पद्मश्री से सम्मानित हो चुके

डॉक्टर लाल सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के कलवारी गांव में हुआ था। 5 जुलाई 1947 को जन्में लाल सिंह ने इण्टरमीडिएट के बाद की पढाई के लिए 1962 में बीएचयू गए थे। यहां पर उन्होंने बीएससी एमएससी व 1971 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। इसके बाद वह कोलकाता गए और वहां पर साइंस में एक फोलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वह यूके भी गए। 1987 में वह सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर नियुक्त हो गए। 1998 से 2009 तक वह निदेशक पद पर तैनात रहे। बीएचयू के पूर्व कुलपति एवं वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह पद्मश्री से सम्मानित हो चुके हैं।

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हैदराबाद छात्र का मामला

वर्ष 1989 में एक स्कूली छात्र जो हैदराबाद से लापता था उसका कंकाल पास से ही बरामद किया गया। हालांकि कंकाल की शिनाख्त नहीं हो पा रही थी। लिहाजा उस शव को पहचान दिलाने के लिए डॉ. लाल जी सिंह को जिम्मा सौंपा गया। उन्होंने टिश्यू के सैंपल से अभिभावकों के रक्त का नमूना लेकर रिपोर्ट दी कि वह कंकाल लापता छात्र का ही है।

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राजीव गांधी मर्डर केस

तमिलनाडु में 21 मई, 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या काफी सनसनीखेज थी क्योंकि इसमें महिला आत्मघाती हमलावर थी और मृतकों की पहचान के लिए भी डीएनए का सहारा लिया गया, जिसमें भी डा. लालजी सिंह और उनकी टीम ने मृतकों की जांच कर हत्या की कडिय़ों को जोड़ा और आरोपियों का चेहरा सामने आ सका।

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नैना साहनी कांड की जांच

वर्ष 1995 में दिल्ली की नैना साहनी को तंदूर में झोंक दिया गया। तंदूर से प्राप्त अवशेष को हैदराबाद स्थित सेंटर फार मॉलिक्यूलर बायोलॉजिकल स्टडीज के डीएनए प्रिंट विभाग के निदेशक लालजी सिंह को भेजा गया। जहां सिद्ध हो गया कि शव नैना साहनी का ही है।

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बेअंत सिंह हत्याकांड की जांच

सरदार बेअंत सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंजाब के 1992 से 1995 तक मुख्यमंत्री थे। खालिस्तानी अलगाववादियों ने कार को बम से उड़ा कर उनकी 31 अगस्त, 1995 को चंडीगढ़ में हत्या कर दी थी। मामले की फॉरेंसिक जांच में टीम ने हत्या से जुड़े तथ्यों की पड़ताल की और शामिल कडिय़ों को जोड़कर ब्लाइंड मर्डर माने गए मामले के अभियुक्तों का चेहरा उजागर किया।

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