कहीं न हो जाए अर्थ का अनर्थ

प्राचीन धर्म ग्रंथों में मंत्र जाप के महत्व को विस्तार से बताया गया है। मंत्रों से बड़े-बड़े काम आसानी से हो जाते हैं। कोई काम रुका है, या कोई अड़चन सामने आ जाती है तो मंत्रों का जाप करना शुरु कर दें। सबकुछ सही हो जाएगा। मंत्र शक्ित का आधार हमारी आस्था से जुड़ा है। मंत्रों के जाप से आत्मा, देह, और समस्त वातावरण शुद्ध होता है। लेकिन ध्यान रखें कि मंत्रोंच्चार में कोई गलती नहीं होनी चाहिए। एक छोटी सी गलती किए-कराए पर पानी फेर सकती है। उच्चारण में एक गलती अर्थ का अनर्थ कर देगी।

हमेशा आसन बिछाकर बैठें

कोई भी मंत्र जाप करते सतय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। मंत्रों का उच्चारण सही होगा तो हमें इनका पूर्ण लाभ मिल जाएगा। मंत्र जपने के लिए मन में दृढ़ विश्वास होना चाहिए, तभी मंत्रों के प्रभाव से हम परिचित हो सकते हैं। मंत्र जाप करने से पूर्व साधक को अपने मन एंव तन की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। जाप करने वाले व्यक्ित को आसन पर ही बैठकर साधना करनी चाहिए। आसन का उपयोग इसलिए आवश्यक माना जाता है क्योंकि उस समय जो शक्ित हमारे भीतर संचालित होती है वह आसन ना होने से सीधे धरती में समाहित हो जाती है।  

सनातन प्रकिया का करें पालन

मंत्रों के उच्चारण से पूर्व, शरीर का संतुलन में होना तथा नाड़ियों का शुद्धीकरण आवश्यक है, तभी साधक मंत्र की शक्ति का संचालन कर सकेगा। इसके लिए उसे चाहिए की सनातन क्रिया में बताई गई प्रक्रिया का नियम पूर्वक अभ्यास करें।

साधना काल में इन बातों का ध्यान जरूर रखें :

1. जिसका साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था हो।

2. साधना काल में भूमि शयन, वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, मिथ्यावाचन आदि का त्याग करें और कोशिश करें की मौन रह सकें।

3. जप और साधना को हमेशा गोपनीय रखें।

4. अपनी पूजन सामग्री और देवर-देवता के यंत्र चित्र को किसी दूसरे को स्पर्श न करने दें।

5. निरंतर मंत्र जाप अथवा इष्ट देवता का स्मरध चिंतन आवश्यक है।

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