- सीबीआई से पहले रिवरफ्रंट मामले की जांच शुरू कर सकती है ईडी

- सिंचाई विभाग द्वारा दर्ज करायी गयी एफआईआर को लेने की तैयारी

- करोड़ों रुपये का गोलमाल होने की वजह से ईडी के लिए मुफीद केस

LUCKNOW:

योगी सरकार की सिफारिश के बावजूद सीबीआई ने भले ही गोमती रिवरफ्रंट के निर्माण में हुई वित्तीय अनियमितताओं का केस दर्ज न किया हो लेकिन यह मामला इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) की नजरों में चढ़ गया है। रिवरफ्रंट के निर्माण में करोड़ों रुपये के गोलमाल की आशंका ने ईडी को भी सतर्क कर दिया है। अब ईडी इस मामले की जांच शुरू करने की तैयारी में है। जल्द ही इस मामले में दर्ज एफआईआर को ईडी अपने कब्जे में लेकर आरोपी इंजीनियरों के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर उनकी संपत्तियों की पड़ताल शुरू कर सकती है। सूत्रों की माने तो ईडी ने एफआईआर हासिल करने की कवायद शुरू कर दी है।

जांच शुरू करने के पर्याप्त आधार

ईडी के अफसरों की माने तो यह मामला जांच एजेंसी के लिए मुफीद है। इसमें सिंचाई विभाग की ओर से गोमतीनगर थाने में एफआईआर भी दर्ज करायी जा चुकी है। इससे पहले न्यायिक जांच और उच्चस्तरीय जांच भी हो चुकी है। इनके आधार पर यदि ईडी इस मामले की जांच शुरू करती है तो कोई कानूनी अड़चन नहीं आएगी। फिलहाल राजधानी स्थित ईडी के जोनल मुख्यालय के अधिकारी सिंचाई विभाग से एफआईआर की प्रमाणित प्रति मांगने की तैयारी में हैं। एफआईआर मिलने के बाद नई दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय से आरोपी इंजीनियरों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट की धाराओं में केस दर्ज करने की अनुमति मांगी जाएगी। ध्यान रहे कि राज्य सरकार पहले ही इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर चुकी है हालांकि सीबीआई ने अब तक यह केस दर्ज नहीं किया है। सीबीआई मुख्यालय ने राजधानी स्थित एंटी करप्शन ब्रांच से इस मामले से जुड़े दस्तावेज भी मंगाए थे जो सितंबर के पहले हफ्ते में भेजे जा चुके हैं।

आठ इंजीनियरों पर हुई थी एफआईआर

ध्यान रहे कि पूर्ववर्ती सपा सरकार के अहम प्रोजेक्ट गोमती रिवरफ्रंट के निर्माण में हुई वित्तीय अनियमितताओं की न्यायिक जांच की संस्तुतियों के आधार पर विगत 19 जून को सिंचाई विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की ओर से राजधानी के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी थी जिसमें आठ इंजीनियरों तत्कालीन मुख्य अभियंता गोलेश चंद्र (रिटायर्ड), एसएन शर्मा, काजिम अली और शिवमंगल यादव (रिटायर्ड), तत्कालीन अधीक्षण अभियंता अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव (रिटायर्ड) और अधिशासी अभियंता सुरेश यादव को नामजद किया गया था। न्यायिक जांच में तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल दोषी पाए गये थे जिसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें आरोप पत्र थमा दिया था।

यूपीपीएससी घोटाला भी ठंडे बस्ते में

गोमती रिवरफ्रंट ही नहीं, यूपी पीएससी में पिछले पांच साल के दौरान हुई भर्तियों की जांच का मामला भी ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है। भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का एलान खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा सत्र के दौरान किया था। इसके बाद गृह विभाग की ओर से केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को सिफारिशी पत्र भी भेजा गया था। करीब ढाई माह गुजरने के बाद भी सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू नहीं की है। सीबीआई मुख्यालय की ओर से राजधानी स्थित जोनल मुख्यालय को भी इस बाबत कोई निर्देश नहीं दिए गये हैं।