गायों की सेवा में जुटे रहते हैं इनतुल्लाह
80 के दशक में महाराजगंज चौक के रहने वाले इनतुल्लाह मंदिर से जुड़े गए। मंदिर के गौशाला की जिम्मेदारी इनतुल्लाह को मिली। यह मंदिर में ही रहने लगे और मंदिर के गायों की सेवा में दिन रात जुट गए। मंदिर में रहने और परिवार महाराजगंज चौक पर रहने के कारण परेशानी होने पर मंदिर परिसर की तरफ से गौशाला में ही परिवार रहने की इजाजत मिल गई। उसके बाद इनतुल्लाह अपने परिवार के साथ यहीं आ गए। अब इनतुल्लाह की दूसरी पीढ़ी के बड़े पुत्र मान मोहम्मद के पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए आज मंदिर के गायों की जिम्मेदारी अपने ऊपर संभाले हुए है।

मान मोहम्‍मद के जिम्‍मे है योगी आदित्‍यनाथ के गायों की जिम्‍मेदारी

मंदिर को चमकाते हैं मो। यासीन
मंदिर में कलर कौन होगा यह भले ही मंदिर कार्यालय तय करता है, लेकिन मंदिर में रंग कौन लगाएगा, यह तय मंदिर से 1977 से जुड़े मो। यासीन करते हैं। मंदिर से जुड़े हुए लोगों का कहना है कि मंदिर में रंगाई के अलावा अगर कहीं ईंट भी जोडऩा होता है तो सबसे पहले मो। यासीन को याद किया जाता है। मंदिर के पास ही रहने वाले मो। यासीन जिम्मेदारी मिलने के बाद उसे बखूबी निभाते भी हैं। आज भी मंदिर में पूरे साल कुछ न कुछ कार्य चलता रहता है और मो। यासीन मंदिर को चमकाने में लगे रहते हैं।

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सबसे सुरक्षित हैं दुकानदार
मंदिर में परिसर में लगभग 100 दुकानें हैं। जो श्रद्धालुओं के लिए सामानों को बेचते हैं। इनमें दर्जनों की संख्या में मुसलमान हैं। यह लोग खुद को मंदिर परिसर में सबसे अधिक सेफ और सिक्योर महसूस कर रहे हैं। मंदिर में बिसाता का सामान बेचने वाले रसूलपुर निवासी मुहम्मद मुस्तकीम बताते हैं कि पिछले 35 साल से मैं मंदिर में अपनी बिसाता के सामानों का दुकान लगा रहा हूं। मैं कभी भी जाता हूं और अपनी एक समस्या बताते ही तत्काल सुनवाई होती है। मैं मुस्लिम हूं, लेकिन आज तक कभी भी मेरा स्थान किसी और को एलॉट नहीं किया जाता है। रसूलपुर की ही चूडिय़ां बेचने वाले नूरजहां खातून भी पिछले 30 साल से यहां चूडिय़ों का ठेला लगा रही हैं। कहती है कि जब महाराज जी गोरखपुर रहते हैं तो डेली सुबह पांच बजे के करीब घूमते हैं। उस समय हम लोग सफाई करते हैं और देखते हैं तो हाल-चाल जरूर पूछते हैं।

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मंदिर से जाता है न्यौता
गोरखनाथ मंदिर के चारों तरफ मुस्लिम आबादी वाला एरिया है, फिर भी अगर मंदिर में रसूलपुर, चक्सा हुसैन और जहीदाबाद एरिया में किसी के यहां शादी होती है और मंदिर में निमंत्रण जाता है। इन घरों में मंदिर की तरफ से न्यौता जरूर पहुंचता है। मंदिर के लोग बताते हैं कि मंदिर की तरफ से यह परंपरा ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ ने शुरू की थी जो आज भी चली आ रही है। मंदिर की तरफ से न्यौता देने वालों को आर्थिक न्यौता के साथ ही साथ सामग्री भी जाती है। मंदिर के प्रभारी द्वारिका प्रसाद तिवारी का कहना है कि गोरक्षपीठ की उदार परंपरा रही है। गोरखनाथ मंदिर के चारों तरफ अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी है। यही नहीं परिसर में भी बहुत से लोग सपरिवार रहते हैं। मुस्लिमों के त्यौहारों में उनके घर जाते हैं और उनकी खुशियों में शामिल होते हैं।