- सिटी के लोहिया, केजीएमयू और पीजीआई में खर्च अलग अलग

- सिंगल स्टेंट के यूज पर भी डेढ़ से दोगुने का अंतर

LUCKNOW: डॉ। राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट में भले ही हार्ट के मरीजों की एंजियोप्लास्टी के रेट्स कम हुए हो लेकिन अन्य संस्थान अभी भी मरीजों को दर्द दे रहे हैं। डॉ। राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट में जहां एंजियोप्लास्टी की कीमत 40 से 50 हजार रुपए है तो दूसरे संस्थानों में यह कीमत डेढ़ से दो गुने तक है।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में 70 हजार

केजीएमयू में इस समय एंजियोप्लास्टी का खर्च लगभग 50 से 80 हजार रुपए का खर्च आ रहा है। विभाग में डॉक्टर हर माह लगभग 100 से 110 एंजियोप्लास्टी करते हैं। जबकि सबसे अधिक मरीज भी यहीं पर आते हैं। हफ्ते में शायद ही कोई दिन हो जब कार्डियोलॉजी की इमरजेंसी फुल न रहे। विभाग के डॉक्टर्स का दावा है कि केजीएमयू में सबसे कम रुपयों में एंजियोप्लास्टी की सुविधा उपलब्ध है। केजीएमयू में कार्डियोलॉजी के एचओडी प्रो। आरके सरन ने बताया कि स्टेंट के रेट्स में कुछ कमी आई है। जिसके कारण एंजियोप्लास्टी का खर्च भी कम हुआ है। पहले जहां कम से कम 80 से 90 हजार रुपए लगते थे वह अब घटकर 50 से 70 हजार तक में आ गया है।

एसजीपीजीआई में खर्च और अधिक

उधर संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टर्स के मुताबिक इस समय संस्थान में एक लाख से 1.25 लाख तक का खर्च आ रहा है। जबकि पहले यह कीमत डेढ़ लाख से अधिक थी। संस्थान में इस समय हर माह लगभग 125 मरीजों की एंजियोप्लास्टी होती है। एसजीपीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो। पीके गोयल ने बताया कि पहले संस्थान में सिंगल आर्टरी में खर्च डेढ़ लाख तक आता था। अब कीमत कम हुई है। हालांकि स्टेंट के अलावा बेड व अन्य चार्जेज के कारण ही खर्च अधिक आता है।

रेट एक फिर भी खर्च अलग

यह भी हाल तब है कि स्टेंट्स के रेट्स एक समान ही हैं। लेकिन एंजियोप्लास्टी के खर्च में डेढ़ से दो गुने तक का खर्च है। सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ माह में स्टेंट के रेट्स में काफी कमी आई है। अब इंडियन स्टेंट भी माकेट में हैं जो फॉरेन स्टेंट्स की अपेक्षा काफी सस्ते हैं। लेकिन यहीं पर डॉक्टर क्वालिटी की बात कह कर महंगे स्टेंट यूज करते हैं। सूत्रों के मुताबिक डॉक्टर चाहे तो इन चार्जेज में और भी कमी आ सकती है। क्योंकि एक ही संस्थान के अलग अलग डॉक्टर्स के खर्च भी अलग हैं। जिन डॉक्टर्स को स्टेंट पर कमीशन की डिमांड है उनके मरीजों पर खर्च बढ़ जाता है।