-जेके कैंसर हॉस्पिटल की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, मुंह के कैंसर के 80 फीसदी मरीज गुटखा खाने वाले

-मुंह के कैंसर के मरीज 20 फीसदी बढ़े, 15 से 25 साल के 23 फीसदी युवाओं को भी हुआ ओरल कैंसर

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KANPUR : पान मसाला और गुटखा का गढ़ कहा जाने वाला कानपुर अब इसकी वजह से होने वाले मुंह के कैंसर का भी गढ़ बन गया है। तम्बाकू की लत से कैंसर का शिकार अब शहर में 15 साल तक के बच्चे भी बन रहे हैं। जेके कैंसर इंस्टीटयूट की एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मुंह के कैंसर के मामलों में बीते एक साल में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। मुंह के कैंसर के इन नए मरीजों में 23 फीसदी पेशेंट्स की उम्र 15 से 25 साल है।

एक साल में ही हो गया कैंसर

जेके कैंसर इंस्टीटयूट में भर्ती बिल्हौर के 15 साल के लड़के ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह दो साल से टेम्पो व बस में सवारी बैठाने का काम करता था। पिछले साल से उसे मसाला खाने की लत लगी। वह रोज 15 से 20 मसाले की पुडि़या तम्बाकू मिला कर खाने लगा, इसके अलावा बुरी संगत का असर ऐसा हुआ कि शराब व नॉनवेज भी खूब खाया। 4 महीने पहले मुंह में एक गांठ होने का पता चला, डॉक्टर्स से जांच कराई तो पता चला कि कैंसर हाे गया है।

जवानी बर्बाद कर रहा तम्बाकू

शुक्लागंज निवासी श्यामबाबू (32) ने तीन साल पहले मसाला खाना शुरू किया था। 3 महीने पहले उसे दांतों के नीचे बड़ी की गांठ का पता चला। आस पास के डॉक्टर्स को दिखाया तो महीने भर तक वह पता नहीं नहीं लगा सके। दो महीने पहले ही उसे ओरल कैंसर की पुष्टि हुई। डॉक्टर्स को गांठ मुंह का ऑपरेशन कर निकालनी पड़ी। इसके बाद से उसके चेहरा ही बिगड़ गया। अब वह ठीक से बोल भी नहीं पाता है और खाने पीने की चीजें उसे नाक में नली लगा कर दी जाती हैं।

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डराते हैं ये आंकड़े

एक साल में नए मरीजों की संख्या - 8,300

ओरल और गले के कैंसर के नए मरीज- 3400

15 से 25 साल के मरीजों की संख्या- 782

25 से 35 साल के मरीजों की संख्या- 861

35 से 45 साल के मरीजों की संख्या- 658

45 से 60 साल के मरीजों की संख्या- 1099

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कोट

पहले जहां सर्वाइकल कैंसर के मामले ज्यादा आते थे, लेकिन बीते 2 से 3 सालों में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है। चिंताजनक बात यह है कि हमारे यहां आने वाले मरीजों में अब काफी मरीज ऐसे भी हैं जिन्हें बेहद कम उम्र में सिर्फ गुटखे की लत की वजह से कैंसर हुआ है और यह मरीज आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर हैं।

-डॉ। एमपी मिश्रा, डायरेक्टर, जेके कैंसर इंस्टीटयूट