- आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी मुहैया कराने को तैयार नहीं शिक्षा विभाग

- विभाग के पास नहीं है अपने खिलाडि़यों का समुचित डाटा

- जेडी ने कहा, खिलाडि़यों का नाम जाहिर करने से हो सकता है अहित

LUCKNOW (25 July): माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में बच्चों से स्पो‌र्ट्स के नाम पर हर मंथ फीस ली जाती है। इसके बाद भी इन स्कूलों में स्पो‌र्ट्स का स्तर काफी खराब है। बोर्ड के अधिकारी भी इस मसले पर कुछ बोलने से बच रहे हैं। यहां तक कि यूपी बोर्ड भी अपने यहां पढ़ने वाले खिलाडि़यों के बारे में कोई जानकारी नहीं रखता। इस फीस का यूज बच्चों को डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेवल पर होने वाले कॉम्पटीशन के लिए तैयार करने पर लिए खर्च करना होता है। यानी फंड भी है और फंड को खर्च करने का टार्गेट भी मगर विभाग के पास ऐसे किसी स्टूडेंट्स का डाटा नहीं है जो खिलाड़ी है।

नहीं दिया कोई जवाब

एक आरटीआई के तहत लखनऊ की ज्वाइंट डायरेक्टर से सिटी के माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले हॉकी खिलाडि़यों की जानकारी मांगी गई थी। इसके तहत उन प्लेयर्स के बारे में जानकारी मांगी गई थी, जिन्होंने स्टेट लेवल पर किसी कॉम्पटीशन में हिस्सा लिया हो। उनकी जन्म तिथि, क्लास और स्कूल का नाम वर्ष ख्000 से ख्0क्फ् तक मांगा गया था। इसके जवाब में खुद ज्वाइंट डायरेक्टर ने लिखा है कि इन खिलाडि़यों के व्यक्तिगत हितों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए, आरटीआई एक्ट ख्00भ् के अध्याय ख् के विनियम म् (क्) के घ एवं अ के नियमों को देखते हुए यह जानकारी नहीं दी जा सकती है। जेडी के इस जवाब के आने से बाद से सबसे बड़ा सवाल उठाता है कि अगर खिलाड़ी स्टेट लेवल पर खेल चुका है तो उसके हितों को किस तरह से क्षति पहुंचाई जा सकती है। स्टेट लेवल पर कॉम्पटीशन में हिस्सा लेने वाले खिलाडि़यों का एक नाम होता है।

आठ रुपए हर महीनें की फीस

माध्यमिक शिक्षा परिषद के राजकीय और सहायता प्राप्त स्कूलों में खेल एजुकेशन के नाम पर हर मंथ आठ रुपए फीस के तौर पर लिया जाता है ताकि बच्चों में विभिन्न खेलों के प्रति रूची बढ़ाई जा सके। जिसे, वह आगे चलकर ओलंपिक और दूसरे इंटरनेशनल लेवल पर देश के लिए पदक जीत सकें। पर माध्यमिक शिक्षा परिषद इसके लिए कितना संजीदा है। इसका पता इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के खेल के प्रति रूझान को देखकर लगाया जा सकता है। सिटी में केवल नेशनल इंटर कॉलेज में हॉकी टीम है। वैसे तो शिक्षा विभाग सिटी में सात से आठ स्कूलों में टीम होने का दावा कर रहा है।

नहीं है सही कोच

माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता डॉ। आरपी मिश्रा बताते हैं कि हर स्कूल में सभी खेलों के कोच या शिक्षक नहीं हैं। ज्यादातर स्कूल खेलों के मिलने वाले जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं। ऐसे में हम केवल उन्हीं खेलों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं, जिन में बजट की कम जरूरत है। डॉ। मिश्र बताते हैं कि ज्यादातर स्कूल खो-खो, कबड्डी जैसे वॉलीबॉल जैसे खेलों में ही रूचि दिखाते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे यहां जितने भी खेलों की टीम है। सभी के खिलाडि़यों के नाम उनकी ओर से अर्जित की उपलब्धियों और सभी जानकारियों की सूचना जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय को भेजी जाती है।