भारत और पाकिस्तान की सीमा पर अक्सर फ़ायरिंग की खबरें आती हैं और आए दिन दोनों पक्षों के जवान भी मारे जाते हैं। जबकि चीन के साथ तनाव होने बावजूद बात हाथापाई से आगे नहीं बढ़ती। ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान और भारत की सीमा पर सैनिकों में वह संयम क्यों नहीं दिखता जो चीन और भारत की सीमा पर दिखता है?

चीन में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता बताते हैं कि भारत और चीन ने समझौतों के तहत तय किया है कि मतभेद कितने भी हों, बॉर्डर पर हम उत्तेजना पर काबू रखेंगे। उन्होंने बताया कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री

अटल बिहारी वाजपेयी चीन आए थे, तब दोनों देशों ने आधारभूत राजनीतिक मापदंड तय किए गए थे, जिन्हें बाद में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोहराया गया।

 चीन सीमा पर तनाव के बावजूद गोली क्यों नहीं चलती?

 

सैनिकों की तैनाती के लिए तय हैं ख़ास नियम
सैबल बताते हैं, 'दोनों देशों ने यह तय किया है कि फ्रंटलाइन पर जो भी सैनिक तैनात होंगे, उनके पास या तो हथियार नहीं होंगे और अगर रैंक के हिसाब से अफ़सरों के पास बंदूक होगी तो उसका नोज़ल मोड़कर ज़मीन की तरफ़ किया गया होगा। इसीलिए आज आप देखें तो वीडियो में ये सैनिक कुश्ती करते नज़र आते हैं, मगर कभी गोली नहीं चलती।' उन्होंने कहा कि इस तरह का कोई समझौता पाकिस्तान के साथ नहीं हुआ है।

भारत और चीन के सैनिकों के बीच जब कभी हाथापाई की नौबत आती भी है, तो उसमें कुछ बातों का ख़ास ख़्याल रखा जाता है। सैबल बताते हैं कि चीन और भारत के सैनिकों के जो वीडियो सामने आए हैं, उन्हें ध्यान देखा जाए तो वे बच्चों की तरह कुश्ती करते दिखते हैं। उन्होंने बताया, 'वे एक-दूसरे को धकेलते हैं, गिरते हैं, उठते हैं। आपने देखा होगा कि कोई किसी को थप्पड़ नहीं मारता। थप्पड़ मारना अपमान का प्रतीक होता है। इसलिए वे अपने हाथ को भी इस्तेमाल नहीं करते। अगर ऐसा हुआ तो वे गुस्से पर नियंत्रण खो देंगे।'

चीन सीमा पर तनाव के बावजूद गोली क्यों नहीं चलती?

 

लगातार समझौते करते रहे हैं भारत और चीन
मेजर जनरल (रिटायर्ड) अशोक मेहता बताते हैं कि 1975 में आख़िरी बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच गोली चली थी। इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ था मगर इसके बाद से अब तक ऐसी घटना नहीं दोहराई गई। वह बताते हैं कि लगातार समझौते करके भारत और चीन ने लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल पर समस्याओं को बैकबर्नर पर डाल दिया है।

वह बताते हैं, '1993 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए मेनटेनेंस ऑफ पीस ऐंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर दस्तख़त हुए, उसके बाद 1996 में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स पर समझौता हुआ। इसके बाद 2003, 2005 में भी समझौते हुए। 2013 में बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ जो सबसे ताज़ा समझौता है।'

उनका कहना है कि जहां भारत और चीन की सीमा तय नहीं है, वहां पर दोनों शांति बनाए रखते हैं और इन समझौतों की वजह से ही कोई गोली नहीं चली है। उन्होंने कहा, 'दोनों देशों ने तय किया है कि जब हमारे आर्थिक और नागरिक संबंध अच्छे और परिवक्व हो जाएंगे, तब जाकर हम सीमाओं के मसले सुलझाएंगे।'

