तो इसलिए ओलंपिक में मेडल को दांतों से काटते हैं खिलाड़ी

यही पोज देते:

ब्राजील के रियो डे जेनेरियो में चल रहे ओलंपिक खेलों में दुनियाभर के देश हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान भी मेडल जीतने वाले खिलाड़ी जीत के बाद जब भी फोटो क्िलक करा रहे हैं तो उनके पोज काफी अनोखे देखने को मिल रहे हैं। वे अपने मेडल को दांतो से काटते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि इसको लेकर अभी तक कोई स्पष्ट कारण नहीं मिला है, लेकिन खेल अधिकारियों ने जवाब देने की कोशिश जरूर की है।

तो इसलिए ओलंपिक में मेडल को दांतों से काटते हैं खिलाड़ी

जीत को दर्शाते:

इस संबंध में इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियन के प्रेसीडेंट डेविड का कहना है कि शायद पोज देने का तरीका वर्षों पुराना हो चुका है। यह पिक्चर 1991 में ब्रिटेन की ट्रैक टीम की है। इस पिक्चर में भी खिलाड़ी दातों से ही मेडल को काट रहे हैं। जिससे साफ है कि यह उनका मेडल जीत का आइकॉन सा बन गया है। इसके माध्यम से वे अपनी जीत को दर्शाते हैं। इसके अलावा और कुछ नही है।

तो इसलिए ओलंपिक में मेडल को दांतों से काटते हैं खिलाड़ी

सोना चेक करते:
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अगर आप सोचते हैं कि यह बिना हिस्ट्री का ट्रेडिशन है तो आप गलत हैं। यह एथलीट्स द्वारा मेडल की शुद्धता पता करने का तरीका होता है। हमेशा से एथलीट दांतो से काट कर ही इसे पता करते आए हैं। जब वे इसे काटते हैं तो उन्हें पता चल जाता है कि ये खरा सोना है या नरम सोना है। खरे सोने पर तुरंत निशान बन जाते हैं। यही असली सोने की पहचान होती है।

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मेडल सोने का नहीं:

हालांकि अब इसे निभाने से कोई फायदा नही है क्योंकि इस साल सोने के मेडल में मात्र 1.34 प्रतिशत सोना ही शामिल है। मेडल में बाकी सब चांदी ही है। आखिरी बार शुद्ध गोल्ड मेडल 1912 में दिया गया था। वहीं 2010 में इससे जुड़ा एक रोचक मामला भी सामने आया था। एथलीट जर्मन लुगर मोलर रजत पदक काट रहे थे तभी उनका दांत टूट गया था। जब से अब एथलीट थोड़ा एलर्ट रहते हैं।

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