हमारी जानकारी के बिना करता है मैनिप्युलेशन

 Proceedings of the National Academy of Sciences जर्नल ने अपने मार्च इश्यू में एक रिसर्च स्टडी पब्लिश की. इसमें कहा गया है कि फेसबुक हमारी जानकारी के बिना ही हमारे इमोशंस को मैनिप्युलेट करता है. अगर हमें फेसबुक में खुश करने वाली न्यूज फीड मिलती है तो हम खुश होते हैं. अगर न्यूज फीड उदास करने वाले या गुस्सा दिलाने वाले हैं तो हमारे इमोशंस पर भी वैसा ही असर पड़ता है.

क्या यह एथिकल है?

अगर लीगली देखा जाए तो फेसबुक को ऐसा करने ता हक है. लेकिन अब लोगों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह एथिकल भी है? इस रिसर्च स्टडी का काफी क्रिटिसिज्म भी हुआ है. जवाब में लीड रिसर्चर्स ने माफी भी मांगी है. लीड रिसर्चर एडम कार्मर ने पोस्ट किया है कि अगर हमारे रिसर्च से लोगों में गैरजरूरी हलचल हुई है या लोग परेशान हुए हैं तो हम इसके लिए माफी चाहते हैं लेकिन हमारा रिसर्च जस्टिफाइड है.

ऑनलाइन बुलिंग भी एक मसला

सोशल मीडिया के इस दौर में सोशल बुलिंग भी कम्युनिकेशन एक्सपर्ट्स और साइकोलोजिस्ट्स के बीच डिस्कशन का मुद्दा है. जब सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आपके वर्चुअल फ्रेंड्स या दूसरे लोग आपका मजाक बनाते हैं या आपको ठेस पहुंचाने वाली बात कहते हैं, तो यह ऑनलाइन बुलिंग कहलाता है. एग्जांपल के तौर पर आईआईएम बंगलुरु की स्टूडेंट मालिनी मुर्मू ने सुसाइड कर लिया क्योंकि उसके ब्यॉयफ्रेंड ने उससे ब्रेक- अप की बात फेसबुक पर पोस्ट कर दी थी.

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