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पाकिस्तान के साथ नहीं है ऐसा कोई समझौता
अशोक मेहता कहते हैं कि पाकिस्तान से 1949 के आख़िर में कराची समझौते के तहत सीज़फ़ायर लाइन मार्क की गई थी। 1965 साल की लड़ाई में भी इस लाइन में कोई तब्दीली नहीं आई मगर 1971 में जब भारत के पास पाकिस्तान के 90 हज़ार सैनिक युद्धबंदी थे, तब सीज़फ़ायर लाइन को लाइन ऑफ़ कंट्रोल बनाया गया। उन्होंने कहा कि इस लाइन पर सीज़फ़ायर को लेकर कोई अग्रीमेंट नहीं रहा।

उन्होंने कहा, 'जब मुशर्रफ प्रेसीडेंट और आर्मी चीफ़ थे, तब नवंबर 2003 में पाकिस्तान की तरफ से एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग आया कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल के ऊपर सीज़फायर होना चाहिए। और मुशर्रफ साहब जब तक प्रेजिडेंट थे, वह सीज़फायर कायम रहा और 80 फ़ीसदी कामयाब भी रहा। मगर 2008 में वह प्रेसीडेंट नहीं रहे और समझौते का महत्व घटता चला गया। आज हालात ये हैं कि लाइन ऑफ कंट्रोल आज लाइन ऑफ नो कंट्रोल बन गया है। यहां पर सीज़फायर नहीं है।'

वहीं पाकिस्तान को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता बताते हैं कि नवाज़ शरीफ और नरेंद्र मोदी ने तमाम मसलों के बावजूद पहल तो की थी। मगर पाकिस्तान और भारत में कुछ ऐसे तत्व हैं, खासकर टीआरपी के पीछे पड़ा रहने वाला मीडिया, जो आग लगाने में लगा रहता हैं। इससे भी शांति बने रहने की संभावना कम हो जाती है। उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान हमारे लिए ऑब्सेशन है और कश्मीर पाकिस्तानियों के लिए। इसके बाहर वे सोच नहीं सकते।'

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मगर अब टूटता दिख रहा है संयम

पिछले दिनों लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच कथित पत्थरबाज़ी का एक वीडियो सामने आया था। क्या दोनों देशों के सैनिकों का संयम टूट रहा है? इस बारे में सैबल चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, 'अगर वाकई ऐसा हुआ है तो शांति का सिलसिला टूट रहा है और भयानक परिस्थिति की तरफ़ हम जा रहे हैं।

उन्होंने कहा, 'चीन और भारत की तरफ से जो सैनिक तैनात हैं, वे 21-22 साल से युवा लड़के हैं। उनके भी परिवार हैं, जो रेडियो सुनते हैं, टीवी देखते हैं। मीडिया उत्तेजना फैला रहा है, जिसका असर उनपर भी पड़ता है। उनकी सरकार कितना भी कहे कि शांति बनाए रखो, मगर संयम टूट सकता है और ग़लती हो सकती है।'

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कैसे बनी रह सकती है शांति?
सैबल बताते हैं कि रिस्क बढ़ता जा रहा है क्योंकि गतिरोध दो महीनों से ज़्यादा वक़्त हो गया है। उनका मानना है कि इन हालात से निपटने के लिए तात्कालिक कदम उठाने चाहिए। उन्होने कहा, 'सीमा विवाद को हल करना लंबी कहानी है और चलती रहेगी। मगर अभी इस तनाव को दूर करना ज़रूरी है कि कहीं गोली न चली जाए।'

उन्होंने कहा, 'दोनों देशों के शीर्ष नेताओं, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐलान करें कि बॉर्डर पर चाहे कुछ भी हो रहा हो, हम दोनों देशों का रिश्ता हमारे लिए मायने रखता है। इससे तैनात सैनिकों तक यह बात पहुंचेगी कि हमारे लिए ये रिश्ते अहमियत रखते हैं, बेशक आज गहमागहमी हो रही है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम लड़ मरें।'

 

सैबल बताते हैं कि जिनपिंग और मोदी ने इस दिशा में कोशिश तो की है मगर उन्होंने ऐसा कुछ साफ़ संदेश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि दोनों नेता एक बड़ी राजनीतिक गलती करने जा रहे हैं और इससे भयानक हालात पैदा हो सकते हैं।

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