक पहलू है, जिसमें उन पेरेंट्स की तादाद काफी कम है, जो अपनी बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं समझते। अब दूसरा पहलू देखिए। अधिकतर अभिभावक घर से ही अपनी लड़की के साथ भेदभाव करते हैं। फिर ये उनके साथ पढ़ाई को लेकर हो या फिर उनकी आजादी को लेकर। ये हमारा पर्सनल व्यू नहीं है। आंकड़े इस हकीकत को बयां कर रही है। जी हां, अगर हम सरकारी स्कूलों व प्राइवेट स्कूलों में बेटियों के आंकड़ों पर डालेंगे तो सारी हकीकत खुद ब खुद सामने आ जाएगी। चलिए आपको बताते हैं, कैसे हो रहा है बेटियों के साथ पढ़ाई में भी भेदभाव।

कैसा भेदभाव

सर्व शिक्षा अभियान की वर्ष 2009-10 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की औसतन 40 फीसदी लड़कियां ही प्राइवेट स्कूलों में पढ़ती हैं। वहीं अभी हाल में सर्व शिक्षा अभियान की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में यह संख्या 40 से कम होकर अब 37 पर पहुंच गई है। इससे यह बात साबित होती है कि प्रदेश में लड़कियों के साथ भेदभाव घर से ही शुरू हो जाता है। इस भेदभाव का अनुपात प्रदेश के प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में भिन्न है। ताज्जुब की बात तो ये है कि प्रदेश की मुखिया एक महिला रह चुकी हैं। वहीं हमारी एजुकेशन मिनिस्टर स्मृति इरानी भी एक महिला ही हैं।

प्राइवेट स्कूल

प्राइवेट स्कूलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अभिभावकों द्वारा बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव साफ नजर आता है। मेरठ जिले में 90 से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें दस स्कूलों के आंकड़ों के अनुसार स्कूलों में 30 से 40 फीसदी ही बेटियां पढ़ रही हैं। वहीं मेरठ में लड़कों की प्राइवेट स्कूलों में संख्या 57 फीसदी तक हैं।

यह है पूरे जिले का हाल

कार्यालय सूत्रों के अनुसार पूरे जिले में 1,77,220 स्टूडेंट्स को फ्री बुक्स दी जा रही हैं। इनमें बेसिक शिक्षा परिषद से संचालित प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल, सहायता प्राप्त और माध्यमिक स्कूलों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स शामिल हैं। वैसे पूरे जिले में 91,161 बालिकाएं व 86,059 बालक शामिल हैं। इतना ही नहीं जिले के बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व जूनियर में कक्षा एक से लेकर आठ तक में पढ़ने वाली जिन छात्राओं का पंजीकरण है, वह छात्रों से कहीं ज्यादा हैं। यही स्थिति सहायता प्राप्त प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूलों व माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं की हैं। तीनों तरह के स्कूलों में बेटियां पढ़ाई के मामले में अब बेटों को मात दे रही हैं।

बेसिक शिक्षा परिषदीय विद्यालय

क्लास ग‌र्ल्स ब्वॉयज टोटल

1 से 5 49,597 47602 97,199

6 से 8 13,872 12300 26,172

सहायता प्राप्त विद्यालय

1 से 5 1808 1581 3389

6 से 8 5044 4133 9177

माध्यमिक विद्यालय

1 से 5 3503 1984 5487

6 से 8 17,337 18459 35796

कुल- 91,161 86059 1,77,220

प्राइवेट स्कूलों के आंकड़ें

दर्शन एकेडमी

क्लास टोटल स्टूडेंट ग‌र्ल्स ब्वॉयज

1-5 600 40 600

6-8 600 40 60

दीवान पब्लिक स्कूल

1-5 2536 30 70

6-8 600 30 70

एमपीएस

1-5 800 33 69

6-8 600 30 70

सिटी वोकेशनल

1-5 1500 40 60

6-8 1200 43 67

जीटीबी

1-5 800 से अधिक 33 69

6-8 600 से अधिक 30 70

शांति निकेतन स्कूल

1-5 700 33 69

6-8 700 33 69

यह सही है कि बेटों की तुलना में बेटियां सरकारी प्राथमिक व जूनियर स्कूलों में अधिक संख्या में पढ़ रही हैं। ऐसा बालिका शिक्षा पर जोर देने के कारण हो रहा है। विभाग प्रयास कर रहा है कि कोई भी बेटी अशिक्षित न रहे।

-मोहम्मद इकबाल, बीएसए

यह तो ठीक है कि बेटियों की संख्या सरकारी स्कूलों में ज्यादा हो रही हैं, सरकार भी बेटियों की एजुकेशन को लेकर बेहतर योजनाएं दे रही है इसका एक कारण यह भी है।

-श्रवण कुमार, डीआईओएस

यह बात बिल्कुल ठीक है कि सरकारी स्कूलों में बेटियों को ज्यादा एडमिशन दिलवाए जाते हैं, हम अक्सर इसके लिए गांव गांव व मलिन बस्तियों में कैम्प लगाते हैं, जिनमें बेटियों की पढ़ाई के प्रति अभिभावकों को जागरुक किया जाता है।

-अंजू पांडे, अध्यक्ष बेटियां फाउंडेशन

मेरे पास मेरी एक जूनियर आई थी जो एलएलएम की स्टूडेंट थी, वह अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद ही चलाती थी, जबकि उसका भाई बहुत बड़ी पोस्ट पर था और आर्थिक स्थिति भी ठीक थी। इसके अलावा भी काफी केस नजर में आए है।

-रजनीश कौर, एडवोकेट