- आईटी कॉलेज में बीएड एडमिशन को लेकर फैसला आज

- कॉलेज प्रशासन विवि कमेटी के सामने रखेगी अपना पक्ष

LUCKNOW : आईटी कॉलेज पिछले दस सालों से कोर्ट के आदेश की आड़ में बीएड सीटें भरने के नाम पर फर्जीवाड़ा करता आ रहा है। कॉलेज प्रशासन इस मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन को अंधेरे में रखे रहा। बुधवार को कॉलेज प्रशासन जब इस मामले पर रजिस्ट्रार ऑफिस में अपनी बात रखने के लिए पहुंचा तब, खुलासा हुआ कि कॉलेज अल्पसंख्यक कॉलेज के दर्जे का लाभ उठाकर बीते एक दशक से सीटें भरने में मनमानी करता आ रहा है।

रजिस्ट्रार ने लगाई फटकार

कॉलेज अधिकारी जब रजिस्ट्रार से मिलने पहुंचे तो रजिस्ट्रार ने कॉलेज के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए, इस पूरे मामले से जुड़े दस्तावेज वीसी की ओर से गठित जांच समिति के सामने रखने को कहा। अब इस मामले में वहीं निर्णय लेंगे। आईटी कॉलेज बीएड एडमिशन मामले में गुरुवार को डिसीजन होगा। सूत्रों के मुताबिक जांच समिति छात्रहित में फैसला लेगी। वहीं नियमों के उल्लंघन पर कॉलेज के खिलाफ एग्शन भी लिया जा सकता है।

2007 के ऑर्डर पर खेल

रजिस्ट्रार ऑफिस के सूत्रों का कहना है कि रजिस्ट्रार प्रो। आरके सिंह से मिलने आए आईटी कॉलेज के अधिकारियों ने 2007 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए एडमिशन करने की बात कही। जब रजिस्ट्रार ने आदेश की कॉपी मांगी तब उन्होंने 2007 का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दे दिया। जिसे पढ़कर रजिस्ट्रार भड़क गए। उन्होंने कहा कि इस ऑर्डर में केवल 2007 में सभी सीटों पर एडमिशन लेने का आदेश दिया गया है। जो उसी साल समाप्त हो गया था। इसके आगे के वर्षो के लिए यूनिवर्सिटी के ही मानक को मानना था।

मिल सकती है राहत

सूत्रों के मुताबिक चूंकि एडमिशन हुए करीब चार माह बीत चुके हैं। छात्रों की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। इसलिए जांच कमेटी छात्राओं के हित में निर्णय देगी। आधे एडमिशन रद नहीं किए जाएंगे।

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तब क्यों नहीं लिया एक्शन

बीएड में एडमिशन हुए चार महीने बीत चुके हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन को आईटी कॉलेज में हुए सभी एडमिशन के बारे में जानकारी थी, फिर भी प्रशासन खामोश रहा। हालांकि प्रशासन का दावा है कि उन्होंने दो बार नोटिस भेजी थी लेकिन कॉलेज ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर भी विवि प्रशासन पर सवाल खड़ा होता है कि गंभीर मामले में इतनी लापरवाही क्यों बरती गई।