-रिसर्च टीम का दावा- 81 सैंपल में नहीं मिला एक 5ाी एंट्रो वायरस, 35 साल से अंधेरे में तीर चला रहे हैं जि6मेदार
- बै1िटरियल इंफे1शन पॉसिबल, लेकिन अब 5ाी इंसेफेलाइटिस की सही वजह पता नहीं
-एमएमएमयूटी ने रिसर्च कर किया दावा, दूसरे ऑप्शन के तलाश ने लिए आगे रिसर्च जरूरी
GORAKHPUR: पूर्वी उत्तर प्रदेश की परेशानी का सबब बन चुके इंसेफेलाइटिस को लेकर एमएमएमयूटी ने बेहद चौंकाने वाले 2ाुलासे किए हैं। रिसर्च टीम का दावा है कि पीने के पानी की वजह से इंसेफेलाइटिस होने का प्रमाण नहीं है। अगर टीम का दावा सही है तो अब यही कहा जाएगा कि सूबे के जि6मेदार 35 साल से सिर्फ हवा में तीर चला रहे हैं और गलत इलाज कर रहे हैं। साथ ही सरकार का ला2ाों रुपए बर्बाद कर रहे हैं।
लिए गए थे 81 सैंपल
एमएमएमयूटी एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग के पीजी स्टूडेंट पीयुष गुप्ता ने एईएस अफे1टेड एरियाज में बायोलॉजिकल पैरामीटर्स पर पानी का असेसमेंट किया। इस दौरान उन्होंने उन स्पॉट्स से सैंपलिंग की, जिस घर के बच्चों को इंसेफेलाइटिस हुआ था। तीन 4लॉक के तीन-तीन गांव से तीन-तीन सैंपल इकट्ठा किए। टोटल सैंपलिंग की बात करें तो इनकी सं2या 81 हो गई। इसमें तीन सैंपल शैलो हैंड पंप से, तीन इंडिया मार्क-2 हैंड पंप से और तीन वहां के वॉटर लॉगिंग वाले एरिया में मौजूद हैंडपंप से लिए गए। इतना ही नहीं साल में सैंपल को तीन बार यानि सर्दी, गर्मी और बरसात के दौरान किया गया।
अफे1टेड एरिया में नहीं मिला वायरस
सैंपल कले1ट करने के बाद पानी की जांच की गई। इसमें लिए गए 81 सैंपल्स में से कहीं 5ाी एंट्रोवायरस नहीं मिला। हां, कुछ ऐसे सैंपल जरूर मिले, जिसमें बै1टेरिया प्रेजेंट थे, लेकिन इनकी वजह से इंसेफेलाइटिस हो रहा है, इस बात की पुष्टि नहीं हुई। इसमें 2ाोराबार 4लॉक के 33 फीसदी शैले डेप्थ हैंडपंप और 11 परसेंट इंडिया मार्क-2 हैंडपंप में पानी पीने के लायक नहीं मिला, लेकिन किसी 5ाी सैंपल से इंसेफेलाइटिस फैलाने वाले एंट्रोवायरस नहीं मिले।
इन 4लॉक से सैंपलिंग
2ाोराबार
कैंपियरगंज
चरगांवा
इन गांव में से सैंपल किए कले1ट
2ाोराबार -
5ौंसा गोला, पांडेयजी का गोला, शिवपुर
कैंपियरगंज -
रामनगर, सरपटहा, शिवपुर करमहा
चरगावां -
अमवा, फतेहपुर, सरैया
इनसे लिए सैंपल -
शैलो हैंडपंप - 27
इंडिया मार्क2 - 27
हैंडपंप नियर वॉटर लॉगिंग एरिया - 27
बॉ1स -
दस साल में सैकड़ों ने हारी जिंदगी की जंग
इंसेफेलाइटिस का कहर गोर2ापुर और आसपास में यूं तो कई सालों से हैं। हर साल मासूम काल के गाल में समा जा रहे हैं। पिछले दस सालों की बात करें तो इस पीरियड में करीब डेढ़ हजार मासूम जिंदगी की जंग हार चुके हैं। वहीं इस बीमारी के कहर की चपेट में आने वालों की तादाद 5ाी थमने का नाम नहीं ले रही है। सिर्फ 2017 की बात करें तो इस दौरान मौत का आंकड़ा शतक मार चुका है, जबकि इस बीमारी की चपेट में सात सौ से ज्यादा मरीज आए हैं और अब 5ाी जिंदगी और मौत की जंग लड़ने को मजबूर हैं।
साल अफे1टेड मौत
2007 758 114
2008 751 139
2009 751 139
2010 997 132
2011 931 167
2012 775 164
2013 598 158
2014 692 187
2015 487 89
2016 655 127
2017 778 103 (नवंबर तक)
इनके डायरे1शन में हुई रिसर्च
-गोविंद पांडेय, असोसिएट प्रोफेसर, सिविल इंजीनियरिंग, एमएमएमयूटी
-मिलिंद एम गोरे, साइंटिस्ट एफ, ऑफिसर इन चार्ज, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, बीआरडीएमसी
-डीके श्रीवास्तव, प्रोफेसर एंड हेड, डिपार्टमेंट ऑफ क6युनिटी मेडिसिन, बीआरडीएमसी
-बीआर मिश्रा, साइंटिस्ट बी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, बीआरडीएमसी
वर्जन
इंसेफेलाइटिस वॉटर बॉर्न है, यह अ5ाी तय नहीं है। स्टूडेंट पीयुष गुप्ता ने रिसर्च की थी, जिसमें तीन 4लॉक से 81 सैंपल कले1ट किए गए। इसमें किसी 5ाी सैंपल में एईएस के लिए जि6मेदार एंट्रोवायरस नहीं मिला। कुछ बै1िटरियल ग्रोथ पाई गई, लेकिन यह इंसेफेलाइटिस की वजह नहीं है।
- डॉ। गोविंद पांडेय, असोसिएट प्रोफेसर, एमएमएमयूटी