- एम्स दिल्ली के आर्थोपेडिक सर्जन ने कहा, सिर्फ दो फीसदी मामलों में पड़ती है नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की जरूरत

- डॉक्टर्स सर्जरी के फायदे तो बताते हैं, लेकिन नुकसान का जिक्र नहीं करते

KANPUR: मेडिकल कॉलेज में चल रहे आईएमए सीजीपी वर्कशॉप में शनिवार को एम्स दिल्ली के आर्थोपेडिक सर्जन ने घुटनों से जुड़ी बीमारियों और उसके इलाज के बारे में विस्तार से चर्चा की। इसके अलावा मेदांता गुड़गांव के ईएनटी डिपार्टमेंट हेड डॉ। केके हाण्डा ने आवाज से जुड़ी प्रॉब्लम्स के बारे में बताया। साथ ही टाटा मेमोरियल हॅास्पिटल के प्रो। पंकज चतुर्वेदी ने सिर व गर्दन के कैंसर को लेकर चर्चा की।

दवा और एक्सरसाइज है कारगर

आर्थोपेडिक सर्जन डॉ। रवि मित्तल ने बताया कि जोड़ों के दर्द से जुड़ी 90 फीसदी प्रॉब्लम्स को एक्सरसाइज और दवाओं के जरिए सही किया जा सकता है। इस बीमारी के होने का सबसे बड़ा कारण ज्यादा वजन होता है। जिससे घुटनों पर दबाव ज्यादा पड़ता है। एक्टिव लाइफ स्टाइल से इसे दूर किया जा सकता है। इसके अलावा 8 फीसदी प्रॉब्लम्स को आस्ट्रोटॉमी, टीपीआर या फिर एचटीयू ट्रीटमेंट के जरिए सही किया जा सकता है, जोकि बेहद सस्ती तकनीक हेती है।

.तो डॉक्टर को दिखाए

मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव के ईएनटी डिपार्टमेंट के हेड डॉ। केके हॉण्डा ने बताया कि कुछ भी निगलते समय अगर खांसी आए, गले में बराबर सूजन बनी रहे या फिर सोते समय अगर खर्राटे की प्रॉब्लम लगातार बनी रहे तो उस शख्स को फौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए। क्योंकि इन स्थितियों में वोकल कॉड्स में दबाव बढ़ता है। साथ ही लैरिंग्स के कैंसर होने का खतरा भी रहता है।