छिपकली का यह जीवाश्म करीब 12 इंच बड़ा है और छिपकली के शरीर में एक दर्ज़न भ्रूण देखे जा सकते हैं। छिपकली की पहचान याबिनोसॉरस के रुप में की गई है जो आकार में काफी बड़ी होती थीं और प्राचीन काल में पाई जाती थीं।

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के शोधकर्ताओं ने इस जीवाश्म का अध्ययन किया है और कहा है कि जब यह छिपकली दबी है तो इसके बच्चे जनने में कुछ ही समय बाकी था। शोध टीम ने साइंस पत्रिका नेचुरविसेनसाफ्टन में ये शोध प्रकाशित किया है।

शोध टीम के लिए यह छिपकली इसलिए भी कौतूहल का विषय बना क्योंकि यह अंडे देने की बजाय बच्चों को ही जनती थी। आम तौर पर सरीसृप वर्ग के जानवर अंडे देते हैं। सरीसृप वर्ग के मात्र 20 प्रतिशत जानवर बच्चे देते हैं।

यूनिवर्सिटी कॉलेज की शोध टीम के संयुक्त लेखक प्रोफेसर सुज़ैन इवान्स कहती हैं, ‘‘ मैंने जब पहली बार ये जीवाश्म देखा तो मैंने इसके बारे में अधिक कुछ नहीं सोचा था.’’ बाद में सुज़ैन के साथी और चीन की साइंस अकादमी के युवान वांग ने जीवाश्म की जांच की तो पाया कि छिपकली के पेट में कम से कम 15 भ्रूण मौजूद हैं।

सुजै़न बताती हैं, ‘‘हमें जब भ्रूण के बारे में पता चला तो हमने तुरंत इसका परीक्षण किया माइक्रोस्कोप से। सारे बच्चे अलग अलग दिख रहे थे। ’ यह जीवाश्म इतने बेहतर ढंग से संरक्षित हुआ था कि भ्रूणों के दाँत भी साफ देखे जा सकते थे।

सुज़ैन कहती हैं, ‘‘यह गर्भवती छिपकली का सबसे पुराना जीवाश्म है। इसमें देखा जा सकता है कि छिपकलियों ने किस तरह बदलाव किया है खुद में। भ्रूण में सीधे रक्त जाना, बहुत पतला आवरण या बिल्कुल आवरण नहीं होना ताकि ऑक्सीजन सीधे शरीर में जाए.’’

इससे पहले सिर्फ ऐसी समुद्री छिपकलियों के जीवाश्म मिले हैं जो सीधे बच्चे देती हैं। वैज्ञानिकों को लगता था कि छिपकलियों की जो प्रजातियां समुद्र में रहती हैं वही सीधे बच्चा दे सकती हैं लेकिन नए जीवाश्म से यह अवधारणा बदल जाएगी।

सुज़ैन कहती है कि जो जीवाश्म मिला है उसके बारे में उन्हें ये नहीं पता है कि पानी के पास रहती थी या नहीं लेकिन वो तैरने में सक्षम थीं और मूल रुप से ज़मीन पर रहती थीं।

ये जीवाश्म उत्तर-पूर्व चीन के विश्व प्रसिद्ध जेहोल चट्टान समूहों में मिला है। इन्हीं चट्टानों में डायनासोर, सरीसृप, पक्षी, स्तनधारी जीवों, पौधों और कई अन्य जानवरों के सैकड़ों जीवाश्म मिल चुके हैं।

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