आज ही के दिन हुआ पहला ट्रांसप्लांट
अमेरिका के शिकागो में 49 साल की एक मरीज रूथ टकर जब अस्पताल में भर्ती हुई तो उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं और डॉक्टर्स को कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। रूथ अपनी बहन को इसी समस्या के चलते बिस्तर पर दम तोड़ते देख चुकी थीं। वे अपनी बहन की तरह नहीं मरना चाहती थीं। ये बात जब उन्होंने डॉक्टर्स को बताई तो उन्होंने तय किया किया कि वे टकर की किडनी प्रत्यारोपित करने का प्रयास करेंगे। इसके बाद 17 जून 1950 को डाक्टर रिचर्ड लॉलर के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने रूथ की एक किडनी ट्रांसप्लांट करने में कामयाब रही। हालाकि तब तक प्रत्यारोपण के बाद इन्फेक्शन को रोकने वाली दवाइयों की खोज पूरी नहीं हुई थी इसलिए रूथ की किडनी बहुत लंबे समय तक उनका साथ नहीं दे पायी और नौ महीने बाद उसने काम करना बंद कर दिया।
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कामयाब रही सर्जरी
इसके बावजूद कि प्रत्यारोपित किडनी ज्यादा समय तक नहीं चली ये पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट था क्योंकि जब तक इस किडनी ने काम करना बंद किया तब तक डाक्टर्स ने रूथ की दूसरी किडनी को ठीक कर दिया था। इसके बाद वो पांच साल से ज्यादा समय तक जीवित रहीं और अंत में उनकी मौत किडनी की किसी बीमारी से नहीं बल्कि दिल की बीमारी के चलते हुई।
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आज ही के दिन पहली बार बदली गई थी किडनी

चार साल बाद मिली दूसरी कामयाबी
रूथ की सर्जरी के करीब चार साल बाद 1954 में बॉस्टन में डाक्ॅटर्स को सफल किडनी ट्रांसप्लांट करने का श्रेय मिला। ये मौका इसलिए खास थ्ज्ञा कि ये ट्रांसप्लांट दो जीवित लोगों के बीच हुआ था। किडनी की परेशानी से जूझ रहे हेरिक को उसके जुड़वा भाई रोनाल्ड का गुर्दा लगाया गया। ये बेहद कामयाब प्रत्यारोपण था क्योंकि जुड़वां होने के कारण हेरिक के शरीर को प्रत्यारोपित किडनी स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं हुई। दोनों भाईयों ने अपना पूरा और सामान्य जीवन जीया। इस ऑपरेशन को जोसेफ मरे के नेतृत्व में किया गया और 1990 में मरे को इस कामयाबी के लिए नोबल पुरस्कार भी दिया गया।  
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