हॉस्टल वॉश आउट के बाद भी डॉ। ताराचंद हॉस्टल में मूलभूत सुविधाओं का अकाल

ALLAHABAD: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स को हॉस्टल में रहने की सुविधा दी जाती है। लेकिन हॉस्टल्स की स्थिति ये है कि वहां रहने वालों को भोजन बनाने से लेकर कमरे में झाडू-पोछा व बर्तन मांजने आदि का काम खुद करना पड़ता है। इस समस्या से डॉ। ताराचंद हॉस्टल के 302 छात्र रोज जूझते हैं और यूनिवर्सिटी की व्यवस्थाओं को कोसते हैं। हॉस्टल कैंपस की सफाई या सेंट्रलाइज मेस की सुविधा तो यहां सपने सरीखा है। यह स्थिति तब है जब अगस्त में वॉश आउट के बाद हॉस्टल में नए सिरे से छात्रों को रूम आवंटित किया गया था। हॉस्टल में न तो मेस चलती है, न ही साफ-सफाई होती है।

छह ब्लॉक में एक भी सर्वेट नहीं

विश्वविद्यालय के इस हॉस्टल में कुल छह ब्लॉक हैं। इन ब्लॉकों में 302 रूम में उतने ही छात्र रहते हैं। स्थिति इतनी खराब है कि किसी भी ब्लॉक में सर्वेट की सुविधा वर्तमान समय में छात्रों को नहीं मिल रही है। सर्वेट न होने की वजह से छात्र कमरे के अलावा अपने बरामदे के सामने भी सुबह व शाम को झाडू लगाते हैं। जबकि परिसर में कूड़े के ढेर को समय-समय पर चंदा जुटाकर छात्र उसे हटवाते हैं।

साढ़े चौदह हजार ली गई है फीस

विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस वर्ष हॉस्टल में दी जाने वाली सुविधाओं के साथ छात्रों से साढ़े चौदह हजार रुपए हॉस्टल फीस ली है। इसमें मेस की फीस भी शामिल है। लेकिन मेस की सुविधा अभी तक नहीं शुरू हो सकी है। मेस में चार वाटर कूलर लगाये गये हैं, लेकिन उसमें आरओ की सुविधा नहीं है। यही नहीं मेस में न तो कुर्सी है और न ही मेज रखी गई है।

इस हॉस्टल में हैं छह ब्लॉक, इन ब्लॉकों में सिंगल सीटेड रूम की संख्या 304 है। प्रत्येक रूम में एक-एक छात्रों को पजेशन दिया गया है।

मेस के बाहर और मेन गेट के बगल में लगा हैंडपंप तीन वर्षो से खराब पड़ा हुआ है। दर्जनों बार पत्र लिखा गया पर समाधान अभी तक नहीं हुआ।

मेस में ही चार वाटर कूलर लगे हैं लेकिन उसमें आरओ की सुविधा नहीं है। जबकि परिसर में लगा एक वाटर कूलर दो वर्षो से बंद पड़ा है।

हॉस्टल का संक्षिप्त परिचय

इस हॉस्टल की स्थापना वर्ष 1977 में हुई थी। प्रख्यात इतिहासकार डॉ। ताराचंद के नाम पर हॉस्टल का नामकरण किया गया। इसकी बड़ी वजह रही कि डॉ। ताराचंद वर्ष 1947 से 1949 तक विश्वविद्यालय के कुलपति रहे थे। उनका सम्मान आज भी कुलपति व देश के जाने-माने इतिहासकार के रूप में किया जाता है। वर्ष 1993 तक इस हॉस्टल से प्रतिवर्ष दो दर्जन आईएएस निकलते थे।

विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी छात्रों की समस्या जानने नहीं आता। वार्डेन को अनगिनत बार समस्याओं से अवगत कराया गया लेकिन समाधान अभी तक नहीं हुआ।

आकाश त्रिपाठी

फीस तो विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी लेता है। सुविधा कुछ नहीं मिलती। वॉश आउट के बाद पजेशन मिला लेकिन अभी तक रूम में फर्नीचर की सुविधा ही नहीं उपलब्ध कराई गई है।

राम यादव

हॉस्टल के किसी भी ब्लॉक में सर्वेट नहीं हैं। हम लोग चंदा लगाकर बाहरी लोगों से साफ-सफाई कराते हैं। मच्छरों के आतंक से बीमारी का खतरा बना रहता है लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है।

आशीष रजक

साढ़े 14 हजार रुपया हॉस्टल फीस के रूप में ली गई है। न मेस चल रहा है और न ही रूम में फर्नीचर उपलब्ध कराया गया है। लगता है कि रूम छोड़ने के बाद भी सुविधा नहीं मिलेगी।

सैफुर रहमान

कभी टॉयलेट की साफ-सफाई को मारामारी मची रहती है तो कभी मेस शुरू कराने को लेकर नोकझोक होती है। लगता ही नहीं है कि हम किसी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रहते हैं।

आनंद सिंह