>RANCHI:झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद विभिन्न एग्जिट पोल के आंकड़ों के अनुसार बीजेपी के बाद जेएमएम दूसरी सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी उभर कर सामने आ रही है। इसे क्0 से लेकर ख्0 सीटें मिलने का अनुमान है। लेकिन एग्जिट पोल से अलग हटकर अगर विधानसभा चुनाव में जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती है, तो फिर झारखंड में सरकार की नई तस्वीर दिखने की उम्मीद नहीं है। पिछली विधानसभा में जेएमएम के पास क्8 विधायक थे और यह पार्टी पहले बीजेपी के साथ सरकार में शामिल रही और हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री रहे। इसके बाद जेएमएम ने कांग्रेस और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बन गए। ऐसे में एक अनुमान यह भी है कि अगर जेएमएम अगले बड़ी पार्टी बनती है तो मौजूदा सरकार की तरह ही झारखंड की अगली सरकार का भी स्वरूप होगा। इसमें हेमंत सोरेन कांगे्रस, आरजेडी और निर्दलियों की मदद से सरकार बनाएंगे।

निर्दलियों की क्या होगी भूमिका

झारखंड की सरकार में निर्दलियों की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है। इनके इशारों पर ही सरकार बनती और गिरती रही है। साल ख्009 के चुनाव में झारखंड में 9 निर्दलीय चुनाव जीतकर आए थे। इसके बाद अर्जुन मुण्डा के नेतृत्व में बीजेपी, आजसू और जेएमएम की सरकार फिर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम, कांगे्रस, आरजेडी की सरकार बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे में इस बार भी अगर निर्दलीय अधिक संख्या में जीतकर आते हैं, तो फिर सरकार के गठन में इनके बड़े रोल से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इन दिग्गजों का फाइनल इम्तिहान

झारखंड विधानसभा चुनाव में पहली बार झारखंड की राजनीति के बड़े खिलाड़ी भी मैदान में अपने किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुण्डा, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आजसू प्रमुख सुदेश महतो और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत शामिल हैं। इन्हें अपनी-अपनी सीट पर कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा है। अगर ये दिग्गज धाराशाई हो जाते हैं तो इनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगने से इनकार नहीं किया जा सकता है। पहली बार जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी एक नहीं, बल्कि दो सीटों धनवार और गिरीडीह से मैदान में उतरे हैं। अगर वह चुनाव हार जाते हैं, तो उनके राजनीतिक जीवन पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ अर्जुन मुण्डा भी खरसावां विधानसभा सीट से चुनावी समर में है, उनको भी अपनी सीट बचाने की चुनौती है। जबकि आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो को सिल्ली सीट पर चुनाव जीतने के लिए बहुत पसीना बहाना पड़ा है। अगर वह चुनाव हार जाते हैं तो उनके सामने भी राजनीतिक अस्तित्व का संकट गहराता दिख रहा है। ऐसा ही कुछ हाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत का भी है, जो लोहरदगा सीट से चुनाव लड़े हैं। अगर हार जाएंगे, तो उनके लिए अपना पद बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।