कुल बिक्री का महज तेरह फीसदी है जेनेरिक दवाओं की हिस्सेदारी

प्राइवेट प्रैक्टिस में लिखी जाती हैं ब्रांडेड दवाएं

खुद का मेडिकल स्टोर न होने पर ही नर्सिग होम्स मरीजों को देते हैं जेनेरिक दवाएं

ALLAHABAD: आपको जानकर ताज्जुब होगा कि शहर में कुल दवाओं की बिक्री का महज तेरह फीसदी हिस्सा ही जेनेरिक दवाओं का है। बाकी 87 फीसदी ब्रांडेड दवाएं ही बेची जाती हैं। इसमें प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स और नर्सिग होम्स का बड़ा रोल है। गिने-चुने नर्सिग होम्स हैं जो जेनेरिक दवाएं प्रिफर करते हैं। इस मनमानी के चलते मरीज महंगा इलाज कराने को मजबूर हैं। दवा व्यापारियों के मुताबिक डॉक्टर्स पहल करें तो जेनेरिक दवाओं की बिक्री बढ़ सकती है।

रोजाना पांच करोड़ का है दवा व्यवसाय

शहर में प्रतिदिन दवाओं का व्यवसाय पांच करोड़ रुपए का है। कुल 165 होल सेल और 1700 रिटेल शॉप मिलकर प्रतिदिन इतनी दवाएं बेचते हैं। यानी महीने में डेढ़ सौ करोड़ रुपए की दवाएं लोग खा जाते हैं। यह अलग बात है कि कुल बिक्री का महज तेरह ही जेनेरिक दवाएं बिकती हैं। मरीज के पर्चे में ब्रांड नेम लिखा होने के चलते मेडिकल स्टोर्स संचालक भी इन दवाओं को देना पसंद करते हैं। दवा व्यापारी बताते हैं कि दवाओं की एकमात्र होल सेल की बाजार लीडर रोड की है। यहां 165 होल सेल विक्रेता हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में भी दवाओं की सप्लाई करते हैं। प्रत्येक होल सेलर की एक दिन की बिक्री एवरेज दो लाख रुपए के आसपास है।

हर नर्सिग होम का है अपना मेडिकल स्टोर

दवा व्यापारी बताते हैं कि जेनेरिक दवाओं का तेरह फीसदी बाजार कुछ नर्सिग होम्स और गिने-चुने डॉक्टर्स के बलबूते चल रहा है। यह वह नर्सिग होम हैं जिनका अपना मेडिकल स्टोर नही है। इसलिए वह मरीज को जेनेरिक दवाएं लिख देते हैं। बाकी जिन नर्सिंग होम्स का अपना मेडिकल स्टोर है, वहां ब्रांडेड दवाएं ही बेची जाती हैं। इससे उनका लंबा-चौड़ा फायदा होता है। इसके अलावा शहर में कुछ डॉक्टर्स हैं जो जेनेरिक दवाएं लिखना पसंद करते हैं। बाकी ब्रांडेड दवाएं ही मरीज को खिलाने में रुचि रखते हैं।

डॉक्टरों के हिसाब से कंपनियां तय करती हैं पैकेज

दवा कंपनियों की मार्केट में जबरदस्त मोनोपोली है। दवा तैयार होने से लेकर मेडिकल स्टोर में बिक्री तक उनकी अचूक प्लानिंग होती है। सोर्सेज बताते हैं कि प्रसिद्धी के हिसाब से डॉक्टरों का पैकेज भी तय होता है। अगर कोई बड़ा डॉक्टर है तो कंपनियां उसे देश-विदेश टूर सहित महंगे गिफ्ट तक ऑफर करती हैं। मध्यम और छोटे डॉक्टरों को शॉपिंग कूपन, छोटे गिफ्ट और कमीशन तक दिया जाता है। ये कंपनियां दवाओं के प्रमोशन को लेकर एमआर पर काफी खर्च करती हैं। यह एमआर डॉक्टरों को कंपनी की दवाएं लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रॉसेस में जितना खर्च आता है, उसकी भरपाई मरीजों से महंगी ब्रांडेड दवाओं की आड़ में वसूला जाता है। जबकि जेनेरिक दवाओं का दाम सरकार तय करती है और इनका प्रचार-प्रसार नही होता। इसलिए मरीज चाहकर भी सस्ता इलाज नही करवा पाता।

165 होल सेल की कुल दुकानें रजिस्टर्ड

1700 रिटेल शॉप हैं जिले भर में

05 करोड़ रुपए प्रतिदिन है दवा का कारोबार

जेनेरिक दवाओं का कुल हिस्सा- 13 फीसदी

02 फीसदी ही बढ़ी एक साल में जेनेरिक दवाओं की डिमांड

87 फीसदी मार्केट पर ब्रांडेड दवाओं का कब्जा

मेडिकल स्टोर्स में ब्रांडेड और जेनेरिक, दोनों दवाएं मौजूद रहती हैं। इनके दाम में अंतर भी है लेकिन डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं ही लिखते हैं। इसकी वजह से उनकी मार्केट में डिमांड अधिक है। कुछ मरीज जरूर जेनेरिक दवाएं मांगते हैं जो उपलब्ध करा दी जाती हैं।

परमजीत सिंह,

महामंत्री, इलाहाबाद ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन

जेनेरिक दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को आगे आना होगा। जब तक वह पर्चे पर सस्ती दवाएं नही लिखेंगे मरीज का भला नही होगा। यही कारण है कि शहर में जेनेरिक का बाजार काफी कम है।

तरंग अग्रवाल,

आर्गनाइजिंग सेक्रेटरी, इलाहाबाद ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन

पिछले एक साल में जेनेरिक दवाओं की बिक्री में थोड़ा इजाफा हुआ है। लेकिन, इसके मुकाबले ब्रांडेड दवाओं की बिक्री अधिक है। इस अंतर को कम करने के लिए लोगों को अवेयर होना होगा।

अजय दुबे,

दवा व्यापारी