इस पेशकश का विरोध करने वालों का कहना है कि इस क़ानून से मानवाधिकारों और नागरिक निजता का उल्लंघन होगा।
ह्यूमन डीएनए प्रोफ़ाइलिंग विधेयक 2015 को संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना जताई गई है।
इस विधेयक के सार्वजनिक मसौदे के अनुसार क़ानून बनने के बाद विभिन्न अपराध स्थलों से इकट्ठा की गई जेनेटिक सामग्री के उपयोग को नियमित किया जाएगा।
इस विधेयक के अनुसार क्षेत्रीय डीएनए बैंक और राष्ट्रीय डीएनए बैंक बनाने का भी प्रस्ताव है। इन बैंकों का प्रयोग ग़ैर-फॉरेंसिक मक़सद से भी किया जा सकता है।
भारत सरकार ने सबसे पहले ये विधेयक 2007 में पेश किया था। साल 2012 में एक विशेषज्ञ कमिटी बनाई गई जिसे विधेयक में शामिल निजता के मुद्दे पर विचार करना था।
इस विधेयक और इससे जुड़ी बहस पर बीबीसी पेश कर रहा है विशेष सिरीज़. पेश है शृंखला की पहली कहानी।
डीएनए विश्लेषण और उपयोग?
डीएनए (डीऑक्सीराइबोज़ न्यूक्लिक एसिड) मनुष्य की कोशिका के गुणसूत्रों में पाया जाने वाला अणु है। इसमें मनुष्य की सभी आनुवांशिक जानकारियाँ होती हैं। हर किसी का डीएनए विशिष्ट होता है।
डीएनए विश्लेषण एक ऐसी तकनीक है जिससे दो डीएनए सैंपलों की तुलना कर देखा जाता है और पता किया जाता है कि क्या दोनों एक ही व्यक्ति से संबंधित हैं।
किसी के आनुवांशिक माता-पिता का निर्धारण करने, किसी आपदा या दुर्घटना में मारे गए लोगों की पहचान निर्धारित करने और हत्या या बलात्कार जैसे मामलों में भी इसका प्रयोग होने लगा है।
चर्चित मामले:
- दिल्ली के तंदूर हत्याकांड में डीएनए विश्लेषण की प्रमुख भूमिका रही थी।
- वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी और उनके जैविक पुत्र रोहित शेखर के मामले में भी डीएनए विश्लेषण की अहम भूमिका रही थी।
विधेयक की ज़रूरत?
इसका असल मक़सद आपराधिक मामलों में न्याय को ज़्यादा अचूक बनाना है। यानी डीएनए विश्लेषण से अपराध और अपराधियों पर ज़्यादा कड़ी लगाम लगाने की कोशिश की जाएगी।
भारतीय अदालतें पहले से ही विभिन्न मामलों में इसका प्रयोग कर रही हैं।
विश्व के सभी प्रमुख देशों में आपराधिक मामलों की जाँच में फॉरेंसिक सबूतों को काफ़ी अधिक महत्व दिया जा रहा है।
विधेयक की ख़ास बातें
केंद्र सरकार ने डीएनए सैंपल इकट्ठा करने, उनका विश्लेषण करने के लिए मानक प्रयोगशालाएं बनाने के साथ ही क्षेत्रीय और राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक बनाने का प्रस्ताव दिया है।
इस पूरी प्रक्रिया की देखरेख डीएनए बोर्ड करेगा।
डीएनए डेटा बैंक के मैनेजर कोर्ट या जाँच एजेंसियों के जाँच अधिकारियों (आईओ) को बैंक में मौजूद डीएनए सैंपलों का ब्योरा देंगे।
विवाद किन विषयों पर है?
- मौजूदा विधेयक का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि इस विधेयक में मानवाधिकार और निजता के उल्लंघन को लेकर पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं। आलोचकों का कहना है कि डीएनए प्रोफ़ाइलिंग विधेयक लाने से पहले सरकार को एक निजता विधेयक लाना चाहिए। हालांकि भारत के एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संविधान में निजता का अधिकार नहीं दिया गया है।
- मौजूदा विधेयक के अनुसार बलात्कार या बलात्कार के प्रयास जैसे आपराधिक मामलों में पीड़ित के जननांगों या आसपास से डीएनए सैंपल लेने के लिए उसकी इजाज़त लेने की बाध्यता नहीं होगी।
- मौजूदा विधेयक में डीएनए सैंपलों से मिले बॉयोमेट्रिक डेटा के दुरुपयोग की काफ़ी गुंजाइश रहेगी। इसे रोकने के लिए पर्याप्त क़ानूनी उपाय नहीं हैं।
- किसी व्यक्ति के डीएनए प्रोफ़ाइल में उसकी जाति का उल्लेख करने को लेकर भी काफ़ी आपत्तियाँ हैं। आलोचकों का कहना है कि इससे विभिन्न तरह की सामाजिक समस्या सामने आ सकती है। जैसे, ब्रितानी शासनकाल में कुछ आदिवासी जातियों को क़ानूनी तौर पर अपराधी ठहरा दिया गया था।
- मौजूदा विधेयक में डीएनए बोर्ड के अधिकार असीमित हैं। जबकि इस मामले में अंतिम अधिकार न्यायपालिका या विधायिका के पास ही होना चाहिए।
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