RANCHI: राज्य में वनाधिकार कानून का उल्लंघन हो रहा है। सदियों से वन पर आश्रित आदिवासी समुदाय के लोगों पर अतिक्रमण का मुकदमा दर्ज हो रहा है। राज्य में 10 हजार से भी अधिक लोग हैं, जो ऐसे मुकदमों के शिकार हैं। रैयती जमीन पर भी वन विभाग पौधरोपण कर रहा है। ऐसे में भूस्वामी व वन विभाग में टकराव होना लाजिमी है। ये बातें मंगलवार को वनाश्रित महिलाओं की आजीविका पर आयोजित राज्य स्तरीय सेमिनार में उभर कर सामने आई। झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के इस सेमिनार में 9 जिलों से 19 प्रखंड की 300 से अधिक महिला प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

महिलाओं ने मांगा सहयोग

बुढ़मू प्रखंड की संगठन प्रभारी सूर्यमणि ने कहा कि दोना बनाकर बेचने वाली महिलाओं का दोना अक्सर सूख जाता है, लिहाजा सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। यदि उन्हें कंप्रेस मशीन दिला दी जाय, तो वे पत्तल बनाकर भी ज्यादा आमदनी कर सकती हैं। सेमिनार में चान्हों प्रखंड की प्रमीला उरांव, बानो से अगस्टीना, रामगढ़ से सुमित्रा गाड़ी आदि तमाम महिलाओं ने अपने विचार रखे।

समस्या बताएं, निकालेंगे हल: मंत्री

सेमिनार में बतौर चीफ गेस्ट बाल एवं समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी ने कहा कि राज्य भर में 29000 वनाधिकार के पट्टे बांटे गए हैं। अगर लोगों को किसी तरह की परेशानी है, तो वे हमें बताएं। संबंधित विभाग के सचिव से बातचीत कर समस्या का हल निकाला जाएगा।

झारखंड आज भी पिछड़ा राज्य: महुआ

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ महुआ माजी ने कहा कि राज्य ने 16वां स्थापना दिवस मनाया, लेकिन यहां के लोगों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला है। इस राज्य गठन के साथ बने दूसरे राज्य काफी आगे निकल चुके हैं। झारखंड की गिनती अभी भी पिछड़े राज्य के रूप में होती है। इसकी पड़ताल जरूरी है। उन्होंने कहा कि यहां कि महिलाओं पर ज्यादा जिम्मेदारी है। गांव की महिलाएं वनोत्पादों को इकट्ठा करती हैं। उसे बनाकर बाजार तक पुहंचाती हैं। घर गृहस्थी के काम भी संभालती हैं। लेकिन उन्हें वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता है।