मृत्यु का विकल्प चुनने का अधिकार होना ही चाहिए
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से सही मानते है। उनका कहना है कि इसे काफी पहले ही लागू हो जाना चाहिए था। दुनिया के कई देशों में यह कानून पहले से ही लागू है। बात साफ है कि ऐसी स्थिति में किसी भी व्यक्ति के बारे में यह तय हो कि उसकी बीमारी पूरी तरह लाइलाज है। और वह तभी तक जीवित रह सकता है। जब तक वेंटीलेटर पर है। कारपोरेट हॉस्पिटल में वेंटिलेटर का चार्ज काफी अधिक होता है। जिसे परिवार को वहन करना पड़ता है। उन्हें उम्मीद भी रहती है कि मेरा मरीज ठिक हो सकता है लेकिन वह इस खर्च को वेयर नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में उसे मृत्यु का विकल्प चुनने का अधिकार होना ही चाहिए।
मेजर डॉ। एमक्यू बेग, एचओडी कैंसर विभाग बीआरडी

हालांकि अभी न्यायालय की गाइड लाइन का इंतजार

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। कहा कि जो मरीज लास्ट स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं उनकी बीमारी लाइलाज होती है। अगर ऐसे मरीज अपना अंग दान दे देते हैं तो अन्य मरीजों को इसका लाभ मिल सकता है। इच्छा मृत्यु के तत्काल बाद ऐसे मरीज के शरीर से कीडनी, हर्ट व लीवर निकाल जरूरतमंद मरीजों में प्रत्यारोपण कर उनका कल्याण किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन के आधार पर डॉक्टर्स का पैनल ही तय करेगा कि मरीज की कंडिशन क्या है। यदि इलाज लाइलाज है तो इस कंडिशन में इच्छामृत्यु का अधिकारी मिला चाहिए। हालांकि अभी न्यायालय की गाइड लाइन का इंतजार है।
डॉ। अश्रि्वनी मिश्रा, एचओडी टीबी व चेस्ट विभाग बीआरडी

असाध्य मरीजों को काफी कष्ट होता है
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है। इसका मैं स्वागत करता हूं। कई ऐसी बीमारियां हैं जिनकी चपेट में आने के बाद अंतिम समय में व्यक्ति पूरी तरह से लाचार हो जाता है। कुछ रोगों में वह बेड पकड़ लेता है। मरीज को वेंटिलेटर पर डाल दिया जाता। जबकि वह वेंटिलेटर पर मृत्यु के समान रहता है। अगर इज्जत से जीने का जिसे हक है। उसे इच्छा शर्तो पर मरने का भी अधिकार होना चाहिए। यदि फैमिली मेंबर्स तय करे कि मरीज को वेंटिलेटर पर न रखा जाए और वह मरीज की मौत के बाद तत्काल अंग दान कर दें तो अन्य मरीजों का कल्याण हो सकता है। असाध्य मरीजों को काफी कष्ट होता है। ऐसे में उन्हें इच्छामृत्यु का अधिकार मिलना चाहिए।
अभिषेक जीना, सर्जन एसोसिएट प्रोफेसर, बीआरडी मेडिकल कॉलेज

लिविंग विल के आधार पर लाइफ स्पोर्ट सिस्टम
जिले में अभी तक कोई ऐसा मरीज नहीं आया है जो लाइलाज हो और इच्छा मृत्यु चाहता हो। फिलहाल उच्चतम न्यायालय का जो आदेश आया है, उसका पालन होगा। कहा कि कोई भी मरीज डॉक्टर के पास इस उम्मीद के साथ आता है कि उसकी जान बचा लेगा। इस हालत में किसी भी डॉक्टर की आत्मा गवाही नहीं देगी कि वह किसी भी मरीज से सिर्फ लिविंग विल के आधार पर लाइफ स्पोर्ट सिस्टम हटा ले।
डॉ। कमलेश शर्मा, आई सर्जन सीतापुर आई हॉस्पिटल