- किचन से निकलता है सत्तर फीसदी प्लास्टिक वेस्ट

- प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर्यावरण के साथ ही सोसाइटी के लिए है बेहद जरूरी

ALLAHABAD: ख्ख् अप्रैल को अर्थ डे से पहले हम आपको एक ऐसे टॉपिक पर लगातार अवेयर कर हैं जो सोसाइटी के लिए बेहद इम्पार्टेट है। आगे की कड़ी में हम आपको इससे जुड़े विकल्पों के बारे में भी बताएंगे। लेकिन इससे पहले यह जान लेना जरूरी है कि अगर आम आदमी चाह ले तो वह भी प्लास्टिक कचरे के मैनेजमेंट को अपने हाथों में ले सकता है। जरूरत है तो बस थोड़ी सी इच्छाशक्ति की। इसका शुभारंभ हम अपने घर से ही कर सकते हैं।

हर घर में होनी चाहिए डस्टबिन

नेशनल इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर के अध्ययन में यह पहले ही सामने आ चुका है कि प्रति व्यक्ति प्रति दिन 0.ब्0 किलोग्राम कूड़ा पैदा किया जा रहा है। इसमें प्रति व्यक्ति प्लास्टिक जनरेशन की मात्रा चार ग्राम है। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि प्लास्टिक वेस्ट से संबंधित सबसे ज्यादा कचरा किचन से ही निकलता है। दूसरे सोर्सेज की तुलना में किचन से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्ट की मात्रा साठ से सत्तर फीसदी है। यह बात इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ज्योग्राफी डिपार्टमेंट में हुए एक अध्ययन में भी सामने आया है।

सही डिस्पोजल, बेहतर स्वास्थ्य

एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक प्लास्टिक के सही डिस्पोजल के लिए प्रत्येक घर में एक डिब्बा बंद डस्टबिन का होना बेहद जरूरी है। जिससे पैदा होने वाली संभावित दुर्गध और कीटाणुओं से होने वाली बीमारी से बचा जा सके। विशेषज्ञ बताते हैं कि कीचड़ के साथ मिलकर बनने वाले टाक्सिक एलीमेंट स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं। प्लास्टिक के सही डिस्पोजल से लोगों को आर्थिक फायदा यह होगा कि उसे कबाडि़यों को अच्छी कीमत पर बेचा जा सकता है।

ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी हो डेवलप

इस बावत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। एआर सिद्दीकी कहते हैं कि प्लास्टिक एक ठोस अपशिष्ट पदार्थ है। जिसके जनरेशन आस्पेक्ट की पहचान जरूरी है। इसके बाद बात आती है सोर्सेस एंड टाईप्स की, जोकि रिहायसी, कामर्शियल एंड इंडस्ट्रियल कुछ भी हो सकता है। डॉ। सिद्दीकी कहते हैं कि इलाहाबाद में स्टोरेज एक बड़ी समस्या है और कोई कलेक्शन का सिस्टम भी डेवलप नहीं है। प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन के लिए प्रबंधन की प्रणाली और ट्रांसपोर्ट सिस्टम का होना जरूरी है।

पॉपुलेशन का रखना चाहिए ध्यान

डॉ। सिद्दीकी कहते हैं कि प्लास्टिक वेस्ट के कलेक्शन का काम सरकारी हो या गवर्नमेंट, जरूरी है कि कचरे का डंपिग प्वाइंट रिहायसी एरिया से हटकर बनाया जाए। जिससे कचरा आबादी के एरिया से हटकर ले जाया जा सके। जबकि सिटी में ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। यहां स्वीपर की नियुक्ति भी रोड लेंथ और पापुलेशन के मुताबिक नहीं है। उन्होंने बताया कि भारत में फ्क्.क्म् फीसदी जनसंख्या नगरों में निवास करती है। जिसमें ब्म्8 शहर क्लास वन के हैं। जिस शहर की पापुलेशन एक लाख से ज्यादा होती है वे क्लास वन की कैटेगरी में आते हैं और जिनकी पापुलेशन दस लाख से ज्यादा होती है वे महानगर की श्रेणी में आते हैं। भारत सरकार ने जो मैनेजमेंट सिस्टम निर्धारित कर रखा है वह इन आंकड़ों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

चलाना चाहिए अवेयरनेस कैम्पेन

उधर, इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल करने वाले ईजी ग्लोबल आर्गनाइजेनशन के प्रेसिडेंट मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके लिए अवेयरनेस कैम्पेन चलाए जाने की जरूरत है। जिसमें डिस्ट्रिक एडमिनिस्ट्रेशन, नगर निगम, एडीए और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की अहम भूमिका है। उन्होंने बताया कि वर्ष ख्0क्ख् में हाईकोर्ट के डायरेक्शन के बाद विभिन्न विभागों के सहयोग से जगह जगह होर्डिग, पोस्टर, बैनर, चौराहों पर डिस्प्ले बोर्ड आदि लगाए गए थे। स्कूल कॉलेजेज में काम्पिटीशन, एसे राइटिंग, नुक्कड़ नाटक जैसे आयोजन हुए। मनोज कहते हैं कि सरकारी प्रयास से जिले में एक सेल की स्थापना की जरूरत है, जो कि इसकी मानिटरिंग कर सके। इसके अलावा चेक पोस्ट भी बनाए जाने चाहिए।

क्या है प्लास्टिक

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प्लास्टिक पॉलीमर का अणु होता है। इसको आवश्यकतानुसार विभिन्न आकार में परिवर्तित किया जा सकता है। प्लास्टिक को थर्मोप्लास्टिक तथा बर्मासेटिंग दो समूहों में बांटा जा सकता है। पॉलीथिन थर्मोप्लास्टिक का ही एक रूप है। यह विद्युत तथा उष्मा की कुचालक होती है। इसी कारण बिजली के तार एवं अन्य उपकरणों के लिए उपयोगी होती है। यह जल में अविलेय अज्वलनशील होने के साथ साथ जल तथा वायु से अभिक्रिया नहीं करती। इसीलिए रासायनिक पदार्थो के भंडारण में भी इसका उपयोग किया जाता है।