-भूकंप के झटकों से शहर के हॉस्पिटल्स में मरीजों का इलाज प्रभावित

-ओपीडी और ओटी छोड़कर भागे डॉक्टर और स्टाफ

ALLAHABAD: जान सभी को प्यारी होती है। फिर वह धरती के भगवान यानी डॉक्टर ही क्यों न हों। जी हां, शनिवार को भूकंप के झटकों से शहर के हॉस्पिटल्स में भर्ती मरीजों की शामत आ गई। डॉक्टर-स्टाफ ही नहीं परिजन भी इधर-उधर भागते नजर आए। मजबूरी के मारे मरीज इस बीच बेड राम का नाम जपते रहे। गनीमत थी कि इन झटकों से किसी प्रकार की जान-माल की हानि नहीं हुई।

क्या हुआ भईया, क्यों भाग रहे हो

ओटी में ऑपरेशन की तैयारियंा चल रही थीं तो कहीं ओपीडी में मरीजों की लंबी लाइन लगी थी। इसी बीच भागो भूकंप आया का शोर मचने लगा। एसआरएन हॉस्पिटल में भगदड़ मच गई। माजरा देख डॉक्टर भी समझ गए कि ये झटके जान माल की हानि पहुंचा सकते हैं। सभी जान बचाकर भागने लगे। जो मरीज चलने की हालत में थे वह परिजनों के सहारे से किसी तरह हॉस्पिटल कैंपस के बाहर आ सके। काफी देर तक कैंपस के बाहर भारी मजमा लगा रहा। किसी में अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

माहौल देखकर नहीं उठा गया

सुलेमसराय निवासी सुनील पटेल शनिवार को एसआरएन हॉस्पिटल में इलाज कराने गया था। इसी बीच हॉस्पिटल की सीढि़यों पर चक्कर आने वह गिर गया। इससे पहले कि उठने की कोशिश करता, चारों ओर भूकंप का शोर मचा और झटके लगने लगे। ऐसे में उसकी दोबारा उठने की हिम्मत नहीं हुई। देखते ही देखते ओपीडी पूरी तरह खाली हो गई।

मरीज को छोड़कर भागे परिजन

प्रतापगढ़ के जेठवारा से आए राजीव मिश्रा को इमरजेंसी में टांके लगाए जाने थे। इससे पहले कि इलाज शुरू होता, भूकंप आते ही डॉक्टर वहां से भाग निकले। परिजन भी नौ दो ग्यारह हो गए। असहाय राजीव ये सब अपनी आंखों से देख रहे थे। बीस मिनट बाद उन्हें टांके लगाए जा सके। सर्जिकल वार्ड में भर्ती बहरिया के मानिक चंद्र यादव बताते हैं कि अचानक बिस्तर हिलने लगा। सब लोग छोड़कर भाग निकले। मजबूरीवश वह पलंग पर पड़े भगवान से अपनी जान की रक्षा की गुहार लगाते रहे। इसी तरह मेजा निवासी श्रीकांत ने अपनी बहू प्रियंका को गायनिक वार्ड में भर्ती करा रखा है। वह चाय लेने बाहर गए थे तभी भूकंप आ गया। वापस लौटे तो देखा कि रिश्तेदार गैलरी में खड़े हैं और वार्ड में सन्नाटा पसरा है।

बॉक्स

जैसे-तैसे आए बाहर

सरकारी सहित प्राइवेट हॉस्पिटल्स में भी यही हालात रहे। मरीज किसी तरह परिजनों की सहायता से बाहर लाए गए। तो कहीं पर वह असहाय रहे। इससे पहले कि हॉस्पिटल प्रबंधन कुछ सोचता। झटके लग चुके थे और माहौल सामान्य हो चुका था।