- मरीजों को छोड़कर एमआर के साथ बातचीत करते हैं डॉक्टर

- मरीजों से पहले एमआर की खातिरदारी में लगे रहते हैं डॉक्टर

- एमआर द्वारा प्रिस्क्राइब दवाएं ही लिखते हैं अधिकतर डॉक्टर

Meerut: शहर की करीब भ्0 फीसदी पेशेंट लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने आती है। यहां पहुंचने वाले अधिकतर कमजोर वर्ग के लोग होते हैं। जहां हर साल लाखों मरीजों की ओपीडी होती है। हजारों ऑपरेशन होते हैं। इन सबके लिए सरकार लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन यहां डॉक्टर मरीजों को छोड़ दवाई कंपनी के एमआर में अधिक व्यस्त हैं। इनकी दवाइयों को प्रिस्क्राइब किया जाता है, जिसे मरीजों को बाहर से लेना पड़ता है।

मुनाफे का खेल

मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था पर हमेशा सवाल उठे हैं। हर साल यहां से निकलने वाले डॉक्टर्स विदेशों में भी अपना झंडा लहरा रहे हैं, लेकिन यहां की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है। हाल में मेडिकल कैंपस के अंदर मरीजों के लिए करोड़ों रुपए की नई इमरजेंसी शुरू हुई है, जिसके चलते पुरानी इमरजेंसी को ताला लगा दिया गया है। यहां आने वाले अधिकतर मरीजों को कभी पूरी दवाइयां नहीं मिलतीं। मरीजों को मेडिकल से अधिक बाहर की दवाइयां लिखी जाती हैं। ताकि डॉक्टर्स को दवाई कंपनी से मुनाफा मिल सके।

ओपीडी में लाखों मरीज

मेडिकल कॉलेज में भ्ब्0 बैड की व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेज में बीते साल ख्0क्ब् में म् लाख ब्ख् हजार 87ब् मरीजों की ओपीडी हुई। यानि एक महीने में आने वाले मरीजों की औसतन संख्या भ्फ् हजार भ्7फ् रही। इसके अनुसार हर रोज करीब क्भ्00 से क्800 मरीज की ओपीडी हो रही है, जिनमें से करीब ख्भ् हजार 9क्म् मरीजों को भर्ती किया गया था। इन भर्ती मरीजों में क्भ्ख्ख्क् के ऑपरेशन हुए। जिनमें 8फ्फ्9 लोगों के मेजर ऑपरेशन और म्88ख् लोगों के माइनर ऑपरेशन किए गए।

दवाइयों का सीन

देखा जाए तो यहां आने वाले मरीजों को पर्चे पर डॉक्टर्स द्वारा लिखी गई दवाइयां कभी पूरी नहीं मिलती। मेडिकल कॉलेज में मौजूद प्राइवेट स्टोर और कॉलेज परिसर के बाहर स्टोर्स पर मरीजों की भीड़ लगी रहती है। ये मरीज मेडिकल में डॉक्टर्स द्वारा लिखी गई दवाइयां खरीदते नजर आते हैं, जो इनको अंदर नहीं मिलती हैं। डॉक्टर्स भी मरीज को देखकर दवाएं लिखते हैं। जो अच्छा दिखता है उसको अधिकतर दवाएं बाहर से लिखते हैं। मेडिकल के पर्चे से अलग भी मरीजों को दवाइयां लिखी जाती हैं। जो बाहर ही मिलती हैं।

एमआर को तवज्जो

मेडिकल कॉलेज में एमआर के लिए तय समय रखा गया है। वह ओपीडी के बाद कभी भी डॉक्टर्स से मिल सकता है, लेकिन यहां तो एमआर की सुबह से ही भीड़ लग जाती है। डॉक्टर्स अपने रेजीडेंट्स पर तो इन एमआर को बुलाते ही हैं, लेकिन मेडिकल ओपीडी टाइम में भी ये एमआर डॉक्टर्स से मिलते हैं, जिससे परेशानी मरीजों को झेलनी पड़ती है। एमआर के कारण मरीजों को काफी देर इंतजार करना पड़ता है। मरीजों को लाइन में छोड़कर एमआर के साथ मीटिंग में डॉक्टर्स व्यस्त रहते हैं, जबकि यह गलत है।

एमआर से मिलता है गिफ्ट

मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स ओपीडी के समय में मरीज से ज्यादा एमआर को तवज्जो देते हैं, क्योंकि उनको इनकी कंपनी से अच्छा खासा गिफ्ट मिलता है। जो दवाइयां ये प्रिस्क्राइब करते हैं, उन पर भी इन्हें खासा कमीशन मिलता है। इसलिए डॉक्टर मरीज से अधिक एमआर के साथ समय व्यतीत करते हैं। अगर मरीज अपनी ओपीडी के लिए डॉक्टर्स से कहते हैं तो डॉक्टर उठकर यहां से दूसरी जगह चले जाते हैं, लेकिन एमआर को नहीं छोड़ते। ओपीडी समय में घंटों एमआर से डीलिंग होती है।

वर्जन

ऐसे तो मीडिया वाले भी आते हैं। एमआर भी अपना काम करते हैं, उनको रोका जाए तो वे मीडिया वालों को कहते हैं। अब किसको रोका जाए। काफी एमआर कॉलेज में बैठकर काम करवाते हैं। फिर भी इनकी व्यवस्था देखी जाएगी। एक समय के बाद ही मिलें।

- डॉ। केके गुप्ता, प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज