- बीते कुछ वक्त में विदेश जाने का ग्राफ घटा

- देश में रहकर काम करना पसंद कर रहे युवा

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DEHRADUN: इंजीनियरिंग के बाद बेहतर पैकेज, विदेशों में नौकरी की चाहत और डॉलर में सैलेरी का क्रेज अब घटने लगा है। युवा इंजीनियर्स को देश में ही रहकर काम करना पसंद आ रहा है। यह हम नहीं बल्कि आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। बीते कुछ सालों पर नजर डालें तो विदेशों में जाकर नौकरी करने वाले युवा इंजीनियर्स की संख्या में गिरावट आई है। मिनिस्टरी ऑफ ह्यूमन रिसोर्स डवलपमेंट द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के बेहतरीन आईआईटी संस्थानों से इंजीनियरिंग करने के बाद फॉरन जाकर नौकरी करने वालों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। आईआईटी मद्रास, रुड़की, बॉम्बे, खड़गपुर आदि तकरीबन सभी संस्थानों में यह कमी देखी गई।

मेक इन इंडिया का चल रहा जादू

विशेषज्ञों की मानें तो विदेशों में जाकर नौकरी करने का क्रेज कम होने का एक बड़ा कारण देश में बेहतर सुविधा और मौके उपलब्ध होना है। दरअसल बीते कुछ वक्त में देश में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी और बड़े बदलाव आए हैं। जिसके चलते यहां काम करने के मौकों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। मेक इन इंडिया योजना के तहत देश में ही विभिन्न परियोजनाएं और आईटी सेक्टर की इंडस्ट्रीज को बढ़ावा मिला। इसी के चलते युवा देश में रहकर बेहतर पैकेज और देश सेवा दोनों का चुनाव करने में सहज महसूस कर रहे हैं। अकेले आईआईटी दिल्ली की बात की जाए तो यहां बीते चार साल में विदेश जाने का ग्राफ 7.म्म् से घटकर आधा यानि फ्:क्9 परसेंट ही रह गया है। इसी प्रकार रुड़की, कानपुर, मद्रास और खड़गपुर आदि संस्थानों में भी विदेश की चाह रखने वाले युवाओं की संख्या कम आंकी गई है।

आंकड़ों में घटा विदेश जाने का क्रेज

संस्थान साल विदेश जाने वाले स्टूडेंट्स (परसेंटेज में)

आईआईटी दिल्ली ख्0क्ख्-क्फ् 7.म्म् परसेंट

ख्0क्फ्-क्ब् 7.ख्8 परसेंट

ख्0क्ब्-क्भ् भ्.ख्9 परसेंट

ख्0क्भ्-क्म् फ्.क्9 परसेंट

आईआईटी बॉम्बे ख्0क्ख्-क्फ् भ्.म्7 परसेंट

ख्0क्फ्-क्ब् म्.7ख् परसेंट

ख्0क्ब्-क्भ् भ्.क्ब् परसेंट

ख्0क्भ्-क्म् ब्.भ्म् परसेंट

नोट: केवल दो संस्थानों के आंकड़े, अन्य संस्थानों के आंकड़ों में भिन्नता हो सकती है।

देश में ही बेहतर सुविधाएं और संसाधनों के साथ अच्छा पैकेज युवाओं को उपलब्ध हो रहा है। यही कारण है कि इंजीनियरिंग के युवाओं में विदेशों में नौकरी करने का क्रेज कम हो रहा है।

----- प्रो। पीके गर्ग, वाइस चांसलर, उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी

विदेशों में जिस प्रकार बाहरी युवाओं के साथ घटनाएं घट रही हैं उसका भी असर आंकड़े को प्रभावित कर सकता है। युवाओं के बीच इसे लेकर खासा रोष भी बीते दिनों देखने को मिला है। इसके अलावा जब देश में ही बेहतर विकल्प होंगे तो युवा अपने देश में ही रहकर देश को अपनी सेवाएं समर्पित करना ज्यादा पसंद करेंगे।

----- प्रो। प्रमोद कुमार, डायरेक्टर, तुलाज इंस्टीट्यूट