1- चंडिकादास अमृतराव देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे में ब्राह्मण परिवार में 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था। 

2- चंडिकादास अमृतराव देशमुख सार्वजनिक जीवन में नानाजी देशमुख के नाम से मशहूर थे। 
क्यों लड़ रही हैं डोनल्ड ट्रंप की पहली और तीसरी बीवी?

3- नानाजी के अन्दर शिक्षा और ज्ञान पाने की जबरदस्त इच्छा थी, इसके लिए उन्होने सब्जी बेचकर पैसे जुटाये, मन्दिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त की।

4- 1930 के दशक में वे आरएसएस में शामिल हो गये। महाराष्ट्र में जन्म लेने के बावजूद उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तरप्रदेश ही रहा। आरएसएस के सरसंघचालक श्री गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा। बाद में वे उत्तरप्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।

5- उन्होंने सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना थी जिसकी पहली शाखा गोरखपुर में शुरू हुई थी। 
किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

6- 1947 में, आरएसएस ने राष्ट्रधर्म और पांचजन्य नामक दो साप्ताहिक और स्वदेश नाम का हिन्दी समाचारपत्र निकालने का फैसला किया। अटल बिहारी वाजपेयी को सम्पादन, दीन दयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबन्ध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गयी।

7- उत्तरप्रदेश में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण शैली और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ बहुत तेजी से महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया। नानाजी के न सिर्फ अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी सम्बन्ध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फड़नवीस कहा करते थे। डॉ॰ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी।

8- उत्तरप्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
'स्वामी और उसके दोस्तों' के लिए 'मालगुड़ी डेज' रचने वाले

9- नानाजी, विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में से भी जुड़े रहे और वे जेपी आन्दोलन में भी जयप्रकाश नारायण के साथ थे। यहां तक कि जब जेपी पर पुलिस ने लाठियाँ बरसायीं तो नानाजी ने उनको सुरक्षित निकाल लिया था। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति को पूरा समर्थन दिया था।

1- चंडिकादास अमृतराव देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे में ब्राह्मण परिवार में 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था। 

 

2- चंडिकादास अमृतराव देशमुख सार्वजनिक जीवन में नानाजी देशमुख के नाम से मशहूर थे। 

क्यों लड़ रही हैं डोनल्ड ट्रंप की पहली और तीसरी बीवी?

 

3- नानाजी के अन्दर शिक्षा और ज्ञान पाने की जबरदस्त इच्छा थी, इसके लिए उन्होने सब्जी बेचकर पैसे जुटाये, मन्दिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त की।

शिक्षा,स्‍वास्‍थ्‍य और ग्रामीण आत्‍मनिर्भरता के नानाजी

4- 1930 के दशक में वे आरएसएस में शामिल हो गये। महाराष्ट्र में जन्म लेने के बावजूद उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तरप्रदेश ही रहा। आरएसएस के सरसंघचालक श्री गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा। बाद में वे उत्तरप्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।

 

5- उन्होंने सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना थी जिसकी पहली शाखा गोरखपुर में शुरू हुई थी। 

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

 

6- 1947 में, आरएसएस ने राष्ट्रधर्म और पांचजन्य नामक दो साप्ताहिक और स्वदेश नाम का हिन्दी समाचारपत्र निकालने का फैसला किया। अटल बिहारी वाजपेयी को सम्पादन, दीन दयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबन्ध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गयी।

शिक्षा,स्‍वास्‍थ्‍य और ग्रामीण आत्‍मनिर्भरता के नानाजी

7- उत्तरप्रदेश में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण शैली और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ बहुत तेजी से महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया। नानाजी के न सिर्फ अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी सम्बन्ध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फड़नवीस कहा करते थे। डॉ॰ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी।

 

8- उत्तरप्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा था।

'स्वामी और उसके दोस्तों' के लिए 'मालगुड़ी डेज' रचने वाले

शिक्षा,स्‍वास्‍थ्‍य और ग्रामीण आत्‍मनिर्भरता के नानाजी

9- नानाजी, विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में से भी जुड़े रहे और वे जेपी आन्दोलन में भी जयप्रकाश नारायण के साथ थे। यहां तक कि जब जेपी पर पुलिस ने लाठियाँ बरसायीं तो नानाजी ने उनको सुरक्षित निकाल लिया था। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति को पूरा समर्थन दिया था।

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