चरमपंथियों की गोलियों से बची कश्मीरी जनता अब गली के कुत्तों से परेशान है। कश्मीर में गली के कुत्तों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है और ये लोगों को बहुत अधिक परेशान कर रहे हैं।

ये लगातार राहगीरों पर हमला करते हैं, साइकिल चलाने वालों को गिराते हैं और यहां तक कि गश्त करते सैनिक भी इन कुत्तों के निशाने पर होते हैं।

स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार अब तक 53, 925 लोगों को कुत्ते काट चुके हैं जिनमें से अधिकतर बच्चे हैं। पिछले चार साल में दस ज़िलों में कुत्तों का शिकार हुए इन लोगों में से कई तो रेबीज़ के कारण मर भी चुके हैं। श्रीनगर के एंटी रेबीज़ क्लिनिक के अनुसार पिछले तीन साल में ही 12 लोग कुत्तों के काटने से मरे हैं।

जम्मू कश्मीर में कुत्तों से लोग इस कदर परेशान हैं कि मामला राज्य के मानवाधिकार आयोग तक पहुंच चुका है और आयोग ने इसे मानवाधिकार उल्लंघन करार दिया है।

12 साल के मुदासिर अहमद वागनू पर दो दर्जन कुत्तों ने हाल ही में हमला किया था और उन्हें 125 बार काटा गया। कुत्तों ने वागनू की गर्दन, चेहरे, श्वास नली, दिल और कई अन्य हिस्सों को नुकसान पहुंचाया था।

सैयद सजद हुसैन ने मुदासिर को कुत्तों से बचाया था। हुसैन बताते हैं कि ‘‘ये नज़ारा कुछ एनीमल प्लानेट जैसा था जहां कई सारे भेड़िए अपने शिकार को दबोचते हैं.’’ मुदासिर बच गए लेकिन पुलवामा के चार वर्षीय सहराब वागे बच नहीं पाए।

स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ सलीम उर्र रहमान कहते हैं, ‘‘ये बहुत बड़ा खतरा है। अस्पतालों में हम एंटी रेबीज़ ड्रग देते हैं लेकिन नगर निगम अधिकारियों को कार्रवाई करनी ही होगी.’’

नगर निगम के अनुसार श्रीनगर में ही 90 हज़ार से अधिक कुत्ते हैं। अन्य ज़िलों में कुत्तों की कभी गिनती नहीं हुई जहां लोगों के काटे जाने की घटनाएं अधिक होती हैं।

स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार घाटी में कुत्तों की संख्या दस लाख से ऊपर है जिसके कारण कुत्तों और आदमी के बीच संघर्ष शुरु हो गया है। कुछ समय पहले श्रीनगर में लोगों ने प्रदर्शन किया था और कुत्तों को मारने की मांग की थी।

जाने माने कवि ज़रीफ अहमद ज़रीफ ने इन प्रदर्शनों की अगुआई की थी। उन्होंने बीबीसी से कहा, ‘‘ इतने साल की असफलता के बाद सरकार को कुछ करना चाहिए.’’

ज़रीफ के भाई को पूर्व में कुत्ते काट चुके हैं। वो कहते हैं, ‘‘ सरकार और जानवरों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को लगता है कि हम लोग इंसान ही नहीं हैं.’’

जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाएं कुत्तों को मारने का विरोध करती हैं और उन्हें स्टरलाइज़ करने की बात करती हैं। कुत्तों को पिजड़ों में रखने का प्रस्ताव भी दिया जा चुका है लेकिन लोगों का कहना है कि वो हज़ारों कुत्तों का भौंकना बर्दाश्त नहीं कर सकते।

कुत्तों का खतरा सिर्फ़ शहर तक नहीं है बल्कि दाचीगाम नेशनल पार्क में कई हिरन इन कुत्तों का शिकार हुए हैं। हालात यहां तक ख़राब हो गए थे कि राज्यपाल एनएन वोहरा को निर्देश देने पड़े कि कुत्तों को नेशनल पार्क के इलाक़े से हटाया जाए।

इस मामले का एक और पहलू ये भी है कि घाटी में तैनात सेना पर इन कुत्तों को खिलाने पिलाने का आरोप लगता रहा है। सेना आम तौर पर जब अंधेरे में काम करती है तो वो पहली रक्षा पंक्ति के तौर पर सड़क के कुत्तों की मदद लेती है।

नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि सेना कुत्तों को जानबूझकर अधिक खाना देती है ताकि वो उनके लिए जासूसी कर सकें।

हालांकि अर्धसैनिक बलों के प्रवक्ता इसका खंडन करते हैं। प्रवक्ता मोहसिन शाहिद का कहना था कि ये कुत्ते अर्धसैनिक बलों के लिए खतरा बन गए हैं क्योंकि कुत्ते तंबू में घुसकर सैनिकों पर भी हमला कर रहे हैं।

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