RANCHI : 1925 में कांके में खुला इंडियन मेंटल हॉस्पिटल आज रांची इंस्टीट्यूट आफ न्यूरो साइकियाट्री एंड अलायड साइंसेज के नाम से जाना जाता है। पिछले 90 सालों में इस संस्थान ने कई उतार-चढ़ाव देखें हैं। ना सिर्फ मरीजों के बेहतर इलाज के लिए आज यह संस्थान देश-दुनिया में जाना जाता है, बल्कि रिसर्च व स्टूडेंट्स को क्वालिटी एजुकेशन देने के मामले में भी अलग पहचान बना चुका है। एक समय था जब यहां सिर्फ मानसिक रोगियों का ट्रीटमेंट किया जाता था, लेकिन आज यहां रिसर्च के साथ स्टूडेंट्स भी पढ़ाई कर रहे हैं।

1994 में ऑटोनोमस दर्जा

बिहार सरकार ने 1958 में इस हॉस्पिटल को अपने अधीन कर लिया। इसके बाद इसका नाम बदलकर रांची मानसिक आरोग्यशाला कर दिया गया। उस समय पूर्वी भारत के अधिकांश मानसिक रोगी इलाज के लिए यहीं आते थे। तब यहां की बेड कैपासिटी 1620 थी, लेकिन कभी भी दो हजार मरीज से कम यहां नहीं रहते थे। 1992 में यहां इलाज के साथ ही रिसर्च टीचिंग वर्क की शुरूआत हुई। 1994 में बिहार सरकार ने आरएमए को ऑटोनोमस इंस्टीट्यूट का दर्जा दे दिया। यह इस संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की देखरेख में आरएमए के संचालन का निर्देश दिया। 10 जनवरी 1998 को आरएमए का नाम बदलकर रांची इंस्टीट्यूट आफ न्यूरो एंड अलायड साइंसेज कर दिया। तब से यह संस्थान इसी नाम से जाना जा रहा है।

कई जिलों में खुला सेंटर

रिनपास के नाम कई उपलब्धियां दर्ज है। यहां डिस्ट्रिक्ट मेंटल हेल्थ खोला गया। इसके तहत दुमका, पलामू, जमशेदपुर और गुमला में सेंटर बनाया गया है। यहां के डॉक्टर्स इन सेंटरों में जाकर मनोरोगियों का इलाज करते हैं। इसका सबसे अधिक फायदा मरीजों के साथ-साथ उनके परिजनों को हो रहा है। सेंटर के खुल जाने से मरीजों को इलाज के लिए रिनपास लाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। इतना ही नहीं, मरीजों को सेंटर पर ही दवाएं भी उपलब्ध करा दी जाती है। इतना ही नहीं, रिनपास की ओर से समय-समय पर अन्य जिलों में भी कैंप लगाकर मरीजों का इलाज किया जाता है।

मरीजों को मिलती मुफ्त दवा

रिनपास एक ऐसा हॉस्पिटल है, जहां मरीजों को इलाज के फुल कोर्स के लिए दवाएं मुफ्त में दी जाती है। देश के किसी भी कोने से यहां इलाज कराने आए मरीजों को दवा पर खर्च नहीं करनी पड़ती है। यहां जो मरीज लंबे समय एडमिट रहते हैं, उन्हें काम करने के एवज में पेमेंट भी किया जाता है।

इलाज के साथ रिसर्च भी

रिनपास आज इलाज के साथ रिसर्च सेंटर के तौर पर भी पहचान बना चुका है। यहां साइकियाट्री की पढ़ाई भी होती है। ऐसे दूसरे राज्यों से डॉक्टर्स और नर्सिगस्टूडेंट्स ट्रेनिंग लेने के लिए आते है। इस संस्थान का अपना कॉलेज भी है, जहां स्टूडेंट्स पढ़ाई करते हैं। हॉस्पिटल में नर्सिग की भी पढ़ाई होती है।

मैनपावर की कमी से जूझ रहा संस्थान

रिनपास में मरीजों के इलाज को लेकर दो हजार बेड की कैपासिटी है। देशभर से बड़ी तादाद में मरीज यहां इलाज कराने के लिए आते हैं। लेकिन, मैनपावर की कमी होने की वजह से एक समय में सात सौ से ज्यादा मरीजों का यहां इलाज नहीं किया जाता है। एक्ट के अनुसार, पांच मेंटल पेशेंट के लिए एक अटेंडेंट होना चाहिए, लेकिन यहां फिलहाल 15 पेशेंट्स पर एक अटेंडेंट है। इस वजह से मरीजों के इलाज में परेशानी होती है। अगर इस संस्थान को मैनपावर उपलब्ध करा दिया जाए तो बिना इलाज के मरीजों को लौटना नहीं पड़ेगा। इतना ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट मेंटल हेल्थ के तहत जिलों में सेंटर की व्यवस्था कर दी जाए तो रिनपास पर मरीजों का दबाव काफी हद तक कम हो जाएगा। हॉस्टिपल एडमिनिस्ट्रेशन ने मेंटल रिटारडेशन होम खोलने का भी प्रस्ताव सरकार को दिया है।