-आई नेक्स्ट के पैरेंटिंग टुडे सेमीनार में सिटी के सैकड़ों पैरेंट्स ने किया पार्टिसिपेट

-डिजिटल होती जिंदगी में पैरेंटिंग से रिलेटेड चैलेंजस का जाना हल

आज के डिजिटल युग में बच्चों की अपब्रिंगिंग से जुड़े चैलेंजेस बदल गए हैं। इन चैलेंजेस को फेस कर पैरेंट्स कैसे अपने बच्चे की बेहतर पैरेंटिंग करें? इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी में आए रेवोल्यूशन के इस युग में अपने बच्चे को कैसे तैयार करें कि वो टेक्नोलॉजी का फायदा उठाए न कि उसका एडिक्ट हो जाए। पैरेंट्स के मन में उठने वाले ऐसे ही तमाम ज्वलंत सवालों के जवाब सैटरडे को आई नेक्स्ट की ओर से आर्गनाइज पैरेंटिंग टुडे सेमिनार में शहर के जाने-माने एक्सप‌र्ट्स ने दिए। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज के ऑडिटोरियम में ऑर्गनाइज सेमिनार में एक्सप‌र्ट्स ने पैरेंट्स के मुश्किल से मुश्किल प्रश्नों के उत्तर भी बड़े आसान शब्दों में दिए।

बच्चों के दोस्त बनिए

सेमीनार की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ डॉ। राजतिलक ने कहा कि बच्चों के दोस्त बनिए। अपने आप सभी प्रॉब्लम्स दूर हो जाएंगी। बच्चों पर अपनी आकांक्षाओं को मत थोपें। उनकी बात को समझें फिर कोई डिसीजन लें। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में पैरेंटिंग के कई चैलेंजेस हैं, लेकिन इनको जरा सी समझदारी से आसानी से सॉल्व किया जा सकता है।

.अगर वीडियोगेम से चिपका रहता है

साइकियाट्रिस्ट डॉ। रवि कुमार ने कहा कि अक्सर पैरेंट्स आते हैं तो यही प्रॉब्लम बताते हैं कि उनका बच्चा लैपटॉप, टैबलेट और वीडियोगेम से चिपका रहता है। क्या करें ऐसी सिचुएशन में? ऐसे में मैं पैरेंट्स की काउंसिलिंग जरूर करता हूं, क्योंकि जब पैरेंट्स इस समस्या से निपटने के लिए प्रिपेयर होंगे तो आधी से ज्यादा समस्या अपने आप दूर हो जाएगी। बच्चा क्या कर रहा है? इस पर हमेशा तो आप नजर नहीं रख सकते हैं लेकिन उसको ये जरूर बता सकते हैं कि क्या गलत है और क्या सही? जब वो ये जान जाएगा तो फिर टेक्नोलॉजी कितनी भी बढ़ जाए तो गलत दिशा की ओर नहीं जाएगा।

बच्चे को विश्वास दिलाना होगा

शिक्षाविद् डॉ। प्रदीप दीक्षित ने कहा कि डिजिटल युग में पैरेंटिंग एक बड़ा चैलेंज तो है पर इसे फेस किया जा सकता है लेकिन तब जबकि आप जागरुक हों। बच्चे को आप सूचना और तकनीक की बाढ़ से दूर नहीं कर सकते पर उम्र के हिसाब से एक्सपोजर होना चाहिए। क्या उसके लिए उचित है ये पहचान पैरेंट्स को ही करनी होगी। और फिर बच्चे को विश्वास दिलाना होगा ताकि वो खुद ही नियंत्रण में रहे।

बच्चों की धारणा सही दिशा की ओर ले जाने का निरंतर प्रयास करें।

बच्चों की पहली संस्कारशाला

सोशियोलॉजिस्ट डॉ। अनिल मिश्रा ने कहा कि आज विदेशों के लोग भारत के शिक्षकों से पैरेंटिंग सीख रहे हैं। इसकी वजह ये है कि विदेशों में पैरेट्स बच्चों को समय नहीं दे पाते। लेकिन फिर सवाल ये उठता है कि हम इसको पूरी तरह अपने बच्चों पर फॉलो क्यों नहीं कर पाते हैं? मां-बाप को बच्चों के सामने अपना बिहेवियर ठीक रखना चाहिए। घर ही बच्चों की पहली संस्कारशाला है।

कुपोषण का शिकार हो सकते हैं

सीएसए में फूड एंड न्यूट्रिशन डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ विनीता सिंह ने बताया कि बच्चों की फूड हैबिट्स पैरेंट्स ही डेवलप करते हैं। अगर पैरेंट्स बच्चों को जंक फूड देंगे तो उनकी आदत पड़ जाएगी। आज के युग में बच्चों को रेगुलर टाइम पर ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर करने की आदत नहीं है। पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चे इसको प्रॉपर करें। बच्चे को फास्टफूड से दूर रखें तो ज्यादा बेहतर है। उन्होंने बताया कि कोशिश करें कि बच्चे का टिफिन न्यूट्रिशस हो।

इस इवेंट के को-स्पॉन्सर ड्रीम होम रहे।

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पैरेंट्स ने क्लीयर किए अपने डाउट्स

सुलेमान ने पूछा कि मेरा बच्चा अपनी मां के बनाए खाने को पसंद नहीं करता है। इस पर साइकियाट्रिस्ट डॉ। रोनल कुमार ने कहा कि आप बच्चे के टेस्ट को समझें। उसको पौष्टिक आहार दें, लेकिन थोड़ा टेस्टी बना दें। वहीं इंदू का सवाल था कि बड़ा बेटा पढ़ाई को लेकर एकाग्रचित नहीं हो पाता है। इसके जवाब में डॉ। रोनल कुमार ने कहा कि बच्चा किस बात को लेकर तनाव में रहता है? पहले इसको चिन्हित करें। किसी स्पेशलिस्ट से बात करें।