-बारिश के मौसम में रहें कुत्तों से सावधान

केस : 1

जियाउर्रहमान नाम के छह साल बच्चे को कौन भूल सकता है। पिछले साल 25 जुलाई को लिसाड़ी गेट में कुत्ते ने इस बच्चे को काफी बुरी तरह से नौंच दिया था। जिसे देखकर उसके परिजन भी बेहोश हो गए थे।

केस : 2

शाहपीर गेट उनीद नाम के बच्चे को मीट की दुकान के आगे खुंखार कुत्ते ने ऐसा नौंचा कि उसकी हालत काफी बुरी हो गई थी। 26 जुलाई को हुई इस घटना के बाद शहर में कुत्तों का आतंक काफी बढ़ गया था।

Meerut : शहर के अस्सी वार्डो में नगर निगम के मुताबिक करीब चार हजार आवारा कुत्ते हैं, किंतु इन आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए नगर निगम महज कागजी घोड़े दौड़ा रहा है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी प्रेमसिंह ने आवारा कुत्तों को पकड़ने और नसबंदी कर दोबारा छोड़ने के लिए एक पत्र मुख्य पशु हरपाल सिंह चिकित्सा अधिकारी को लिखा, जबकि मुख्य पशु चिकित्साधिकारी का कहना है कि यह काम मेरा नहीं है। मेरा काम तो महज पालतू पशुओं को चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया कराना है, हां यदि कोई आवारा जानवर अस्पताल पहुंचेगा तो उसका इलाज अवश्य कर देंगे।

कहां गए काजी हाउस

नगर निगम के काजी हाउस में आवारा पशुओं को रखने की व्यवस्था पुराने समय से चली आ रही हैं किंतु मौजूदा समय में शहर का एक भी काजी हाउस ऐसा नहीं है जहां आवारा जानवर आश्रय ले सके। कहने वालों का कहना है कि निगम के अधिकारियों ने काजी हाउसों पर अवैध कब्जा करा दिया है।

सांसद से लगाई गुहार

मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी हरपाल सिंह ने बताया कि वे आवारा जानवरों के आश्रय के लिए शहर के एक एनीमल शेल्टर खोलने की मांग सांसद राजेंद्र अग्रवाल से कर चुके हैं किंतु अभी तक इस दिशा में सांसद की ओर आश्वासन भी नहीं मिला है।

नसबंदी एकमात्र विकल्प

स्ट्रीट डॉग की संख्या में दिनोंदिन हो रही बढ़ोत्तरी को रोकने का एकमात्र विकल्प कुत्तों की नसबंदी है। नगर निगम ने यूं तो एक कागजी योजना बनाई है, किं तु एक साल गुजरने के बाद भी कुत्तों की नसबंदी की यह योजना हवा-हवाई है।

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एक-दूसरे के पाले में गेंद

मैंने मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को पत्र लिखकर शहर की गलियों में घूम रहे आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए कहा, किंतु उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है। एनीमल सोसाइटी के विरोध के चलते नगर निगम आवारा कुत्तों को पकड़ने में असमर्थ है।

-डॉ। प्रेमसिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी

नगर निगम मेरठ

कुत्ता पकड़ना पशु चिकित्सा विभाग का काम नहीं है, निगम चाहे तो इस अभियान में टेक्निकली उनकी मदद की जा सकती है, किंतु पकड़ना निगम को ही पड़ेगा। आवारा जानवरों को पकड़ने का जिम्मा नगर निगम, नगर पंचायत और ग्राम पंचायत का है।

-डॉ। हरपाल सिंह

मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी

कुत्ता काटने पर यह करें

- काटे स्थान को साबुन-पानी से धोएं। पांच बार धोने के बाद रैबिज का खतरा 80 फीसदी कम हो जाता है।

- अस्पताल में डॉक्टर से सम्पर्क कर उचित सलाह लें

- कुत्ता बिना छेड़े ही काट दे तो एंटी रैबिज का इंजेक्शन अवश्य लगवाएं।

कुत्ता काटने पर यह न करें

- झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़े

- घाव पर मिट्टी-मिर्च का लेपन न करें

- राह चलते कुत्ता को कभी न छेड़े

- कुएं में न झांकें और न गंवई उपचार के चक्कर में पड़ें

- किसी की सलाह न सुनें, सीधे एंटी रैबीज लगवाएं

जानें हाइड्रोफोबिया को

किसी कुत्ता या किसी जंगली जानवर के काटने पर अगर समय से एंटी-रैबीज इंजेक्शन न लगे तो रैबीज हो जाती है। रैबीज होने पर मनुष्य पानी से डरने लगता है। पानी से वह इस हद तक डरने लगता है कि अगर पानी उसके सामने लाया जाए तो उससे बचने के लिए वह किसी भी हद तक हिंसक भी हो सकता है। इसी डर को हाइड्रोफोबिया कहते हैं।

मरीजों की लंबी लाइन

जिला अस्पताल में रोज 200 से अधिक कुत्ते, बिल्ली और बंदर के काटे के मरीज आते हैं। जिला अस्पताल में रैबीज के इंजेक्शन के लिए मारामारी रहती है। रैबीज के इंजेक्शन के लिए मरीजों को काफी भटकना पड़ता है। कई बार तो लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ता है। कर्मचारी बीच में ही कह देते हैं कि इंजेक्शन खत्म हो गए। यही नहीं इंजेक्शन लगाने के लिए सिरींज भी बाहर से मंगवाई जाती है। जबकि सब व्यवस्था जिला अस्पताल की होती है। सरधना के नानू गांव में बच्चे के साथ हुई घटना के बाद जिला अस्पताल में उसको इलाज नहीं मिल पाया। जिसको दिल्ली रेफर किया गया।

हंगामे और शिकायतें

कई बार इंजेक्शन को लेकर जिला अस्पताल में हंगामा भी शुरू हो जाता हैं। यहां आने वाले रसूखदार मरीजों को इंजेक्शन पहले लगते हैं। जिसको लेकर मरीज उबल पड़ते हैं। इसकी शिकायत सीएमओ और डीएम तक से की जा चुकी है। अधिकतर समय रैबीज के इंजेक्शन यहां खत्म ही मिलते हैं। अधिकारी से पूछा जाए तो व्यवस्था एकदम दुरुस्त होती है। असलियत पर पर्दा डालने के लिए अधिकारी हमेशा तत्पर नजर आते हैं। यहां से कई मरीजों को बिना रैबीज के इंजेक्शन लगवाए ही लौटना पड़ता है।

हमारे यहां जिला अस्पताल और सीएचसी पर रैबीज के इंजेक्शन की पूरी व्यवस्था है। जिला अस्पताल में इंजेक्शन की कोई कमी नहीं है। मरीजों को इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं।

- डॉ। रमेश चंद्रा सीएमओ