तीन शब्दों से हुई पहचान और मिल गया परिवार

छह महीने से मेडिकल के डेस्टिट्यूट वार्ड में रह रही परिवार से बिछड़ी दुर्गा

ट्रेन हादसे में खोने पड़े पैर, आशा ज्योति केंद्र की टीम ने दो दिन में ढूंढा परिवार

Meerut। बीते छह महीने से अपनों के लिए तरस रही एक महिला को महज तीन शब्दों ने दो दिन में अपने परिवार से मिला दिया। मेडिकल के डेस्टिट्यूट वार्ड में एडमिट इस महिला ने अपने पैर जरूर खो दिए, लेकिन उसकी आंखों ने अपनों से मिलने की उम्मीद नहीं छोड़ी।

यह है मामला

बिहार के पश्चिमी चंपारण अंचल स्थित पूझापटजिरवा गांव निवासी दुर्गा उर्फ लुगदी देवी 6 महीने पहले बागपत में हादसे की शिकार हो गई थी। उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजा गया लेकिन वहां से मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। पैरों में चोट अधिक होने की वजह से इलाज के दौरान डॉक्टर्स को उसके दोनों पैर काटने पड़े। इस दौरान महिला के साथ कोई परिजन या जानकार भी नहीं था, डॉक्टर्स व स्टॉफ ने कई बार महिला से घर का पता, परिवार आदि के बारे में पूछा, लेकिन वह ठीक से कुछ नहीं बता पा रही थी, महिला की खराब मानसिक स्थिति को देखते हुए उसे डेस्टि्टयूट वार्ड में शिफ्ट किया गया।

ऐसे हुई पहचान

मेडिकल कॉलेज परिसर में स्थित आशा ज्योति केंद्र की संचालक निधि मलिक ने बताया कि बीते बुधवार को महिला भटकते हुए उनके केंद्र में आई थी। टीम की तनिशा ने महिला से बात की लेकिन वह ठीक से कुछ नहीं बता पा रही थी। तनिशा ने बातचीत का वीडियो बनाया और गोरखपुर, चंपारण नाम सुनकर उसी इलाके के कुछ लोगों को भेज दिया। महिला की बोली समझकर उसके गांव का पता लगाया व वहीं से सोशल एक्टिविस्ट की टीम ने उसके परिवार को ढूंढ लिया।

गलत ट्रेन में चढ़ गई थी

महिला के परिवार में पति, सास, ससुर व 6 बच्चे है। पति कमलेश ने बताया कि महिला मानसिक रूप से ठीक नहीं थी। वह गोरखपुर गई थी, लेकिन गलत ट्रेन में चढकर बागपत पहुंच गई।

महिला के पास सामान नहीं था इसलिए कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। यहां उसका इलाज और देखभाल की जा रही थी। आशा ज्योति केंद्र की टीम ने उसके परिवार को ढूंढ निकाला। जल्दी ही उसे भेजा जाएगा।

डॉ। अजीत चौधरी, सीएमएस, मेडिकल कॉलेज