सोहनलाल द्विवेदी के जन्म दिवस पर विशेष

- बिंदकी कस्बे में जन्मे श्री द्विवेदी थे देश के पहले राष्ट्रकवि

- पैत्रक घर बिक गया, वाचनालय से ही उनकी मिलती स्मृतियां शेष

FATEHPUR: उर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं से देश की तरूणाई को आजादी की लड़ाई में खड़ा करने वाले साहित्य मनीषी सोहनलाल द्विवेदी इसी माटी के लाल थे। पांच मार्च सन क्90म् को वह बिंदकी कस्बे में पैदा हुए थे। दुर्भाग्य यह है कि वह अपनी जन्मस्थली में ही बेगाने होते जा रहे हैं। पैत्रक घर बिक गया, उनकी स्मृति में बनाया गया वाचनालय भी उपेक्षा का शिकार है। ऐसी शख्सियत को नमन करते हुए सभी को फक्र हो रहा है।

काव्य जगत के इस चमकते सितारे की पहली प्रकाशित रचना 'भैरवी' ने हर किसी में राष्ट्रीयता की भक्ति भरने में कामयाब हो गई थी। 'वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहां बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो' यह आजादी की लड़ाई में बहादुर सेनानियों का सबसे अधिक प्रेरणा गीत बना। डा। हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था कि जहां तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम पर सर्वप्रथम अभिहित किया गया वे सोहन लाल द्विवेदी हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी जो काशी विश्वविद्यालय में सोहन लाल के सहपाठी थे ने लिखा है कि उन्हे गुरुकुल में महामना मदन मोहन मालवीय का आशीर्वाद प्राप्त था। उन्होंने ही मुझे ठोंक पीट कर कवि बनाने की कोशिश की। उनकी बहुमुखी प्रतिभा तो उसी समय सामने आई थी जब क्9फ्7 में लखनऊ से उन्होंने दैनिक पत्र अधिकार का संपादन शुरू किया था। बाद में श्री द्विवेदी ने पत्रिका बालसखा का संपादन भी चार साल तक किया। बाल साहित्य के महान आचार्य के रूप में उन्होंने शिशु भारती, बच्चों के बापू, बिगुल, बांसुरी और झरना, दूध बतासा जैसी दर्जनों रचनाएं लिखी, जो बच्चों को आकर्षित करती रही।

अन्य प्रमुख रचनाएं

- भैरवी, पूजागीत, सेवाग्राम, प्रभाती, कुणाल, युगाधार, चेतना आदि हैं।

काव्य वही जो रोचक व प्रभावी हो

- श्री द्विवेदी से साहित्य का ककहरा सीखने वाले सिविल लाइन निवासी साहित्यकार शैलेंद्र द्विवेदी कहते है कि बाबा हमेशा यही कहते थे कि साहित्य वहीं है जो रोचक व प्रभाव छोड़ने वाला हो। सोलह साल की उम्र में जब वह मिलने घर जाते थे तो अच्छी कविता देख कर मिठाई खिलाते थे। वह हमेशा आदर्श वाक्य कहते थे कि ऊॅचा उठा वही जो वतन से निकल गया, वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गया।